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________________ भगवई ५३ श.१: उ.२ः सू.८५-८८ ५५. से केणटेणं भंते ! एवं बुचइ- तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-पञ्चे- ८५. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा हैपंचिंदियतिरिक्खजोणिया नो सव्वे सम- न्द्रियतिर्यग्योनिकाः नो सर्वे समक्रियाः? सब पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव समान क्रिया वाले किरिया ? नहीं हैं ? गोयमा! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा गौतम ! पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः त्रिविधाः गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव तीन प्रकार पण्णत्ता, तं जहा सम्मदिट्ठी, मिच्छ- प्रज्ञप्ताः, तद् यथा-सम्यग्दृष्टयः मिथ्यादृष्टयः के प्रज्ञप्त हैं, जैसे—सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और दिडी, सम्मामिच्छदिट्ठी। सम्यग्मिथ्यादृष्टयः। सम्यग्मिथ्यादृष्टि । तत्य णं जेते सम्मदिट्ठी ते दुविहा पण्णत्ता, तत्र ये एते सम्यग्दृष्टयः ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, इनमें जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, तं जहा असंजया य, संजयासंजया य । तद् यथा-असंयताः च, संयतासंयतः च । जैसे—असंयत और संयतासंयत । तत्थ णं जेते संजयासंजया, तेसि णं तिण्णि तत्र ये एते संयतासंयताः, तेषां तिस्रः क्रियाः इनमें जो संयतासंयत हैं, उनके तीन क्रियाएं होती किरियाओ कजंति, तं जहा-आरंभिया, क्रियन्ते, तद् यथा-आरंभिकी, पारिग्रहि- हैं, जैसे-आरम्भिकी, पारिग्राहिकी, मायाप्रत्यपारिग्गहिया, मायावत्तिया। की, मायाप्रत्यया। असंजयाणं चत्तारि। मिच्छादिट्ठीणं पंच। असंयतानां चतस्रः। मिथ्यादृष्टीनां पञ्च । असंयत जीवों के चार, मिथ्यादृष्टि और सम्यगसम्मामिच्छदिट्ठीणं पंच॥ सम्यमिथ्यादृष्टीनां पञ्च । मिथ्यादृष्टि जीवों के पांच क्रियाएं होती हैं। या। मणुस्सादीणं समाहार-समसरीरादि-पदं मनुष्यादीनां समाहार-समशरीरादि-पदम् मनुष्यों आदि का समान आहार, समान शरीर आदि-पद ८६. मणुस्सा णं भंते ! सवे समाहारा ? सव्वे समसरीरा ? सब्बे समुस्सासनीसासा? गोयमा ! नो इणटे समढे ॥ मनुष्याः भदन्त ! सर्वे समाहाराः ? सर्वे सम- ८६. भन्ते ! क्या सब मनुष्य समान आहार, समान शरीराः ? सर्वे समोच्छ्वासनिःश्वासाः ? शरीर और समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले हैं ? गौतम ! नो अयमर्थः समर्थः। गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। ६७. सेकेणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-मणुस्सा तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-मनुष्याः १७. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा नो सव्वे समाहारा ? नो सब्बे समशरीरा? नो सर्वे समाहाराः ? नो सर्वे समशरीराः ? है-सब मनुष्य समान आहार, समान शरीर और नो सब्वे समुस्सासनीसासा ? नो सर्वे समोच्छ्वासनिःश्वासाः ? समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले नहीं हैं? गोयमा ! मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा गौतम ! मनुष्याः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा गौतम ! मनुष्य दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे–महासरीरा य, अप्पसरीरा य। -महाशरीराः च, अल्पशरीराः च । महाशरीरी और अल्पशरीरी। तत्य णं जेते महासरीरा ते बहुतराए पोग्गले तत्र ये एते महाशरीराः ते बहुतरान् पुद्गलान् इनमें जो महाशरीरी हैं, वे बहुतर पुद्गलों का आहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामेति, आहरंति, बहुतरान् पुद्ग्लान् परिणमयन्ति, आहार करते हैं, बहुतर पुद्गलों का परिणमन बहुतराए पोग्गले उस्ससंति, बहुतराए बहुतरान् पुद्गलान् उच्छ्वसन्ति, बहुतरान् करते हैं, बहुतर पुद्गलों का उच्छ्वास करते हैं पोग्गले नीससंति; आहच आहारेंति, पुद्गलान् निःश्वसन्ति; आहत्य आहरन्ति, और बहुतर पुद्गलों का निःश्वास करते हैं। वे आहच परिणामेति, आहच उस्ससंति आहत्य परिणमयन्ति, आहत्य उच्छ्वसन्ति, कदाचित् आहार करते हैं, कदाचित् परिणमन आहच नीससंति ॥ आहत्य निःश्वसन्ति। करते हैं, कदाचित् उच्छ्वास करते हैं जो कदाचित् निःश्वास करते हैं। तत्य णं जेते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए तत्र ये एते अल्पशरीराः ते अल्पतरान् पुद्- इनमें जो अल्पशरीरी हैं, वे अल्पतर पुदगलों का पोग्गले आहारैति, अप्पतराए पोग्गले परि- गलान् आहरन्ति, अल्पतरान् पुद्गलान् परि- आहार करते हैं, अल्पतर पुद्गलों का परिणामन णामेति, अप्पतराए पोग्गले उस्ससंति, णमयन्ति, अल्पतरान् पुद्गलान् उच्छ्वसन्ति, करते हैं, अल्पतर पुद्गलों का उच्छ्वास करते हैं अपतराए पोग्गले नीससंति; अभिक्खणं अल्पतरान् पुद्गलान निःश्वसन्ति; अभीक्ष्णम् और अल्पतर पुद्गलों का नि:श्वास करते हैं। आहरेंति, अमिरवणं परिणाति, जमि- आइरन्ति, अभीण परिणभयन्ति, अभीक्ष्णम् वे बार-बार आहार करते हैं, बार-बार परिणभन अखण उत्ससंति, अभिवरवणं नीससंति । उच्छवसन्ति, अभी निवसन्ति । तत करते हैं, बार-बार उच्छ्वास करते हैं और बारसे तेणदेणं गोचमा : एवं बुच्चइ-मणुस्सा तनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते---मनाया: ना -बार निःश्वास करते हैं। गौतम ! इस अपेक्षा मे नो सन्दे समाहारा, नोसले समपारा, न म समाहाराः, नो सर्वे एमागः नो मर्वे यह कहा जा रहा है-सव मनुष्य समान आहार, सोच्छवासनिःश्वासाः। समान शरीर और समान उच्छवास-नि:श्वास वाले नहीं हैं। ५८. पणुस्सा भते! सव्वे सनकम्मा ? गोधमा : नो इणडे समटे ।। मनुष्याः भदन्त ! सर्वे समकर्माणः । गौतम ! नो अयमर्थः समर्थः । ५८. भन्ते ! क्या सब मनुष्य समान कर्म वाले हैं? गौतम ! यह अर्थ मंगत नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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