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________________ भगवई २६ श.१: उ.१: सू.१६-२७ मनोभक्ष्य आहार मानसिक संकल्प के द्वारा सम्पन्न होता है।' आहार शरीर के चय और उपचय का कारण है। यहां उसकी दृष्टि से ही चय और उपचय का विचार किया गया है। अनाहार के समय बहुत कम होते हैं। कोई भी प्राणी अधिक अनाहारक नहीं रह सकता।' २५. नेरइया णं भंते ! जे पोग्गले तेया- कम्मत्ताए गेहंति, ते किं तीतकालसमए गेहंति ? पडुप्पन्नकालसमए गेहंति ? अणागयकालसमए गेहंति ? नैरयिकाः भदन्त ! यान् पुद्गलान् तैजसक- २५.भन्ते ! नैरयिक जीव तैजस और कर्म शरीर मतया गृह्णन्ति, तान् किम् अतीतकालसमये के रूप में जिन पुद्गलों को ग्रहण करते हैं, क्या गृह्णन्ति ? प्रत्युत्पन्नकालसमये गृह्णन्ति ? उन्हें अतीत काल-समय में ग्रहण करते हैं? अनागतकालसमये गृह्णन्ति ? वर्तमान काल-समय में ग्रहण करते हैं ? भविष्य काल-समय में ग्रहण करते हैं ? गौतम ! नो अतीतकालसमये गृह्णन्ति, प्रत्यु- गौतम ! अतीत काल-समय में ग्रहण नहीं करते, त्पन्नकालसमये गृह्णन्ति, नो अनागतकाल- वर्तमान काल-समय में ग्रहण करते हैं, भविष्य समये गृह्णन्ति। काल-समय में ग्रहण नहीं करते । गोयमा ! नो तीयकालसमए गेहंति, पड़प्पनकालसमए गेण्हंति, नो अणागय- कालसमए गेहंति ॥ २६. नेरइया णं भंते ! जे पोग्गले तेया- नैरयिकाः भदन्त ! यान् पुद्गलान् तैजस- २६. भन्ते ! नैरयिक जीव तैजस और कर्म-शरीर कम्मत्ताए गहिए उदीरेति, ते कि तीयकाल- कर्मतया गृहीतान् उदीरयन्ति, तान् किम् के रूप में गृहीत जिन पुद्गलें की उदीरणा करते समयगहिए पोग्गले उदीरति ? पडुप्पत्र- अतीतकालसमयगृहीतान् पुद्गलान् उदीरय- हैं, क्या अतीत काल-समय में गृहीत उन पुद्गलों कालसमए घेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति ? ति ? प्रत्युत्पन्नकालसमये गृह्यमाणान् की उदीरणा करते हैं ? क्या वर्तमान काल-समय गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति ? पुद्गलान् उदीरयन्ति ? ग्रहणसमयपुरस्कृतान् में गृह्यमाण पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ? क्या पुद्गलान् उदीरयन्ति ? ग्रहण-समय के पुरोवर्ती (ग्रहीष्यमाण) पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ? गोयमा ! तीयकालसमयगहिए पोग्गले गौतम ! अतीतकालसमयगृहीतान् पुद्गलान् गौतम ! अतीत काल-समय में गृहीत- पुद्गलों उदीरेंति, नो पडुप्पत्रकालसमए घेप्पमाणे उदीरयन्ति, नो प्रत्युत्पत्रकालसमये गृह्यमाणान् । की उदीरणा करते हैं, वर्तमान काल-समय में पोग्गले उदीरेंति, नो गहणसमयपुरक्खडे पुद्गलान् उदीरयन्ति, नो ग्रहणसमय- गृह्यमाण पुद्गलों की उदीरणा नहीं करते, पोग्गले उदीरेंति॥ पुरस्कृतान् पुद्गलान् उदीरयन्ति । ग्रहण-समय के पुरोवर्ती (ग्रहीष्यमाण) पुद्गलों की उदीरणा नहीं करते। २७. एवं वेदेति, निजरेति ॥ एवं वेदयन्ति, निर्जीर्यन्ति। २७. इसी प्रकार वेदन और निर्जरण करते हैं। भाष्य १. सूत्र २५-२७ ___ संसारी जीव के साथ दो शरीर-तैजस और कार्मण अनादि काल से जुड़े हुए हैं। शरीर-संरचना की प्रकृति यह है कि पहले ग्रहण किए हुए पुद्गलों का पृथक्करण और नए पुद्गलों का ग्रहण होता रहता है। पचीसवें सूत्र में पुद्गल के ग्रहण का नियम प्रतिपादित है। पुद्गल का ग्रहण केवल वर्तमान काल में होता है, अतीत और भविष्य काल में नहीं होता। उदीरणा, वेदना और निर्जरा के नियम इससे भिन्न हैं। उदीरणा अतीत काल में गृहीत पुद्गलों की ही होती है, गृह्यमाण और ग्रहीष्यमाण पुद्गलों की नहीं होती। वेदना और निर्जरा का भी यही नियम है। २. काल-समय काल एक अखण्ड प्रवाह है। समय उसकी सूक्ष्मतम इकाई १. पण्ण.२८/१०५-देवा सब्वे जाव वेमाणिया ओयाहारा वि मणभक्खी वि। तत्थ णं जेते मणभक्खी देवा तेसि णं इच्छामणे समुप्पज्जइ-इच्छामो णं मणभक्खणं करित्तए। तए णं तेहिं देवेहिं एवं मणसीकते समाणे खिप्पामेव जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुण्णा मणामा ते तेसिं मणभक्खत्ताए परिणमंति, से जहाणामए-सीता पोग्गला सीयं पप्प सीयं चेव अतिवतित्ताणं चिट्ठति, उसिणा वा पोग्गला उसिणं पप्प उसिणं चेव अतिवतित्ताणं चिट्ठति, एवामेव तेहिं देवेहि मणभक्खणे से इच्छामणे खिप्पामेव अवेति । २. भ.वृ.१।२०–आहारदब्बवागणमहिगिच्चेति यदुक्तं तत्रायमभिप्राय:-शरीरमाश्रित्य चयोपचयौ प्राग् व्याख्यातौ, तौ चाहारद्रव्येभ्य एव भवतो नान्यतः, अत आहारद्रव्यवर्गणामधिकृत्येत्युक्तमिति। ३. द्रष्टव्य भ.७।१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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