SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवई १. सूत्र २५६ जब आदि पन्द्रह प्रकार के देव आसुरनिकाय के अन्तर्वतीं हैं ये परमाथार्मिक कहलाते हैं। वृतिकार ने इनके अन्वर्य नाम की व्याख्या की है' १०३ १. अम्ब - जो नैरयिकों को आकाश में ले जाकर ऊपर से गिराता है। भाष्य २. अम्बरीष - जो नैरयिकों को कैंची आदि से खण्ड-खण्ड कर अम्बरीष भाण्ड में पकाने योग्य बनाता है, इसलिए अम्बरीस कहलाता है। ३. श्याम - जो नैरयिकों को शातना-उत्पीड़ा देता है, वर्ण से श्याम होता है, इसलिए श्याम कहलाता है। ४. शबल जो नैरयिकों के आंत, हृदय आदि को उखाड़ देता है और वर्ण से शबल (चितकबरा होता है, इसलिए शबल कहलाता है। ५. रौद्र - जो नैरयिकों को शक्ति, भाले आदि में पिरो देता है, वह अपनी रौद्रता के कारण रौद्र कहलाता है। ६. उपरौद्र - जो नैरयिकों के अंगोपांगों का भंग करता है, वह उपरौद्र कहलाता है। २६०. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो सतिभागं पलिओदमं ठिई पण्णत्ता, अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता । एमडिए जाव महाणुभागे जमे महाराया ॥ ७. काल -जो नैरयिकों को हाण्डी आदि में पकाता है, वह काला होता है, इसलिए वह काल कहलाता है। वरुण-पदं २६१. कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देव रण्णो वरुणस्स महारण्णो सयंजले नामं महाविमाणे पणते ? गोयमा! तस्स णं सोहम्मवडेंसयस्स महाविमाणसस्स पच्चत्थिमे णं जहा सोमस्स तहा विमाण - रायधाणीओ भाणियव्वा जाव पासादबर्डेसया, नवरं नामनाणतं ॥ Jain Education International १. भ. बृ. ३/२५६ – 'अम्ब' इत्यादयः पंचदश असुरनिकायान्तर्वत्तिनः परमाधार्मिकनिकायाः । २. भ. वृ. ३/२५६ । ८. महाकाल - जो नैरयिकों को चिकने मांस के टुकड़े खिलाता है और वर्ण से जो बहुत काले होते हैं, वह महाकाल कहलाता है। ६. धनु-जो धनुष्य से मुक्त अर्धचन्द्र आदि वाणों के द्वारा कान आदि का छेदन-भेदन आदि करता है, वह धनु कहलाता है। १०. असिपत्र - जो तलवार के आकार वाले पत्र की तरह विकुर्वणा करता है, वह असिपत्र कहलाता है । ११. कुम्भ - जो कुम्भ आदि में उन्हें पकाता है, वह कुम्भ कहलाता है। १२. बालुक - जो कदम्ब पुष्प आदि के आकार वाली बालु-धूलि में नैरयिकों को पकाता है, इसलिए वह बालुक कहलाता है। शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य यमस्य महाराजस्य सत्रिभागं पल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ताः, यथापत्याऽभिज्ञातानां देवानाम् एकं पल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता । इयन्महर्द्धिकः यावन् महानुभागः यमः महाराजः । श. ३ : उ.७ : सू. २५६-२६१ १३. वैतरणी - जो पीप, लोही आदि से भरी हुई वेतरणी नामक नदी का निर्माण करता है, वह वेतरणी कहलाता है। १४. खरस्वर - जो वज्र जैसे कांटों से आकुल शाल्मली वृक्ष का निर्माण कर उस पर नारकों को आरोपित कर, उन्हें चिल्लाते हुए खींचता है, वह 'खरस्वर' कहलाता है। १५. महाघोष-जी भयभीत होकर दौड़ते हुए नैरयिकों को महाघोष करता हुआ पशुओं की तरह बाड़ों में बांध देता है, वह 'महाघोष' कहलाता है।" देखें समवाओ, १५/१ का टिप्पण । वरुण-पदम् कुत्र भदन्त ! शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य वरुणस्य महाराजस्य स्वयंञ्जलं नाम महाविमानं प्रज्ञप्तम् ? गौतम! तस्य सौधमार्वतंसकस्य महाविमानस्य पश्चिमे यथा सोमस्य तथा विमान-राजधान्यः भणितव्याः यावत् प्रासादावतंसकाः, नवरंनामनानात्वम् । For Private & Personal Use Only २६०. देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज यम की स्थिति त्रिभाग अधिक एक पल्योपम की प्रज्ञप्त है। उसके पुत्र रूप में पहचाने जाने वाले देवों की स्थिति एक पल्योपम की प्रज्ञप्त है। लोकपाल यम ऐसी महान ऋद्धि वाला यावत् महान सामर्थ्य वाला है । वरुण-पद २६१. भन्ते ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज वरुण का स्वयञ्जल नाम का महाविमान कहां प्रज्ञप्त है? गौतम! उस सौधर्मावतंसक महाविमान के पश्चिम भाग में स्वयञ्जल नाम का महाविमान है। इसके विमान, राजधानी और प्रासादावतंसक तक का वर्णन सोम की भांति ज्ञातव्य है । केवल नामों की भिन्नता है। 1 www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy