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________________ अट्ठमो उद्देसो : आठवां उद्देशक संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद २७२. रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं राजगृहे नगरे यावत् पर्युपासीनः एवम- वयासी-असुरकुमाराणं भंते! देवाणं कइ वादीद्-असुरकुमाराणां भदन्त! देवानां कति देवा आहेवच्चं जाव विहरंति? देवाः आधिपत्यं यावद् विहरन्ति? २७२. राजगृह नगर में भगवान् गौतम भगवान महावीर की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले-भन्ते! कितने देव असुरकुमार देवों का आधिपत्य करते हुए यावत् दिव्य भोग भोगते हुए विहरण करते हैं? गौतम! दस देव उनका आधिपत्य करते हुए यावत् दिव्य भोग भोगते हुए विहरण करते हैं, जैसे-असुरेन्द्र-असुरराज-चमर, सोम, यम, वरुण, वैश्रवण। वैरोचनेन्द्र-वैरोचनराज-बली, सोम, यम, वैश्रवण और वरुण। गोयमा! दस देवा आहेवच्चं जाव विहरंति, गौतम! दश देवाः आधिपत्यं यावद् विहरन्ति, तं जहा-चमरे असुरिंदे असुरराया, सोमे, तद् यथा-चमरः असुरेन्द्रः असुरराजः, सोमः, जमे, वरुणे, वेसमणे, बली वइरोयणिंदे यमः, वरुणः, वैश्रवणः, बली वैरोचनेन्द्रः वइरोयणराया, सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे॥ वैरोचनराजः, सोमः, यमः, वैश्रवणः, वरुणः। २७३. नागकुमाराणं भंते! देवाणं कइ देवा नागकमाराणां भदन्त! देवानां कति देवाः आहेवच्चं जाव विहरंति? आधिपत्यं यावद् विहरन्ति? गोयमा! दस देवा आहेवच्चं जाव विहरंति, गौतम! दश देवाः आधिपत्यं यावद् विहरन्ति, तं जहा-धरणे णं नागकुमारिंदे नागकुमार- तद् यथा-धरणः नागकुमारेन्द्रः नागकुमारराया, कालवाले, कोलवाले, सेलवाले, राजः, कालपालः, कोलपालः, शैलपालः, संखवाले, भूयाणंदे नागकुमारिंदे नागकुमार- शङ्खपालः, भूतानन्दः नागकुमारेन्द्रः नागकुमारराया, कालवाले, कोलवाले, संखवाले, राजः, कालपालः कोलपालः, शङ्खपालः, सेलवाले॥ शैलपालः। २७३. भंते! कितने देव नागकमार देवों का आधिपत्य करते हुए यावत् दिव्य भोग भोगते हुए विहरण करते हैं। गोतम! दस देव उनका आधिपत्य करते हुए यावत् दिव्य भोग भोगते हुए विहरण करते हैं, जैसे-नागकुमारेन्द्र-नागकुमारराज-धरण, कालपाल, कोलपाल, शैलपाल, शंखपाल। नागकुमारेन्द्रनागकुमारराज-भूतानन्द, कालपाल, कोलपाल, शंखपाल और शैलपाल । २७४. जहा नागकुमारिंदाणं एताए वत्तव्वयाए यथा नागकुमारेन्द्राणाम् अनया वक्तव्यतया २७४. नागकुमारेन्द्र की जो वक्तव्यता है, वही नीयं एवं इमाणं नेयव्वंनीतम् एवम् एषां नेतव्यम् वक्तव्यता निम्न निर्दिष्ट देवों की ज्ञातव्य हैसुवण्णकुमाराणं-वेणुदेवे, वेणुदाली, चित्ते, सुपर्णकुमाराणं-वेणुदेवः, वेणुदाली, चित्रः, सुपर्णकुमार देवों का आधिपत्य करने वाले विचित्ते, चित्तपक्खे, विचित्तपक्खे। विचित्रः, चित्रपक्षः, विचित्रपक्षः। देव-वेणुदेव, चित्र, विचित्र, चित्रपक्ष और विचित्रपक्ष। वेणुदाली, चित्र, विचित्र, चित्रपक्ष और विचित्रपक्ष। विज्जुकुमाराणं-हरिकत-हरिस्सह-पभ-सुप्पभ विद्युत्कुमाराणां-हरिकान्त-हरिस्सह-प्रभ-सुप्रभ- विद्युत्कुमार देवों का आधिपत्य करने वाले -पभकंत-सुप्पभकता। -प्रभकान्त-सुप्रभकान्ताः। देव-हरिकान्त, प्रभ, सुप्रभ, प्रभकान्त और सुप्रभकान्त। हरिस्सह, प्रभ, सुप्रभ, सुप्रभकान्त और प्रभकान्त। अग्गिकुमाराणं-अग्गिसिह-अग्गिमाणव- अग्निकुमाराणाम्-अग्निशिख-अग्निमाणव-तेजः- अग्निकमार देवों का आधिपत्य करने वाले -तेउ-तेउसिह-तेउकंत-तेउप्पभा। तेजःशिख-तेजःकान्त-तेजःप्रभाः। देव-अग्निशिख, तेजः, तेजःशिख, तेजस्कान्त और तेजःप्रभ। अग्निमानव, तेजः, तेजःशिख, Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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