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________________ श.३: उ.५ सू. १६७-२०२ है १. तलवार... प्रयोग कर वृत्तिकार ने असिचर्मपात्र का अर्थ 'ढाल' किया है। वैकल्पिक रूप से असि का अर्थ 'तलवार' और चर्मपात्र के दो अर्थ किये हैं। 'ढाल अथवा म्यान' ।" असिचम्मपावहत्यकिच्चगएण के वृत्तिकार ने तीन अर्थ किए १६६. से जहानामए केइ पुरिसे एगओपडागं काउं गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भाविअप्पा एगओपडागाहत्यकिच्चनएणं अप्पानेणं उड़ देहास उप्पएज्जा? हंता उप्पएज्जा ॥ १. कृत्य कृत्य अर्थात् संघ आदि के प्रयोजन के लिए हाथ १६८. अणगारे णं भंते! भाविअप्पा केवइयाई पभू अतिचम्म (पाय ?) हत्यकिव्यगवाई रुवाई विउब्वित्तए? गोवा से जहानामए जुवई जुवाने हत्येणं हत्थे गेण्हेज्जा, तं चेव जाव विउब्विंसु वा विउव्वति वा, विउव्विस्सति वा ॥ 1222 २०१. एवं दुहओपडागं पि भाष्य २०२. से जहानामए के पुरिसे एगओजणी वदतं कार्ड गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भाविजम्मा एवओोजण्णोवइतकिच्चनएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा ? हंता उप्पएज्जा ॥ Jain Education International २००. अणगारे णं भंते! भाविअप्पा केवइयाई पभू एनओपडागाहत्यकिच्चगयाई रुवाई विकुब्वित्तए? अनगारः भदन्त ! भावितात्मा कियन्ति प्रभुः एकतः पताकाहस्तकृत्यागतानि रूपाणि विक तुम् " एवं चैव जाव विकुब्बिस्तु वा विकुष्यति एवं चैाव्यार्थी वा विकरोति वा वा, विकुव्विस्सति वा ॥ विकरिष्यति वा । अनगारः भदन्त ! भावितात्मा कियन्ति प्रभुः असिचर्म (पात्र?) हस्त कृत्यागतानि रूपाणि विकर्तुम् गौतम तद्यथानाम युवतिं युवा हस्तेन हस्ते गृहीयात्, तच्चैव यावद् व्यकार्षीद् वा, विकरोति वा विकरिष्यति वा में तलवार और ढाल को धारण करना । २. असिचर्मपात्रहस्तकृत्याकृतेन असिचर्मपात्र को करके, हाथ में प्राप्त कर लिया है जिसने । तद् यथानाम कोऽपि पुरुषः एकतः पताकां कृत्वा गच्छेत्, एवमेव अनगारोऽपि भावितात्मा एकत पताकाहस्तकृत्यागतेन आत्मना ऊध्ये विहायः उत्पतेत् ? हन्त उत्पतेत् । एवं द्विधापताकम् अपि । ३. असिचर्मपात्र के हस्तकरण को प्राप्त करने वाला । यह पूरा आलापक माया का है। कृत्या का अर्थ है-माया, इन्द्रजाल, जादू-टोना आदि। इसलिए 'माया या विद्या का प्रयोग कर' - यह अर्थ प्रकरण-संगत है। १. भ. वृ. ३/१६७ - असिचर्मपात्र - स्फुरकः अथवाऽसिश्च खड्गः, चर्मपात्रं च स्फुरकः खड्गकोशको वा ॥ २. बही ३/१६७ - अतिवर्म्मपात्र हस्ते यस्य स तथा कृत्यं-संघादि प्रयोजनं गतः - आश्रितः कृत्यगतः ततः कर्मधारयः, अतस्तेनात्मना, अथवा असिचर्मपात्रं कृत्वा हस्ते कृतं येनासी तद्यथानाम कोऽपि पुरुषः एकतोयज्ञोपवीतं कृत्वा गच्छेत् एवमेव अनाभावितात्मा एकतीयज्ञोपवीतकृत्यागतेन आत्मना उ विहायः उत्पतेत् ? हन्त उत्पतेत्। भगवई For Private & Personal Use Only १६८. भन्ते ! भावितात्मा अनगार हाथ में तलवार और ढाल ले कितने कृत्यागत रूपों की विक्रिया करने में समर्थ है ? गीतम जैसे कोई युवक युवती का हाथ प्रगाढ़ता से पकड़ता है, वही (सू. १९६) वक्तव्यता यावत् भावितात्मा अनगार ने क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की न करता है और न करेगा। १६६. जैसे कोई पुरुष एक हाथ में पताका लेकर जाए, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार क्या एक हाथ में पताका ले कृत्यागत होकर ऊपर आकाश में उड़ता है? हां, उड़ता है। २०० भन्ते भावितात्मा अनगार एक हाथ में पताका ले कितने कृत्यागत रूपों की विक्रिया करने में समर्थ है ? वही (सू. १६६) वक्तव्यता यावत् भावितात्मा अनगार ने क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की न करता है और न करेगा। २०१. इसी प्रकार दोनों हाथों में पताका लिए हुए पुरुष की वक्तव्यता । २०२. जैसे कोई पुरुष एक ओर यज्ञोपवीत धारण कर जाए, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी क्या एक ओर यज्ञोपवीत धारण किए हुए कृत्यागत होकर ऊपर आकाश में उड़ता है? हां, उड़ता है 1 अतिपातकृत्याकृ प्राकृतत्वाच्चैवं समासः अथवा असिचर्मपात्रस्य हस्तकृत्यां हस्तकरणं गतः प्राप्तो यः स तथा तेन । ३. आष्टे - कृत्या - Magic. www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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