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________________ ७८ भगवई श.३ : उ.४ : सू.१७२-१८५ करते वे वायु अथवा देव के द्वारा प्रेरित होकर चलते है।" ठाणं में वायु और देव के द्वारा बादलों की गति होने का उल्लेख है। शब्द-विमर्श चक्रवाल-चक्का। किंलेसोववाय-पदं किलेश्योपपात-पदम् किलेश्योपपाद-पद १८३. जीवे णं भंते! जे भविए नेरइएसु जीवः भदन्त! यः भव्यः नैरयिकेषु उपपत्तुं १८३. भन्ते! जो जीव नैरयिकों में उपपन्न होने उववज्जित्तए, से णं भंते! किंलेस्सेसु स भदन्त! किलेश्येषु उपपद्यते? योग्य है, वह भंते! कौन-सी लेश्या वाले नैरयिकों उववज्जइ? में उपपन्न होता है? गोयमा! जल्लेस्साई दव्वाई परियाइत्ता कालं गौतम! यल्लेश्यानि द्रव्याणि पर्यादाय कालं गौतम! जो जीव जिस लेश्या वाले द्रव्यों को ग्रहण करेइ, तल्लेस्सेसु उववज्जइ, तं जहा- करोति, तल्लेश्येषु उपपद्यते, तद् यथा- कर मरता है, वह उसी लेश्या वाले नैरयिकों में कण्हलेस्सेसु वा, नीललेस्सेसु वा, काउलेस्सेसु कृष्णलेश्येषु वा, नीललेश्येषु वा, कापोत- उपपन्न होता है, जैसे-कृष्ण लेश्या वाले नैरयिकों वा। एवं जस्स जा लेस्सा सा तस्स लेश्येषु वा। एवं यस्य या लेश्या सा तस्य में अथवा नील लेश्या वाले नैरयिकों में अथवा भाणियव्वा। जावभणितव्या। यावत् कापोत लेश्या वाले नैरयिकों में। इस प्रकार जिसकी जो लेश्या हो, उसके लिए वह लेश्या वक्तव्य है। यावत् १८४. जीवे णं भंते! जे भविए जोइसिएसु जीवः भदन्त! यः भव्यः ज्योतिष्केषु उपपत्तुं १८४. भन्ते! जो जीव ज्योतिष्कों में उपपन्न होने उववज्जित्तए, से णं भंते! किंलेस्सेसु उव- स भदन्त! किलेश्येषु उपपद्यते? योग्य है, वह भंते! कौन-सी लेश्या वाले ज्योतिष्क वज्जइ? देवों में उपपन्न होता है? गोयमा! जल्लेस्साई दव्वाइं परियाइत्ता कालं गौतम! यल्लेश्यानि द्रव्याणि पर्यादाय कालं गौतम! जो जीव जिस लेश्या वाले द्रव्यों को ग्रहण करेइ, तल्लेस्सेसु उववज्जइ, तं जहा- करोति, तल्लेश्येषु उपपद्यते, तद् यथा- कर मरता है, वह उसी लेश्या वाले ज्योतिष्क तेउलेस्सेसु ॥ तेजोलेश्येषु। देवों में उपपन्न होता है, जैसे-तेजोलेश्या वालों १८५. जीवे णं भंते! जे भविए वेमाणिएसु जीवः भदन्त! यः भव्यः वैमानिकेषु उपपत्तुं १८५. भन्ते! जो जीव वैमानिकों में उपपन्न होने उववज्जित्तए, से णं भंते! किंलेस्सेसु उवव- स भदन्त! किलेश्येषु उपपद्यते? योग्य है, वह कौन-सी लेश्या वाले वैमानिक देवों ज्जइ? में उपपन्न होता है? गोयमा! जल्लेस्साई दव्वाइं परियाइत्ता कालं गौतम! यल्लेश्यानि द्रव्याणि पर्यादाय कालं गौतम! जो जीव जिस लेश्या वाले द्रव्यों का ग्रहण करेइ तल्लेस्सेसु उववज्जइ, तं जहा- करोति, तल्लेश्येषु उपपद्यते, तद् यथा- कर मरता है, वह उसी लेश्या वालों में उपपन्न तेउलेस्सेसु वा, पम्हलेस्सेसु वा, सुक्कलेस्सेसु तेजोलेश्येषु वा पद्मलेश्येषु वा शुक्ललेश्येषु होता है, जैसे-तेजोलेश्या के द्रव्यों को ग्रहण कर वा ॥ वा॥ मरने वाला तेजोलेश्या वालों में, पद्मलेश्या के द्रव्यों को ग्रहण कर मरने वाला पद्मलेश्या वालों में, शुक्ल लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण कर मरने वाला शुक्ल लेश्या वालों में। भाष्य १. सूत्र १८३-१८५ प्रस्तुत आलापक में लेश्या और पुनर्जन्म के सिद्धान्त का निर्देश है। लेश्या का एक नियम है कि जीवन के अंतिम समय में जो लेश्या होती है, मृत्यु के पश्चात् अगले जन्म में जीव उसी लेश्या वाले स्थानों में जन्म लेता है। उत्तरज्झयणाणि में इस नियम की विशेष जानकारी उपलब्ध है। पहले समय में परिणत सभी लेश्याओं में कोई भी जीव दूसरे भाव में उत्पन्न नहीं होता। अंतिम समय में परिणत सभी लेश्याओं में कोई भी जीव दूसरे भव में उत्पन्न नहीं होता। लेश्याओं की परिणति १. भ. वृ. ३/१७२-१७४-बलाहकस्याजीवत्वेन विकुर्वणाया असंभवात् परिणामयितुमित्युक्तं, परिणामश्चास्य विश्रसारूपः 'नो आयडीए' ति अचेतनत्वान्मेघस्य विवक्षितायाः शक्तरभावान्नात्मद्धर्या गमनमस्ति, बायुना देवेन वा प्रेरितस्य तु स्यादपि गमनम्। २. टाणं, ३/३५६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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