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भगवई
श.३: उ.६:सू.२२२-२३४
६२ नगर और उन दोनों के अन्तरालवर्ती जनपदाग्र का निर्माण करता है। किन्तु वह अपने द्वारा निर्मित नगरों को वास्तविक मान लेता है। उसे यह ज्ञान नहीं रहता कि यह सब मैंने अपनी वैक्रिय शक्ति के द्वारा निर्मित किया है।
मिथ्यादृष्टि-अन्यतीर्थिक एकान्तदृष्टि का आग्रह रखने वाला। रूप-वस्तु और प्राणी।
आयारो में भी इस अर्थ में 'रूप' शब्द का प्रयोग मिलता है।' तथाभाव-जैसी वस्तु वैसा भाव-यथार्थ । अन्यथाभाव-अयथार्थ। ऋद्धि-वैक्रिय-शक्ति का वैभव । द्युति-वैक्रिय-शक्ति की दीप्ति। यश-संयम, एकाग्रता या चित्त-वृत्ति का नियमन।
शब्द-विमर्श
अनगार-गृहवास को त्यागने वाला। भावितात्मा-भावना अथवा सम्मोहन की साधना किया हुआ। मायी-माया से अनुवासित। (द्रष्टव्य भ. ३/१६० का भाष्य)
२३१. अणगारे णं भंते! भावियप्पा अमायी
वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए रायगिह नगरं समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाइं जाणइ-पासइ?
अनगारः भदन्त! भावितात्मा अमायी २३१. "भन्ते! क्या भावितात्मा अनगार जो अमायी, सम्यग्दृष्टि: वीर्यलब्धिकः वैक्रियलब्धिकः सम्यगदृष्टि है, वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि और अवधिज्ञानलब्धिकः राजगृहं नगरं समवहतः, अवधिज्ञानलब्धि से सम्पन्न है, वह राजगृह नगर समवहत्य वाराणस्यां नगर्या रूपाणि में वैक्रियसमुद्घात का प्रयोग करता है, प्रयोग जानाति-पश्यति?
कर वाराणसी नगरी में विद्यमान रूपों को
जानता-देखता है? हन्त जानाति-पश्यति।
हां, जानता-देखता है।
हंता जाणइ-पासइ ॥
२३२. से भंते! किं तहाभाव जाणइ-पासइ? अण्णहाभाव जाणइ-पासइ?
स भदन्तः किं तथाभावं जानाति-पश्यति? २३२. भन्ते! क्या वह यथार्थभाव को जानता- देखता अन्यथाभावं जानाति-पश्यति?
है? अन्यथा भाव (विपरीत-भाव) को जानता-देखता
गोयमा! तहाभाव जाणइ-पासइ, नो अण्णहाभावं जाणइ-पासइ ॥
गौतम! तथाभावं जानाति-पश्यति, नो अन्यथाभा जानाति-पश्यति।
गौतम! वह यथार्थभाव को जानता-देखता है, अन्यथाभाव को नहीं जानता-देखता।
२३३. से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ- तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अण्णहाभावं। जाणइपासइ? गोयमा! तस्स णं एवं भवइ-एवं खलु अहं रायगिहे नयरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूवाई जाणामि-पासामि। सेस दंसण-अविवच्चासे भवति । से तेणतुणं गोयमा! एवं वुच्चइ-तहाभावं जाणइ- पासइ, नो अण्णहाभावं जाणइ-पासइ ॥
तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते-तथाभावं २३३. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा जानाति-पश्यति, नो अन्यथाभावं जानाति- है-वह यथार्थभाव को जानता-देखता है, अन्यथाभाव पश्यति?
को नहीं जानता-देखता ? गौतम! तस्य एवं भवति-एवं खलु अहं गौतम! उसके इस प्रकार का दृष्टिकोण होता राजगृहे नगरे समवहतः, समवहत्य वाराणस्यां है-मैंने राजगृह नगर में वैक्रियसमुद्घात का नगर्या रूपाणि जानामि-पश्यामि। स एष प्रयोग किया है, प्रयोग कर मैं वाराणसी नगरी दर्शन-अविपर्यासः भवति। तत्तेनार्थेन गोतम! में विद्यमान रूपों को जानता-देखता हूं। यह उसके एवमुच्यते-तथाभावं जानाति-पश्यति, नो दर्शन का अविपर्यास है। गौतम! इस अपेक्षा से अन्यथाभावं जानाति-पश्यति ।
कहा जा रहा है-वह यथार्थभाव को जानता-देखता है, अन्यथाभाव को नहीं जानता-देखता।
२३४. अणगारे णं भंते! भावियप्पा अमायी अनगारः भदन्त ! भावितात्मा अमायी सम्यग्- २३४. भन्ते! क्या भावितात्मा अनगार जो अमायी, सम्मदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए दृष्टिः वीर्यलब्धिकः वैक्रियलब्धिकः अवधि- सम्यग्दृष्टि है, वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि और
ओहिनाणलद्धीए वाणारसिं नगरि समोहए, ज्ञानलब्धिकः वाराणसी नगरी समवहतः, अवधिज्ञानलब्धि से सम्पन्न है, वह वाराणसी समोहणित्ता रायगिहे नगरे रूवाई जाणइ- समवहत्य राजगृहे नगरे रूपाणि जानाति- नगरी में वैक्रियसमुद्घात का प्रयोग करता है, पासइ? - पश्यति?
प्रयोग कर राजगृह नगर में विद्यमान रूपों को
जानता-देखता है? हंता जाणइ-पासइ ॥ हन्त जानाति-पश्यति।
हां, जानता-देखता है।
१. भ. वृ. ३/२२८-२३०-वाणारसी राजगृहं तयोरेवं चान्तरालवतिनं 'जनपदवर्ग'
देशसमूह समवहती विवितान् तथैव च तानि विभङ्गतो जानाति-पश्यति केवलं नो तथाभावं यतोऽसी चैक्रियाण्यपि तानि मन्यते स्वभाविकानि ।
२. वही, ३/२२२-रूपाणि पशुपुरुषप्रासादप्रभृतीनि। ३. आयारो, ३/५७-विराग रूबंहि गच्छेज्जा, महया खुदपहि वा।
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