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________________ - मूल लोगपाल पदं २४७. रायगि नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी सक्करस णं भंते देविंदस्स देवरण्णो कति लोगपाला पण्णत्ता? सत्तमो उद्देसो : सातवां उद्देशक गोयमा ! चत्तारि लोगपाला पण्णत्ता, तं गौतम ! चत्वारः लोकपालाः प्रज्ञप्ताः, तद् जहा- सोमे जमे वरुणे वेसमणे | यथा - सोमः यमः वरुणः वैश्रवणः । २४६. कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरणी सोमस्स महारण्णो संझप्पभे नामं महाविमाणे पण्णत्ते ? संस्कृत छाया १. लोकपाल देवनिकाय के दस प्रकार हैं-इन्द्र, सामानिक प्रायस्त्रिश पारिषय, आत्मरक्षक, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्ण, आभियोग्य और किल्विधिक गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय- गहगण- नक्खत्त-तारारूवाणं बहूई जोयणाई जाव पंच वडेंसया पण्णत्ता, तं जहा असोगवडेंसए सत्तवण्णवडेंसए चंपयवडेंसए, चूयवडेंसए, मज्झे सोहम्म इसए || Jain Education International लोकपाल-पदम् राजगृहे नगरे चावत् पर्युपासीनः एवमात् शक्रस्य भदन्त ! देवेन्द्रस्य देवराजस्य कति लोकपालाः प्रज्ञप्ताः ? " २४८. एएसि णं भंते! चउन्हं लोगपालाणं एतेषां भदन्त ! चतुर्णां लोकपालानां कति कति विमाणा पण्णत्ता ? विमानानि प्रज्ञप्तानि ? गोयमा चत्तारि विमाणा पण्णत्ता तं गीतम् चत्वारि विमानानि प्रक्षप्तानि तद् जहा संयमे वरसि सयंजले बम्मू यथा-सन्ध्याप्रभं वरशिष्टं स्वयंज्वलं वल्गु । भाष्य १. त. सू. ४/४। २. त. सू. भा. वृ. ४/४ - लोकपाला आरक्षकार्थचरस्थानीयाः स्वविषयसंधिरक्षणनिरूपिता आरक्षकाः अर्थचराश्चोरोहन्द्धरणिकराजस्थानीयादवस्तत् सदृशा लोकपालाः । कुत्र भदन्त ! शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य सोमस्य महाराजस्य सन्ध्याप्रभं नाम महाविमानं प्रज्ञप्तम् ? गौतम! जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्याः बहुसम - रमणीयाद् भूमिभागाद् ऊर्ध्वं चन्द्रमः-सूर्य-ग्रहगण-नक्षत्र-तारारूपाणां बहूनि योजनानि यावत् पंच अवतंसकाः प्रज्ञप्ताः, तद् यथाअशोकावतंसकः सप्तपर्णा चम्पका सप्तपर्णावतंसकः, वतंसकः, चूतावतंसकः, मध्ये सौधर्मावतंसकः । हिन्दी अनुवाद इनमें लोकपाल का छट्टा स्थान है। वे आरक्षक (सीमा की सुरक्षा करने वाले) और अर्थचर (चौरों से जनता की रक्षा करने वाले) के समान होते हैं।" For Private & Personal Use Only लोकपाल पद २४७. राजगृह नगर में भगवान् की पर्युपासना करते हुए गणधर गौतम इस प्रकार बोले- भन्ते ! देवेन्द्र देवराज शक्र के कितने लोकपाल प्रज्ञप्त हैं? गीतम के चार लोकपाल प्रतप्त है, जैसे-सोम, यम, वरुण और वैश्रवण । २४८. भन्ते । इन चार लोकपालों के कितने विमान प्रज्ञप्त हैं? गौतम! इनके चार विमान प्रज्ञप्त हैं, जैसेसन्ध्याप्रभ, वरशिष्ट, स्वयञ्ज्वल और वल्गु । २४६. भन्ते देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज सोम का सन्ध्याप्रभ नामक महाविमान कहां प्रज्ञप्त है? गौतम जम्बूदीप द्वीप के मेरु पर्वत के दक्षिण भाग में इसी रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रायः समतल और रमणीय भूभाग से ऊपर चांद, सूरज, ग्रहगण, नक्षत्र और ताराओं से बहुत योजन दूर यावत् पांच अवतंसक प्रज्ञप्त हैं, जैसे- अशोकावतंसक, सप्तपर्णावतंसक, चम्पकावतंसक, चूतावतंसक और मध्य में सौधमावतंसक । www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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