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________________ श.३: उ.७:सू.२५८-२५६ १०२ भगवई भाष्य १. सूत्र-२५८ शब्द-विमर्श डिम्ब-दंगा।' डमर-अपने ही राज्य में राजकुमार आदि द्वारा किया गया उपद्रव। आप्टे के अनुसार-डिम्ब का अर्थ है-कलह, छोटा युद्ध, शस्त्रास्त्रों के बिना होने वाला युद्ध । डमर का अर्थ है-कलह, गांवों के बीच होने वाला कलह, शत्रु को भयभीत करने के लिए किया जाने वाला शब्द। बोल-अव्यक्त अक्षर वाले ध्वनि-समूह । खार-पारस्परिक मात्सर्य। महायुद्ध, महासंग्राम-साधारणतया ये दोनों पर्यायवाची शब्द हैं। वृत्तिकार ने इन दोनों के बीच भेदरेखा खींची है। उनके अनुसार व्यवस्था-शून्य महारण का नाम 'महायुद्ध' और चक्रव्यूह आदि की रचना के साथ लड़ा जाने वाला महारण 'महासंग्राम' है।" दुर्भूत-ईति। धान्य आदि के लिए उपद्रव-भूत चूहों तथा टिड्डी आदि जीवों को दुर्भूत कहा गया है। इन्द्रग्रह-किसी शरीर में होने वाला इन्द्र का आवेश। स्कन्दग्रह-किसी शरीर में स्कन्द का आवेश। कुमारग्रह-स्कन्ध और कुमार-ये दोनों कार्तिकेय के नाम हैं। सूत्रकार के द्वारा 'कुमार' शब्द पृथक् रूप में विवक्षित है। यक्षग्रह-किसी शरीर में होने वाला यक्ष का आवेश। भूतग्रह-किसी शरीर में होने वाला भूत का आवेश । ये सब उन्माद के हेतु बनते हैं। भगवई के १४वें शतक में भी यक्षावेश-जनित उन्माद का उल्लेख मिलता है। ठाणं में यक्षावेश को उन्माद का एक हेतु बतलाया गया है।" उद्वेजक (उव्वेयग)-वृत्तिकार ने उव्वेयग के दो संस्कृत रूप किए हैं-१. उद्वेगक-इष्ट-वियोग आदि से होने वाला उद्वेग। २ उद्वेजक-लोगों में उद्वेग उत्पन्न करने वाले चीर आदि।" शोष-शरीर का सूखना, शारीरिक धातुओं की क्षीणता। राजयक्ष्मा। कक्षाकोथ-कांख का फोड़ा, कांख की सड़ान।" २५६. सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो इमे देवा अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य यमस्य महा- २५६. 'ये निम्नांकित देव देवेन्द्र देवराज शक्र के राजस्य इमे देवाः यथापत्याः अभिज्ञाताः लोकपाल महाराज यम के पुत्र के रूप में पहचाने अभवन्, तद् यथा जाते हैं संग्रहणी-गाथा संगहणी-गाहा संग्रहणी-गाथा अंबे अंबरिसे चेव, अम्बः अम्बरिषश्चैव, सामे सबले त्ति यावरे। श्यामः सबल इति चापरः । रुद्दोवरुद्दे काले य, रुद्रोपरुद्रः कालश्च, महाकाले त्ति यावरे ॥१॥ महाकाल इति चापरः ॥१॥ असिपत्ते धणू कुंभे, असिपत्रो धनुः कुम्भो, वालुए वेतरणी त्ति य। बालुको वैतरणीति च। खरस्सरे महाघोसे, खरस्वरो महाघोषः, एते पण्णरसाहिया ॥२॥ एते पञ्चदशाऽऽख्याताः ॥२॥ अंब, अम्बरीष, श्याम, शवल, रुद्र, उपरुद्र, काल, महाकाल, असिपत्र, धनु, कुम्भ, वालुक, वैतरणी, खरस्वर और महाघोष-ये पन्द्रह देव यम के पुत्रस्थानीय हैं। १. भ. वृ. ३/२५८-डिम्बा-विघ्नाः। २. वही, ३/२५८-'डमररति एकराज्ये एव राजकुमारादिकृतोपद्रवाः।। ३. आप्टे-डियः-१. Aliray. riot; डिम्बयुद्ध-Petty warfare, an aftray without weapons, skirmishi, sham-light: 34:-9. Riot, tumult, attray. 2. Petty wartare between villages. 3. Terrifying an enemy by shouts and gestures. ४. द्रष्टव्य. सूय. २/१/१३ का टिप्पण। ५. भ, वृ. ३/२५६ -- 'बोल'त्ति अव्यक्ताक्षरध्वनिसमूहाः । ६. वही, ३/२५८-'खार'त्ति परस्परमत्सराः। ७. वही, ३/२५८ - महाजुद्ध'त्ति 'महायुद्धानि व्यवस्थाविहीनमहारणाः, 'महासंग्राम'त्ति सव्यवस्थचक्रादिव्यूहरचनोपेतमहारणाः। ८. वही, ३/२५८-'दुभूयत्ति दुष्टा-जनधान्यादीनामुपद्वहेतत्वाद् भूताः-सत्त्वाः यूकामत्कुणोन्दुरतिहप्रभृतयो दुर्भूता ईतय इत्यर्थः । ६. भ. १४/१६-२०। १०. ठाण-२/७५। ११. भ. वृ. ३/२५- 'उव्वयेगति उद्धेगका इष्टवियोगादिजन्या उदगाः उद्वेजका वा लोकोद्वेगकारिणश्चोरादयः। १२. आप्टे. शोषः-क्ततपदह नवा कतलदम 27 वपंजपवदा पाजीमतपदा नचए अग नसबदतन व्वदेनउचजपवद बत बदनउचजपवद पद हमदमतंस १३. आप्टे, कक्षा-arm-pit; कोथ-धनजतमजिपवदा हंदहतपदमण Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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