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________________ श.१: उ.२ः सू.७७-८४ ५२ भगवई ७७. पुटविकाइया णं भंते ! सब्बे समवेदणा? पृथिवीकायिकाः भदन्त! सर्वे समवेदनाः? ७७. भन्ते ! क्या सब पृथ्वीकायिक जीव समान वेदना वाले हैं ? हां, गौतम ! सब पृथ्वीकायिक जीव समान वेदना वाले हैं। हंता गोयमा ! पुढविकाइया सब्बे सम- हन्त गौतम ! पृथिवीकायिकाः सर्वे सम- वेदणा॥ वेदनाः। ७८. से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-पुढवि- तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते-पृथिवी- ७८. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है काइया सन्चे समवेदणा ? कायिकाः सर्वे समवेदनाः ? सब पृथ्वीकायिक जीव समान वेदना वाले हैं ? गोयमा ! पुढविकाइया सब्बे असण्णी गौतम ! पृथिवीकायिकाः सर्वे असंज्ञिनः गौतम ! सब पृथ्वीकायिक जीव असंज्ञी (अमनअसण्णिभूतं अणिदाए वेदणं वेदेति । से असंज्ञिभूतां अनिदया वेदनां वेदयन्ति । तत् स्क) हैं। वे असंज्ञी के होने वाली वेदना को तेणद्वेणं गोयमा ! एवं युचइ-पुढवि- तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-पृथिवी- अव्यक्त रूप में (मूर्छित की भांति) अनुभव करते काइया सब्वे समवेदणा ॥ कायिकाः सर्वे समवेदनाः। हैं। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सव पृथ्वीकायिक जीव समान वेदना वाले ७६. पुढविकाइया णं भंते ! सबे पृथिवीकायिकाः भदन्त ! सर्वे समक्रियाः ? ७६, भन्ते ! क्या सब पृथ्वीकायिक जीव समान समकिरिया? क्रिया वाले हैं ? हंता गोयमा ! पुटविकाइया सब्चे सम- हन्त गौतम ! पृथिवीकायिकाः सर्वे सम- हां, गौतम ! सब पृथ्वीकायिक जीव समान क्रिया किरिया। क्रियाः। वाले हैं। ८०.से केणटेणं भंते ! एवं बुचइ-पुढवि- तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-पृथिवी- ८०. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है काइया सव्वे समकिरिया ? कायिकाः सर्वे समक्रियाः ? -सब पृथ्वीकायिक जीव समान क्रिया वाले हैं? गोयमा ! पढविकाइया सब्बे मायीमिछा- गौतम ! पृथिवीकायिकाः सर्वे मायिमिथ्या- गौतम ! सब पृथ्वीकायिक जीव मायामिथ्यादृष्टि दिट्ठी। ताणं यतियाओ पंच किरियाओ दृष्टयः । तेषां नैयतिक्यः पंच क्रियाः क्रियन्ते, हैं। उनके निश्चित रूप से पांचों क्रियाएं होती कजंति, तं जहा-आरंभिया, पारिग्गहि- तद् यथा-आरंभिकी, पारिग्रहिकी, माया- हैं, जैसे-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, मायावत्तिया, अप्पचक्खाणकिरिया, प्रत्यया, अप्रत्यख्यानक्रिया, मिथ्यादर्शन- या, अप्रत्याख्यानक्रिया और मिथ्यादर्शनप्रत्यमिच्छादसणवत्तिया। से तेणडेणं गोयमा! प्रत्यया। तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते या। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा एवं बुचइ-पुटविकाइया सब्बे सम- -पृथिवीकायिकाः सर्वे समक्रियाः । है-सब पृथ्वीकायिक जीव समान क्रिया वाले किरिया॥ ५१. समाउया, समोववनगा जहा नेरइया तहा भाणियव्वा ॥ समायुषः, समोपपत्रकाः यथा नैरयिकाः तथा ८१. पृथ्वीकायिक जीवों के समान आयु और एक भणितव्याः । साथ उपपन्न होने का प्रकरण नैरयिक जीवों की भांति वक्तव्य है। ६२. जहा पुढविकाइया तहा जाव चउरिदिया।॥ यथा पृथिवीकायिकाः तथा यावच् चतु- ८२. अप्कायिक जीवों से लेकर चतुरिन्द्रिय जीवों रिन्द्रियाः। तक पूरा प्रकरण पृथ्वीकायिक जीवों की भांति वक्तव्य है। ६३. पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा णेरड्या, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः यथा नैरयिकाः, ३. पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव नैरयिक जीवों नाणत्तं किरियासु ॥ नानात्वं क्रियासु। की भांति वक्तव्य हैं, केवल क्रिया का विषय भिन्न ५४. पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! सब्बे पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः भदन्त ! सर्वे सम- १४. भन्ते ! क्या सब पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव समकिरिया ? क्रियाः ? समान क्रिया वाले हैं ? गोयमा ! णो इणद्वे समटे ।। गौतम ! नो अयमर्थः समर्थः । गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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