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________________ श.३ : उ.५:सू.२१८-२२१ ८८ भगवई भाष्य १. विक्रिया करता है सूत्र २१८ का पाठ अधिकृत वाचना के अनुसार 'विकुव्वइ' स्वीकार किया गया है। वृत्तिकार ने अभियोग ओर विक्रिया को एकार्थक बतलाया है। किन्तु वास्तव में ये दोनों एक नहीं होने चाहिए। सूत्र २११ के भाष्य में इनका भेद स्पष्ट किया जा चुका है। २१६. मायी णं भंते! तस्स ठाणस्स अणा- मायी भदन्त ! तस्य स्थानस्य अनालोचित- २१६. भन्ते! मायी उस स्थान की आलोचना और लोइयपडिक्कते कालं करेइ, कहिं उव- प्रतिक्रान्तः कालं करोति, कुत्र उपपद्यते? प्रतिक्रमण किए विना मरकर कहां उपपन्न होता वज्जइ? है? गोयमा! अण्णयरेसु आभियोगिएसु देव- गातम! अन्यतरेषु आभियोगिकेषु देवलोकेषु । गौतम! आभियोगिक देवलोंकों में से किसी एक लोगेसु देवत्ताए उववज्जइ ॥ देवतया उपपद्यते। देवलोक में देवरूप में उपपन्न होता है। २२०. अमायी णं भंते! तस्स ठाणस्स आलो- अमायी भदन्त! तस्य स्थानस्य आलो- २२०. भन्ते! अमायी उस स्थान की आलोचना और इय-पडिक्कते कालं करेइ, कहिं उववज्जइ? चित-प्रतिक्रान्तः कालं करोति, कुन उपपद्यते? प्रतिक्रमण के पश्चात् मरकर कहां उपपन्न होता गोयमा! अण्णयरेसु अणाभियोगिएसु गौतम! अन्यतरेषु अणाभियोगिकेषु देवलोकेषु देवलोगेसु देवत्ताए उववज्जइ ॥ देवतया उपपद्यते। गीतम! अनाभियोगिक देवलोकों में से किसी एक देवलोक में देवरूप में उपपन्न होता है। २२१. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! इति। २२१. भन्ते! वह ऐसा ही है, भन्ते! वह ऐसा ही संग्रहणी गाथा संगहणी गाहा इत्थी असी पडागा जण्णोवइए य होइ बोद्धव्वे। पल्हत्थिय पलियंके, अभिओग विकुव्वणा मायी ॥१॥ स्त्री असिः पताका, यज्ञोपवीतं च भवति बोद्धव्यम् । पर्यस्तिकापर्यङ्की, अभियोगो विक्रिया मायी ॥१॥ संग्रहणी गाथा स्त्री, तलवार, पताका, यज्ञोपवीत, पर्यस्तिका, पर्यक, अभियोग, विक्रिया और माया-इस उद्देशक में ये विषय वर्णित हैं। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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