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भगवई
श.१: उ.२: सू.७१-७६
आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यान- अप्पचक्खाणकिरिया । तत्थ णं जेते क्रिया। तत्र ये एते मिथ्यादृष्टयः तेषां पञ्च मिच्छादिट्ठी तेसि णं पंच किरियाओ क्रियाः क्रियन्ते, तद् यथा-आरम्भिकी, कजंति, तं जहा-आरंभिया, पारिग्ग- पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्या- हिया, मायावत्तिया, अप्पचक्खाण- ख्यानक्रिया, मिथ्यादर्शनप्रत्यया । एवं सम्यग्- किरिया, मिच्छादसणवत्तिया। एवं सम्मा- मिथ्यादृष्टयोऽपि । तत् तेनार्थेन गौतम ! एव- मिच्छदिट्ठीणं पि। से तेणद्वेणं गोयमा ! मुच्यते-नैरयिकाः नो सर्वे समक्रियाः। एवं वुच्चइ–नेरइया नो सब्बे समकिरिया ॥
और अप्रत्याख्यानक्रिया। इनमें जो मिथ्यादृष्टि हैं, उनके पांच क्रियाएं होती है, जैसे—आरंभिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिया
और मिथ्यादर्शनप्रत्यया। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों के भी पांच क्रियाएं होती हैं। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब नैरयिक समान क्रिया वाले नहीं हैं।
७२. नेरइया णं भंते ! सब्बे समाउया ?
समोववनगा? गोयमा ! णो इणद्वे समढे ॥
नैरयिकाः भदन्त ! सर्वे समायुषः ? सर्वे ७२. भन्ते ! क्या सब नैरयिक समान आयु वाले समोपपन्नकाः?
हैं? क्या वे एक साथ उपपन्न हैं ? गौतम ! नो अयमर्थः समर्थः।
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है।
७३. से केणद्वेणं भंते ! एवं बुचइ–नेरइया तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-नैरयिकाः ७३. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है नो सब्वे समाउया ? नो सब्बे समोववन्नगा? नो सर्वे समायुषः ? नो सर्वे समोपपत्रकाः? -सब नैरयिक समान आयु वाले नहीं हैं और
एक साथ उपपन्न नहीं हैं ? गोयमा ! नेरइया चउब्विहा पण्णत्ता, तं गौतम ! नैरयिकाः चतुर्विधाः प्रज्ञप्ताः, तद् गौतम ! नैरयिक चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे--- जहा-१. अत्थेगइया समाउया समो- यथा-१.अस्त्येकके समायुषः समोपपत्र- १.कुछ नैरयिक समान आयु वाले और एक साथ ववत्रगा २. अत्यंगइया समाउया विसमो- काः २.अस्त्येकके समायुषः विषमोपपन्नकाः उपपन्न हैं, २.कुछ नैरयिक समान आयु वाले और ववनगा ३. अत्यंगइया विसमाउया समो- ३.अस्त्येकके विषमायुषः समोपपन्नकाः भिन्न काल में उपपन्न हैं, ३.कुछ नैरयिक विषम ववनगा ४. अत्थेगइया विसमाउया ४.अस्त्येकके विषमापुषः विषमोपपन्नकाः। आयु वाले और एक साथ उपपन्न हैं, ४.कुछ विसमोववनगा। से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं तत तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यते-नैरयिकाः नैरयिक विषम आयु वाले और भिन्न काल में बुचइ–नेरइया नो सव्वे समाउया, नो नो सर्वे समायुषः, नो सर्वे समोपपत्रकाः। उपपन्न हैं। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा सब्बे समोववनगा ॥
रहा है-सब नैरयिक समान आयु वाले नहीं हैं और एक साथ उपपन्न नहीं हैं।
७४. असुरकुमारा णं भंते ! सब्वे समाहारा? असुरकुमाराः भदन्त ! सर्वे समाहाराः ? सर्वे ७४. भन्ते ! क्या सब असुरकुमार देव समान आहार सब्बे समसरीरा? समशरीराः?
और समान शरीर वाले हैं ? जहा नेरइया तहा भाणियब्वा, नवरं- यथा नैरयिकाः तथा भणितव्याः, नवरं- यह पूरा प्रकरण नैरयिक जीवों की भांति वक्तव्य कम्म-वण्ण-लेस्साओ परिवत्तेयवाओ कर्म-वर्ण-लेश्याः परिवर्तितव्याः (पूर्वोपपन्नाः है । केवल इतना अन्तर है—कर्म, वर्ण और (पुब्बोववना महाकम्मतरा, अविसुद्ध- महत्तरकर्माणः अविशुद्धतरवर्णाः अविशुद्ध- लेश्याओं का विषय परिवर्तनीय है-नारकीय वण्णतरा, अविसुद्धलेसतरा। पच्छोववत्रा तरलेश्याः। पश्चादुपपन्नाः प्रशस्ताः। शेषं जीवों के वर्णन से विपरीत रूप में वक्तव्य है। पसत्था। सेसं तहेव)॥ तथैव)।
(पूर्व उपपन्न होने वाले असुरकुमार देव महत्तर कर्मवाले, अविशुद्धतर वर्ण और अविशुद्धतर लेश्या वाले हैं । पश्चाद् उपपन्न असुरकुमार देव अल्पतर कर्म वाले, विशुद्धतर वर्ण और विशुद्धतर लेश्या वाले हैं। शेष नैरयिक की भांति वक्तव्य
७५. एवं जाव थणियकुमारा॥
एवं यावत् स्तनितकुमाराः ।
७५. इसी प्रकार नागकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक के देवों के विषय में वक्तव्य हैं।
७६. पुटविकाइयाणं आहार-कम्म-वण्ण-
लेस्सा जहा णेरइयाणं॥
पृथिवीकायिकानां आहार-कर्म-वर्ण लेश्याः यथा नैरयिकाणाम् ।
७६. पृथ्वीकायिक जीवों के आहार, कर्म, वर्ण और लेश्या नैरयिक जीवों की भांति वक्तव्य हैं।
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