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बीओ उद्देसो : दूसरा उद्देशक
मूल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
५२. रायगिहे नगरे समोसरणं। परिसा णिग्गया जाव एवं वयासी
राजगृहे नगरे समवसरणम् । परिषद् निर्गता ५२. राजगृह नगर में भगवान् का समवसरण। यावद् एवमवादीत्
परिषद् ने नगर से निर्गमन किया। भगवान् ने धर्म कहा। परिषद् वापस नगर में चली गई, यावत् गौतम स्वामी बोले
कम्म-वेयण-पदं
कर्म-वेदन-पद
कर्म-वेदन-पदम् जीवः भदन्त ! स्वयंकृतं दुःखं वेदयति ?
५३. जीवे णं भंते ! सयंकडं दुक्खं वेदेइ ?
५३. 'भन्ते ! क्या जीव स्वयंकृत दुःख का वेदन करता है? गौतम ! जीव किसी दःख का वेदन करता है. किसी दुःख का वेदन नहीं करता।
गोयमा ! अत्येगइयं वेदेइ, अत्यंगइयं नो वेदेइ॥
गौतम ! अस्त्येककं वेदयति, अस्त्येककं नो वेदयति ।
५४. से केणद्वेणं भंते ! एवं बुचइ-
अत्थेगइयं वेदेइ ? अत्येगइयं नो वेदेइ ?
गोयमा ! उदिण्णं वेदेइ, नो अणुदिण्णं वेदेइ । से तेणटेणं गोयमा! एवं बुच्चइ- अत्येगइयं वेदेइ, अत्थेगइयं नो वेदेइ॥
तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-अस्त्ये- ५४. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है ककं वेदयति ? अस्त्येककं नो वेदयति? -जीव किसी दुःख का वेदन करता है, किसी
दुःख का वेदन नहीं करता? गौतम ! उदीर्णं वेदयति, नो अनुदीर्णं गौतम ! जीव उदीर्ण (उदय-प्राप्त) दुःख का वेदन वेदयति । तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते- करता है, अनुदीर्ण (अनुदय-प्राप्त) दुःख का वेदन अस्त्येककं वेदयति, अस्त्येककं नो वेदयति। नहीं करता। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा
रहा है-जीव किसी दुःख का वेदन करता है, किसी दुःख का वेदन नहीं करता।
५५. एवं जाव वेमाणिए॥
एवं यावद् वैमानिकः।
५५. (नैरयिक से लेकर) वैमानिक तक इसी प्रकार
वक्तव्य है।
५६. जीवा णं भंते ! सर्यकडं दुक्खं वेदेति ?
जीवाः भदन्त ! स्वयंकृतं दुःखं वेदयन्ति ?
५६. भन्ते ! क्या जीव स्वयंकृत दुःख का वेदन करते हैं ? गौतम ! जीव किसी दुःख का वेदन करते हैं, किसी दुःख का वेदन नहीं करते।
गोयमा ! अत्थेगइयं वेदेति ? अत्यंगइयं नो वेदेति ॥
गौतम ! अस्त्येककं वेदयन्ति, अस्त्येककं नो वेदयन्ति।
५७. से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-
अत्थेगइयं वेदेति ? अत्थेगइयं नो वेदेति?
गोयमा ! उदिण्णं वेदेति, नो अणुदिण्णं वेदेति। से तेणडेणं गोयमा ! एवं वुचइ
-अत्यंगइयं वेदेति, अत्थेगइयं नो वेदेति।
तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-अस्त्ये- ५७. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा ककं वेदयन्ति ? अस्त्येककं नो वेदयन्ति ? है—जीव किसी दुःख का वेदन करते हैं, किसी
दुःख का वेदन नहीं करते? गौतम ! उदीर्णं वेदयन्ति, नो अनुदीर्णं गौतम ! जीव उदीर्ण दुःख का वेदन करते हैं, वेदयन्ति । तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते अनुदीर्ण दुःख का वेदन नहीं करते। गौतम !
-अस्त्येककं वेदयन्ति, अस्त्येककं नो इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-जीव किसी वेदयन्ति।
दुःख का वेदन करते हैं, किसी दुःख का वेदन नहीं करते ।
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