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________________ श.३ : उ.७: सू.२६६-२७१ १०७ भगवई २६६. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य वैश्रवणस्य २६६. ये निम्नांकित देव देवेन्द्र देवराज शक्र के वेसमणस्स महारण्णो इमे देवा अहा- महाराजस्य इमे देवाः यथापत्याभिज्ञाताः लोकपाल महाराज वेश्रवण के पुत्ररूप में पहचाने वच्चाभिण्णाया होत्था, तं जहा-पुण्णभद्दे अभवन्, तद् यथा-पूर्णभद्रः माणिभद्रः जाते हैं, जैसे-पूर्णभद्र, माणिभद्र, शालिभद्र, सुमनभद्र, माणिभद्दे सालिभद्दे सुमणभद्दे चक्करक्खे शालिभद्रः सुमनोभद्रः चक्ररक्षः पूर्णरक्षः चक्ररक्ष, पूर्णरक्ष, सव्यान, सर्वयश, सर्वकाम, समृद्ध, पुण्णरक्खे सव्वाणे सव्वजसे सव्वकामे समिद्धे सव्यानः सर्वयशाः सर्वकामः समृद्धः अमोहः अमोह और असंग। अमोहे असंगे॥ असंगः। २७०. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य वैश्रवणस्य २७०, देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज वेसमणस्स महारण्णो दो पलिओवमाई ठिई महाराजस्य द्वे पल्योपमे स्थितिः प्रज्ञप्ता। वैश्रवण की स्थिति दो पल्योपम की प्रज्ञप्त है। पण्णत्ता। अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एगं यथापत्याभिज्ञातानां देवानाम् एकं पल्योपमं उनके पुत्ररूप में पहचाने जाने वाले देवों की पलिओवमं ठिई पण्णत्ता । एमहिड्डीए जाव स्थितिः प्रज्ञप्ता। इयन्महर्द्धिकः यावन स्थिति एक पल्योपम की प्रज्ञप्त है। लोकपाल महाणुभागे वेसमणे महाराया ॥ महानुभाग: वैश्वणः महाराजः। वैश्रवण ऐसी महान् ऋद्धिवाला यावत् महान् सामर्थ्यवाला है। २७१. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति ॥ तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! इति। २७१. भन्ते! वह ऐसा ही है, भन्ते! वह ऐसा ही Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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