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भगवई
१. अभियोजना कर
भावितात्मा अनगार वैक्रिय लब्धि के द्वारा नए रूपों का निर्माण करता है और अभियोजन-शक्ति के द्वारा वह परकाय में प्रवेश कर उसे व्यापृत या संचालित करता है। उसका सम्बन्ध आभियोगिकी भावना-विद्या मंत्र आदि से है वृत्तिकार ने अभिजित पाठ का
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२१५. से भंते! किं ऊसिओदयं गच्छइ ? पतोदयं गच्छइ ?
भाष्य
२१२. से भंते! किं आइड्ढीए गच्छइ ? परिड्ढीए गच्छइ ? गोयमा ! आइड्ढीए गच्छइ, नो परिड्ढीए गौतम ! आत्मद्वर्या गच्छति, नो परर्या
गच्छति ।
गच्छइ ॥
स भदन्त किम् आत्मकर्मणा गच्छति ? परकर्मणा गच्छति?
२१३. से भंते! किं आयकम्मुणा गच्छइ ? परकम्मुणा गच्छइ ? गोयना आयकम्पुणा गच्छद, नो परकम्मुणा गौतम! आत्मकर्मणा गच्छति, नो परकर्मणा गच्छइ ॥
"
गच्छति ।
२१६. से मंते किं अणगारे? आते? गोयमा! अणगारे णं से, नो खलु से आसे ॥ २१७. एवं जाव परासररूवं वा ॥
स भदन्त ! किम् आत्मप्रयोगेण गच्छति ? परप्रयोगेण गच्छति ?
२१४ से भंते कि आयप्ययोगेणं गच्छद परप्ययोगेणं गच्छ ? गोयमा आयप्ययोगेण गच्छद्र, नो परप्य गीतम आत्मप्रयोगेण गच्छति नो पत्प्रयोगेण योगेणं गच्छइ ॥
गच्छति ।
अर्थ 'विद्या आदि के सामर्थ्य से अश्व आदि के शरीर में प्रविष्ट होकर उसे व्यापृत अथवा संचालित करना' किया है।
उत्तरज्झयणाणि में आभियोगिकी भावना का उल्लेख है । उसका सम्बन्ध मंत्र, वशीकरण, योग आदि से है ।"
१. उत्तर. ३६ / २६४ ।
स भदन्त ! किं आत्मद्धय गच्छति ? परद्वर्या २१२. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार अपनी ऋद्धि गच्छति ? से जाता है? परमृद्धि से जाता है? गौतम! वह अपनी ॠद्धि से जाता है, पर ऋद्धि से नहीं जाता।
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गोयमाः ऊसिओदयं पि गच्छद, पत्तोदयं गौतम उच्छ्रितोदयमपि गच्छति, पतदुदयमपि पि गच्छइ ॥ गच्छति ।
२१८ से भंते किं मायी विकुव्वद ? अमावी स भदन्त किं मायी विकरोति? अमायी विकुब्बइ ? विकरोति ?
नोयमा गायी विकुव्वद नो अमायी गौतम गायी विकरोति, नो अमायी विकरोति? विकुव्वइ ॥
श.३ : उ.५ : सू.२११-२१८
स भदन्त किम् अनगारः ? अश्वः ? गौतम! अनगारः सः, नो खलु स अश्वः । एवं यावत् पराशररूपं वा ।
स भदन्त ! किं उच्छ्रितोदयं गच्छति ? पतदुदयं २१५. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार ऊपर उठी गच्छति ? हुई पताका के रूप में जाता है? नीचे गिरी हुई पताका के रूप में जाता है? गौतम ! वह ऊपर उठी हुई पताका के रूप में भी जाता है और नीचे गिरी हुई पताका के रूप में भी जाता है।
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२१३. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार अपनी क्रिया से जाता है? परक्रिया से जाता है? गौतम! वह अपनी क्रिया से जाता है, परक्रिया से नहीं जाता।
२१४. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार अपने प्रयोग से जाता है? परप्रयोग से जाता है? गौतम! वह अपने प्रयोग से जाता है, परप्रयोग से नहीं जाता।
२१६. भन्ते ! क्या वह अनगार है? अश्व है? गौतम ! वह अनगार है, अश्व नहीं है।
२१७. इसी प्रकार यावत् अष्टापद रूप की अभियोजना के विषय में ज्ञातव्य है ।
२१८. भन्ते क्या मायी विक्रिया (रूप निर्माण) करता है?" अमायी विक्रिया करता है? गौतम! मायी विक्रिया करता है, अमायी विक्रिया नहीं करता।
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