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भगवई
६५
श.३ : उ.६:सू.२४५,२४६
भाष्य
१. सूत्र २४५ आत्मरक्षक देव सामानिक से चार गुना होते हैं। देखें-यंत्र' :
देव
सामानिक
आत्मरक्षक
चमर बलि नौ निकाय प्रत्येक शक्र
६४००० ६०००० ६००० ८४००० ८०००० ७२०००
ईशान
सनत्कुमार माहेन्द्र ब्रह्म
७०००० ६००००
२५६००० २४०००० २४००० ३३६००० ३२०००० २८८००० २८०००० २४०००० २००००० १६०००० १२०००० ८०००० ४००००
लान्तक
५००००
शुक्र
४०००० ३००००
सहस्रार आनत, प्राणत आरण, अच्युत
२०००० १००००
२४६. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति ॥
तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त। इति।
२४६. भन्ते! वह ऐसा ही है, भन्ते! वह ऐसा ही
१. पण, पद २ (उवंगसुत्ताणि, खण्ड २, पृ. ६४) के आधार पर।
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