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________________ श.३: उ.८ःसू.२७४-२७७ १०६ भगवई दीवकुमाराणं-पुण्ण-विसिट्ठ-रूय-रूयंस- द्वीपकुमाराणां-पूर्ण-विशिष्ट-रूप-रूपांश-रूयकंत-रूयप्पभा। -रूपकान्त-रूपप्रभाः। उदहीकुमाराण-जलकंत-जलप्पभ-जल- उदधिकुमाराणां-जलकान्त-जलप्रभ-जल-जल-जलरुय-जलकंत-जलप्पभा। -रुकू-जलकान्त-जलप्रभाः। दिसाकुमाराणं-अमितगति-अमितवाहण- दिक्कुमाराणाम्-अमितगति-अमितवाहन-तुरियगति-खिप्पगति-सीहगति-सीहवि- त्वरित-गति-क्षिप्रगति-सिंहगति-सिंहविक्रमक्कमगती। गतयः। तेजःप्रभ और तेजस्कान्त। द्वीपकुमार देवों का आधिपत्य करने वाले देव-पूर्ण, रूप, रूपांश, रूपकान्त और रूपप्रभ । विशिष्ट, रूप, रूपांश, रूपप्रभ और रूपकान्त। उदधिकुमार देवों का आधिपत्य करने वाले देव जलकान्त, जल, जलरूप, जलकान्त और जलप्रभ । जलप्रभ, जल, जलरूप, जलप्रभ और जलकान्त। दिक्कुमार देवों का आधिपत्य करने वाले देव-अमितगति, त्वरितगति, क्षिप्रगति, सिंहगति और सिंहविक्रमगति। अमितवाहन, त्वरितगति, क्षिप्रगति सिंहविक्रमगति और सिंहगति। वायुकुमार देवों का आधिपत्य करने वाले देव-वेलम्व, काल, महाकाल, अंजन और रिष्ट । प्रभञ्जन, काल, महाकाल, रिष्ट और अंजन। स्तनितकुमार देवों का आधिपत्य करने वाले देव-घोष, आवर्त्त, व्यावर्त्त, नन्द्यावर्त्त और महानन्द्यावर्त्त। महाघोष, आवर्त्त, व्यावतं, महानन्द्यावर्त्त और नन्द्यावर्त। इस प्रकार असुरकुमारों की भांति (३/२७२) वक्तव्यता। वाउकुमाराणं-वेलब-पभंजण-काल-महाकाल- वायुकुमाराणां-वेलम्ब-प्रभजन-काल-महा-अंजण-रिट्ठा। काल-अञ्जन-रिष्टाः। थणियकुमाराणं-घोस-महाघोस-आवत्त- स्तनितकुमाराणां-घोष-महाघोष-आवर्त्त-वियावत्त-नंदियावत्त-महानंदियात्ता। -व्यावर्त्त-नन्द्यावर्त्त-महानन्द्यावर्ताः । एवं भाणियव् जहा असुरकुमारा ॥ एवं भणितव्यं यथा असुरकुमाराः। २७५. पिसायकुमाराणं भंते! देवाणं कइ पिशाचकुमाराणां भदन्त! देवानां कति देवाः २७५. भन्ते! कितने देव पिशाचकुमार देवों का देवा आहेवच्चं जाव विहरंति? आधिपत्यं यावद् विहरन्ति? आधिपत्य करते हुए यावत् दिव्य भोग भोगते हए विहरण करते हैं? गोयमा! दो देवा आहेवच्चं जाव विहरंति, गौतम! द्वौ देवी आधिपत्यं यावद् विहरन्ति, गीतम! दो देव उनका आधिपत्य करते हुए यावत् तं जहातद् यथा-- दिव्य भोग भोगते हुए विहरण करते हैं, जैसे संगहणी गाहा काले य महाकाले, सुरूव-पडिरूव-पुण्णभद्दे य। अमरवई माणिभद्दे, भीमे य तहा महाभीमे ॥१॥ किन्नर-किंपुरिसे खलु, सप्पुरिसे खलु तहा महापुरिसे। अइकाय-महाकाए, गीयरई चेव गीयजसे ॥२॥ एते वाणमंतराणं देवाणं ॥ संग्रहणी गाथा कालश्च महाकालः, सुरूप-प्रतिरूप-पूर्णभद्राश्च। अमरपतिः माणिभद्रो, भीमश्च तथा महाभीमः ॥१॥ किन्नर-किंपुरुषौ खलु, सत्पुरुषः खलु तथा महापुरुषः। अतिकाय-महाकायौ, गीतरतिश्चैव गीतयशाः ॥२॥ एते वानमन्तराणां देवानाम्। संग्रहणी गाथा पिशाचों के-काल, महाकाल। भूतों के-सुरूप, प्रतिरूप। यक्षों के-पूर्णभद्र, माणिभद्र । राक्षसों के-भीम, महाभीम । किन्नरों के-किन्नर, किंपुरुष। किंपुरुषों के-सत्पुरुष, महापुरुष। महोरगों केअतिकाय, महाकाय। गन्धर्वो के-गीतरति और गीतयशा। ये वानमन्तर देवों का आधिपत्य करने वाले देव हैं। २७६. जोइसियाणं देवाणं दो देवा आहेवच्चं ज्योतिष्काणां देवानां द्वौ देवी आधिपत्यं जाव विहरंति, तं जहा-चंदे य, सूरे य॥ यावद् विहरन्ति, तद् यथा-चन्द्रः च, सूरः च। २७६. दो देव ज्योतिष्क देवों का आधिपत्य करते हुए यावत् दिव्य भोग भोगते हुए विहरण करते हैं, जैसे-चन्द्रमा और सूर्य। २७७. सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु कइ २७७. सौधर्मेशानयोः भदन्त ! कल्पयोः कति २७७. भन्ते! कितने देव सौधर्म और ईशानकल्प Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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