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भगवई
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श.१: उ.१: सू.११-१२
चलमाण-पदं चलतू-पदम्
चलमान-पद ११. से नूणं भंते ! चलमाणे चलिए ? उदी- अथ नूनं भदन्त ! चलत् चलितम् ? ११. भन्ते ! क्या चलमान चलित, उदीर्यमाण उदीरिजमाणे उदीरिए ? वेदिजमाणे वेदिए? उदीर्यमाणम् उदीरितम् ? वेद्यमानं वेदितम् ? रित, वेद्यमान वेदित, प्रहीयमाण प्रहीण, छिद्यमान पहिजमाणे पहीणे ? छिन्जमाणे छिण्णे ? प्रहीयमाणं प्रहीणम् ? छिद्यमानं छित्रम् ? छिन, भिद्यमान भित्र, दह्यमान दग्ध, म्रियमाण भिजमाणे भिण्णे ? दज्झमाणे दड्ढे ? भिद्यमानं भिन्नम् ? दह्यमानं दग्धम् ? मृत, निर्जीयमाण निर्जीर्ण होता है ? मिज्जमाणे मए ? निजरिजमाणे निजिण्णे? म्रियमाणं मृतम् ? निर्जीर्यमाणं निर्जीर्णम् ? । हंता गोयमा ! चलमाणे चलिए। उदीरि- हन्त गौतम ! चलत् चलितम्, उदीयमाणम् हां, गौतम ! चलमान चलित, उदीर्यमाण उदीरित, ज्जमाणे उदीरिए। वेदिजमाणे वेदिए। उदीरितम्, वेद्यमानं वेदितम्, प्रहीयमाणं वेद्यमान वेदित, प्रहीयमाण प्रहीण, छिद्यमान छिन्न, पहिजमाणे पहीणे। छिज्जमाणे छिण्णे। प्रहीणम्, छिद्यमानं छिन्नम्, भिद्यमानं भिन्नम्, भिद्यमान भिन्न, दह्यमान दग्ध, म्रियमाण मृत, भिजमाणे भिण्णे। दज्झमाणे दड्ढे । दह्यमानं दग्धम्, म्रियमाणं मृतम्, निर्जीयमाणं निर्जीयमाण निर्जीर्ण होता है। मिजमाणे मए। निजरिजमाणे निजिण्णे | निर्जीर्णम् ।
१२. एए णं भंते ! नव पदा किं एगट्ठा एते भदन्त ! नव पदाः किम् एकार्थाः १२. भन्ते ! क्या ये नव पद एकार्थक, नानाघोष नाणाघोसा नाणावंजणा ? उदाहु नाणट्ठा नानाघोषाः नानाव्यञ्जनाः ? उताहो नानार्थाः और नानाव्यञ्जन वाले हैं अथवा नाना-अर्थ, नाणाघोसा नाणावंजणा? नानाघोषाः नानाव्यञ्जनाः ?
नानाघोष और नानाव्यञ्जन वाले हैं ? । गोयमा ! चलमाणे चलिए, उदीरिजमाणे गौतम ! चलत् चलितम्, उदीयमाणम् उदी- गौतम ! चलमान चलित, उदीयमाण उदीरित, उदीरिए, वेदिजमाणे वेदिए, पहिजमाणे रितम्, वेद्यमानं वेदितम्, प्रहीयमाणं वेद्यमान वेदित और प्रहीयमाण प्रहीण-ये चार पहीणे-एए णं चत्तारि पदा एगट्ठा प्रहीण-एते चत्वारः पदाः एकार्थाः नाना- पद उत्पाद-पक्ष की अपेक्षा से एकार्थक, नानाघोष नाणाघोसा नाणावंजणा उप्पण्णपक्खस्स। घोषाः नानाव्यञ्जनाः उत्पन्नपक्षस्य।
और नानाव्यञ्जन वाले हैं। छिज्जमाणे छिण्णे, भिजमाणे भिण्णे, छिद्यमानं छिन्नम्, भिद्यमानं भिन्नम्, दह्यमानं छिद्यमान छिन्न, भिद्यमान भित्र, दह्यमान दग्ध, दज्झमाणे दडे, मिजमाणे मए, दग्धम्, म्रियमाणं मृतम्, निर्जीर्यमाणं निर्जीर्णम् म्रियमाण मृत और निर्जीयमाण निर्जीर्ण-ये पांच निजिरिजमाणे निजिण्णे-एए णं पंच पदा –एते पंच पदाः नानार्थाः नानाघोषाः नाना- पद व्यय-पक्ष की अपेक्षा से नाना-अर्थ, नानाघोष नाणवा नाणाघोसा नाणावंजणा विगय- व्यञ्जनाः विगतपक्षस्य ।
और नानाव्यञ्जन वाले हैं। पक्खस्स।
भाष्य
१. सूत्र ११,१२
प्रस्तुत आगम में गौतम के प्रश्न और महावीर के उत्तर की एक शृंखला है। उस शृंखला का यह पहला प्रश्न है। इसके नौ पद हैं। प्रत्येक पद का संबन्ध पुद्गल से है।
कार्य की उत्पत्ति के दो प्रकार हैं- नैसर्गिक और प्रायोगिक। नैसर्गिक कार्य की उत्पत्ति का कालमान एक 'समय' (काल का अविभाज्य अंश) है। प्रायोगिक कार्य की उत्पत्ति का कालमान दीर्घ होता है। अस्तित्व (सत्) का लक्षण है उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य। उत्पाद और व्यय ये दोनों अस्थिरांश हैं, परिवर्तनचक्र के प्रतीक हैं। ध्रौव्य स्थिरांश है, वह अपरिवर्तनीय का प्रतिनिधित्व करता है। अस्तित्व परिवर्तनीय और अपरिवर्तनीय दोनों का समन्वय है।
उसे प्राचीन शब्दावली में 'अस्तिकाय' और उत्तरकालीन (दार्शनिक युग की) शब्दावली में 'द्रव्य' कहा जाता है। द्रव्य का ध्रौव्यांश सदा अनुत्पन्न रहता है। पर्यायांश की दृष्टि से वह उत्पन्न और नष्ट होता रहता है। उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यये तीनों अस्तित्वगत हैं, इसलिए वह त्रैकालिक है।
प्रश्न उपस्थित हुआ कि उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य-इन तीनों का काल अभिन्न है या भिन्न ? तीनों एक साथ होते हैं या भिन्न-भिन्न क्षणों में ? इस प्रश्न पर जैन दर्शन में नय-दृष्टि से विचार किया गया। आचार्य सिद्धसेन के अनुसार इन तीनों का काल अभिन्न भी है, और भिन्न भी।'
१. सम्मति.३1३
तिण्णि वि उप्पायाई अभिण्णकाला य भिण्णकाला य । अत्यंतरं अणत्यंतरं च दवियाहि णायब्बा ॥
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