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भगवई
श.१: उ.२ः सू.६५-६६
६६. मणुस्सा णं भंते ! सब्बे समकिरिया ? गोयमा ! नो इणद्वे समढे ।
मनुष्याः भदन्त ! सर्वे समक्रियाः ? गौतम ! नो अयमर्थः समर्थः।
६६. भन्ते ! क्या सब मनुष्य समान क्रिया वाले हैं? गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं हैं।
६७. से केणडेणं भंते ! एवं बुच्चइ-मणुस्सा तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-मनुष्याः ६७. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है नो सब्बे समकिरिया? नो सर्वे समक्रिया:?
-सब मनुष्य समान क्रिया वाले नहीं हैं? गोयमा ! मणुस्सा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा गौतम ! मनुष्या त्रिविधाः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा गौतम ! मनुष्य तीन प्रकार के प्रज्ञाप्त हैं, जैसे
-सम्मदिट्ठी, मिच्छदिट्ठी, सम्मामिच्छ- -सम्यग्दृष्टयः, मिथ्यादृष्टयः, सम्यग्मिथ्या- सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यगमिथ्यादृष्टि । दिट्ठी ।
दृष्टयः । तत्थ गंजेते सम्मदिट्ठी, ते तिविहा पण्णत्ता,
इनमें जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे तीन प्रकार के प्रज्ञप्त तंजहा-संजया, असंजया, संजयासंजया। तद् यथा-संयताः, असंयताः, संयता- _हैं, जैसे-संयत, असंयत और संयतासंयत ।
संयताः । तत्थ णं जेते संजया ते दुविहा पण्णत्ता, तं तत्र ये एते संयताः ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद् जो संयत हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसेजहा सरागसंजया य, वीतरागसंजया यथा-सरागसंयताःच, वीतरागसंयताःच। सरागसंयत और वीतरागसंयत।
जो वीतरागसंयत हैं, वे अक्रिय हैं उनके ये पांचों क्रियाएं नहीं होती। जो सरागसंयत हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे -प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत ।
जो अप्रमत्तसंयत हैं, उनके एक मायाप्रत्यया क्रिया होती है। जो प्रमत्तसंयत हैं, उनके दो क्रियाएं होती हैं, जैसे -आरंभिकी और मायाप्रत्यया।
तत्य णं जेते वीतरागसंजया, ते णं तत्र ये एते वीतरागसंयताः ते अक्रियाः।। अकिरिया। तत्य णं जेते सरागसंजया ते दुविहा तत्र ये एते सरागसंयताः ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, पण्णत्ता, तं जहा—पमत्तसंजया य, तद् यथा-प्रमत्तसंयताः च, अप्रमत्तसंयताः अप्पमत्तसंजया य।
च। तत्थ णं जेते अप्पमत्तसंजया, तेसि णं एगा तत्र ये एते अप्रमत्तसंयताः, तेषाम् एका मायावत्तिया किरिया कजइ।
मायाप्रत्यया क्रिया क्रियते । तत्थ णं जेते पमत्तसंजया, तेसि णं दो तत्र ये एते प्रमत्तसंयताः, तेषां द्वे क्रिये किरियाओ कजंति, तं जहा-आरंभिया क्रियेते, तद् यथा-आरंभिकी च, माया- य, मायावत्तिया य ।
प्रत्यया च। तत्थ णं जेते संजयासंजया, तेसि णं आइ- तत्र ये एते संयतासंयताः, तेषाम् आदिमाः ल्लाओ तिण्णि किरियाओ कजंति, तं जहा तिस्रः क्रियाः क्रियन्ते, तद् यथा-आरम्भि-
-आरंभिया, पारिग्गहिया, माया- की, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया । वत्तिया। असंजयाणं चत्तारि किरियाओ असंयतानां चततः क्रियाः क्रियन्तेकजंति-आरंभिया, पारिग्गहिया, माया- आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, वत्तिया, अप्पचक्खाणकिरिया । अप्रत्याख्यानक्रिया । मिच्छदिट्ठीणं पंच-आरंभिया, पारिग्ग- मिथ्यादृष्टीनां पञ्च–आरम्भिकी, पारिहिया, मायावत्तिया, अपचक्खाणकिरिया, ग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिया, मिच्छादंसंणवत्तिया। सम्मामिच्छदिट्ठीणं मिथ्यादर्शनप्रत्यया । सम्यगमिथ्यादृष्टीनां पंच॥
पञ्च।
जो संयतासंयत हैं, उनके प्रथम तीन क्रियाएं होती हैं, जैसे-आरंभिकी, पारिग्रहिकी और मायाप्रत्यया। असंयत जीवों के चार क्रियाएं होती हैं—आरंभिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यानक्रिया । मिथ्यादृष्टि जीवों के पांच क्रियाएं होती हैंआरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिया और मिथ्यादर्शनप्रत्यया। सम्यगमिथ्यादृष्टि जीवों के भी पांच क्रियाएं होती हैं।
६८. मणुस्सा णं भंते ! सव्वे समाउया? सब्बे
समोववत्रगा? गोयमा ! नो इणद्वे समदु ।
मनुष्याः भदन्त ! सर्वे समायुषः ? सर्वे समो- ६.. भन्ते ! क्या सब मनुष्य समान आयु वाले हैं? पपन्नकाः ?
क्या वे एक साथ उपपन्न हैं ? गौतम ! नो अयमर्थः समर्थः ।
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है।
६६. से केणटेणं भंते ! एवं वुचइ-मणुस्सा
नो सबे समाउया? नो सब्वे समोववनगा?
तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते--मनुष्याः ६६. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा नो सर्वे समायुषः ? नो सर्वे समोपपन्नकाः ? है-सब मनुष्य समान आयु वाले नहीं हैं और
एक साथ उपपन्न नहीं हैं ? गौतम ! मनुष्याः चतुर्विधाः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा गौतम ! मनुष्य चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१.अस्त्येकके समायुषः समोपपन्नकाः। कुछ मनुष्य समान आयु वाले और एक साथ
गोयमा ! मणुस्सा चउब्बिहा पण्णत्ता, तं जहा -१.अत्थेगइया समाउया समो
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