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भगवई
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श.३ : उ.४ : सू.१८३-१८५
होने पर अन्तर्मुहूर्त बीत जाता है, अन्तमुहूर्त शेष रहता है, उस समय में जन्म लेना है। उदाहरण स्वरूप-ज्योतिष्क देवों में तेजोलेश्या है। जीव परलोक में जाते हैं।'
जिस जीव ने ज्योतिष्क देव के आयुष्य का बंध किया है, वह मृत्यु इस नियम के साथ तीन तथ्य संबद्ध हैं-द्रव्य लेश्या, भाव के आसन्नकाल में तेजोलेश्या के द्रव्यों को ग्रहण कर उसके भाव में लेश्या और उत्पत्स्यमान स्थान में प्राप्त होने वाली लेश्या। वर्तमान परिणत हो मरेगा और मृत्यु के पश्चात् ज्योतिष्क देव के रूप में उत्पन्न जन्म में अगले जन्म के आयुष्य का बंध हो जाता है। मृत्यु के समय होगा। उसी लेश्या के द्रव्यों का ग्रहण किया जाता है, जिस लेश्या के स्थान
चौबीस दण्डकों में लेश्या की प्राप्ति की जानकारी के लिए देखें यंत्र
दण्डक-अंक
जीव
लेश्या
पहला
सात नारकी पहली, दूसरी तीसरी चौथी
पांचवीं
तीन प्रथम (कृष्ण, नील, कापोत) कापोत कापोत वाले अधिक, नील वाले कम नील नील वाले अधिक, कृष्ण वाले कम कृष्ण महाकृष्ण चार प्रथम (पद्म, शुक्ल छोड़कर)
दूसरे से तेरहवां, सोलहवां
छठी सातवीं दस भवनपति तथा पृथ्वीकाय, अप्काय, वनस्पतिकाय तेजस्काय, वायुकाय, तीन विकलेन्द्रिय
तीन प्रथम
चौदहवां, पन्द्रहवां, सत्रहवें से उन्नीसवें तक बीसवां
तीन प्रथम
छह
असंज्ञी (अमनस्क) तिर्यंच पंचेन्द्रिय, संज्ञी (समनस्क) तिर्यंच पंचेन्द्रिय असंज्ञी मनुष्य, संज्ञी कर्मभूमिज मनुष्य, यौगलिक मनुष्य
इक्कीसवां
तीन प्रथम
बाईसवां तेईसवां चौबीसवां
व्यन्तर ज्योतिष्क प्रथम, द्वितीय स्वर्ग, प्रथम किल्विषिक, तृतीय, चतुर्थ, पंचम स्वर्ग तथा द्वितीय किल्विषिक, तृतीय किल्बिषिक, छठे स्वर्ग से अनुत्तरविमान
चार प्रथम चार प्रथम एक-तेजस् एक-तेजस् एक-पद्म एक-शुक्ल
___ 'जल्लेसाई दव्वाइं परियाइत्ता' का अर्थ है जिस लेश्या संबंधी द्रव्यों (पुद्गलों) का ग्रहण कर, इस वाक्यांश में द्रव्य लेश्या अथवा पौद्गलिक लेश्या के ग्रहण की बात कही गई है। द्रव्य लेश्या के तीन अर्थ हो सकते हैं
१. भाव लेश्या के लिए प्रयोजनीय पुद्गल, जिन्हें ग्रहण कर भाव लेश्या प्रवृत्त होती है।
२. शरीर का वर्ण
३. आभावलय अथवा आभामण्डल
प्रस्तुत प्रकरण में द्रव्य लेश्या का अर्थ भाव लेश्या के लिए प्रयोजनीय पुद्गल किया जा सकता है। इससे फलित होता है कि मृत्यु के आसन्न काल में भावी जन्म के अनुरूप द्रव्य और भाव लेश्या की परिणति हो जाती है। वृत्तिकार ने भी इस ओर इंगित किया है।
१. उत्तर. ३४/५८-६०
लेसाहि सव्वाहिँ पढ़मे समयम्मि परिणयाहिं तु। न वि कस्स वि उववाओ, परे भवे अस्थि जीवस्स ॥ लेसाहिँ सव्याहिं, चरमे समयम्मि परिणयाहिं तु। न वि कस्सवि उववाओ, परे भवे अस्थि जीवस्स ॥
अंतमुहुत्तम्मि गए, अंतमुत्तम्मि सेसए चेव।
लेसाहिं परिणयाहिं, जीवा गच्छति परलोयं ॥ २. भ. वृ. ३/१८३--'जल्नेसाइंति या लेश्या येषां द्रव्याणां तानि यल्लेश्यानि यस्या
लेश्यायाः सम्बन्धीनीत्यर्थः, 'परियाइत्त'ति पर्यादाय परिगृह्य भावपरिणामेन काल करोति म्रियते तल्लेश्येषु नारकेषूत्पद्यते।
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