________________
भगवई नेरइयादीणं समाहार-समसरीरादि-पदं
४६
श.१: उ.२: सू.६०-६४ नैरयिकादीनां समाहार-समशरीरादि-पदम् नैरयिक आदि जीवों का समान आहार,
समान शरीर आदि-पद
६०. नेरइया णं मंते ! सबे समाहारा ? सव्वे समसरीरा ? सब्बे समुस्सासनीसासा? गोयमा ! नो इणद्वे समझे ॥
नैरयिकाः भदन्त ! सर्वे समाहाराः ? सर्वे ६०. 'भन्ते ! क्या सब नैरयिक समान आहार, समशरीराः ? सर्वे समोच्छ्वासनिःश्वासाः? समान शरीर और समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले गौतम ! नो अयमर्थः समर्थः ।
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है।
६१. से केणटेणं भंते ! एवं बुचइ-नेरइया तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-नो सर्वे ६१. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा हैं नो सब्बे समाहारा ? नो सम्बे समसरीरा? समाहाराः ? नो सर्वे समशरीराः ? नो सर्वे -सब नैरयिक समान आहार, समान शरीर और नो सब्वे समुस्सासनीसासा ? समोच्छ्वासनिःश्वासाः ?
समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले नहीं होते ? गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा गौतम ! नैरयिकाः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे
-महासरीरा य, अप्पसरीरा य । तत्य -महाशरीराः च, अल्पशरीराः च, तत्र ये महाशरीरी और अल्पशरीरी। इनमें जो महाशरीरी णं जेते महासरीरा ते बहुतराए पोग्गले एते महाशरीराः ते बहुतरान् पुद्गलान् हैं, वे बहुतर पुद्गलों का आहार करते हैं, बहुतर आहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामेंति, आहरन्ति, बहुतरान् पुद्गलान् परिणमयन्ति, पुद्गलों का परिणमन करते हैं और बहुतर पुद्गलों बहुतराए पोम्गले उस्ससंति, बहुतराए बहुतरान् पुग्लान् उच्छ्वसन्ति, बहुतरान् का उच्छ्वास करते हैं, बहुतर पुद्गलों का पोग्गले नीससंति; अभिक्खणं आहारेंति, पुद्गलान् निःश्वसन्ति; अभीक्ष्णम् आहरन्ति, निःश्वास करते हैं; बार-वार आहार करते हैं, अभिक्खणं परिणामेति, अभिक्खणं अभीक्ष्णं परिणमयन्ति, अभीक्ष्णम् उच्छ्व- बार-बार परिणमन करते हैं, बार-बार उच्छ्वास ऊससंति, अभिक्खणं नीससंति। सन्ति, अभीक्ष्णं निःश्वसन्ति।
करते हैं और बार-बार निःश्वास करते हैं। तत्य णं जेते अप्पसरीरा ते णं अपतराए तत्र ये एते अल्पशरीराः ते अल्पतरान् इनमें जो अल्पशरीरी हैं, वे अल्पतर पुद्गलों का पोग्गले आहारेंति, अप्पतराए पोग्गले पुद्गलान् आहरन्ति, अल्पतरान् पुद्गलान् आहार करते हैं, अल्पतर पुद्गलों का परिणमन परिणामेति, अप्पतराए पोग्गले उस्ससंति, परिणमयन्ति, अल्पतरान् पुद्गलान् उच्छ्- करते हैं, अल्पतर पुद्गलों का उच्छ्वास करते हैं अप्पतराए पोग्गले नीससंति; आहच वसन्ति, अल्पतरान् पुद्गलान् निःश्वसन्ति; और अल्पतर पुद्गलों का निःश्वास करते हैं; वे आहारेंति, आहच परिणामेति, आहच आहत्य आहरन्ति, आहत्य परिणमयन्ति, कदाचित् (नियमित समय में) आहार करते हैं, उस्ससंति, आहच्च नीससंति। से तेणटेणं आहत्य उच्छ्वसन्ति, आहत्य निःश्वसन्ति। कदाचित परिणमन करते हैं, कदाचित् उच्छ्वास
करते है और कदाचित् निःश्वास करते हैं। गोयमा ! एवं बुचइ-नेरइया नो सब्बे तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-नैरयिकाः गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब समाहारा, नो सब्बे समसरीरा, नो सव्वे नो सर्वे समाहाराः, नो सर्वे समशरीराः, नो नैरयिक समान आहार, समान शरीर और समान समुस्सासनीसासा ॥ सर्वे समोच्छ्वासनिःश्वासाः ।
उच्छ्वास-निःश्वास वाले नहीं होते।
६२. नेरइया णं भंते ! सब्बे समकम्मा ? गोयमा ! नो इणद्वे समटे ॥
नैरयिकाः भदन्त ! सर्वे समकर्माणः ? गौतम ! नो अयमर्थः समर्थः ।
६२. भन्ते ! क्या सब नैरयिक समान कर्म वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है।
६३. से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ-नेरइया
नो सव्वे समकम्मा ? गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णता, तं जहा
-पुब्बोववनगा य, पच्छोववनगा य। तत्थ णं जेते पुचोववनगा ते णं अप्पकम्म- तरागा। तत्थ णं जेते पच्छोववनगा ते णं महाकम्मतरागा। से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुचइ-नेरइया नो सब्बे समकम्मा॥
तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते-नैरयिकाः ६३. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है नो सर्वे समकर्माणः ?
-सब नैरयिक समान कर्म वाले नहीं हैं ? गौतम ! नैरयिकाः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद् गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पूर्व यथा-पूर्वोपपन्नकाः च, पश्चादुपपत्रकाः उपपन्न और पश्चाद् उपपन्न। इनमें जो पूर्व च। तत्र ये एते पूर्वोपपत्रकाः ते अल्पतरक- उपपन्न हैं, वे अल्पतरकर्म वाले है। इनमें जो कर्माणः। तत्र ये एते पश्चादुपपन्नकाः ते पश्चाद् उपपन्न हैं, वे महत्तरकर्म वाले हैं। गौतम! महत्तरककर्माणः । तत् तेनार्थेन गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब नैरयिक एवमुच्यते-नैरयिकाः नो सर्वे समकर्माणः। समान कर्म वाले नहीं हैं।
६४. नेरइया णं मंते ! सब्बे समवण्णा ?
गोयमा ! नो इणद्वे समढे ।
नैरयिकाः भदन्त ! सर्वे समवर्णाः ? गौतम ! नो अयमर्थः समर्थः।
६४. भन्ते ! क्या सब नैरयिक समान वर्ण वाले हैं?
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org