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भगवई
भूमिका
जयधवला के अनुसार व्याख्याप्रज्ञप्ति में दो लाख अट्ठाईस हजार पद हैं।'
व्याख्याग्रन्थ
प्रस्तुत आगम की नियुक्ति वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। इसके विवरण में संख्येय नियुक्तियों का उल्लेख है। ये नियुक्तियां आगम के साथ जुड़ी हुई थी या स्वतन्त्र व्याख्या ग्रन्थ के रूप में थीं, इसका अभी कोई समाधान नहीं हुआ। नंदी सूत्र में उपलब्ध ग्यारह अंगों के विवरण में सभी अंगों में संख्येय नियुक्तियों का उल्लेख है। वर्तमान में केवल दो अंगसूत्रों-आचाराङ्ग और सूत्रकृतांग की नियुक्तियां मिलती हैं, शेष, अंगों की नियुक्तियां उपलब्ध नहीं हैं।
प्रस्तुत आगम में कुछ निरुक्त मिलते हैं१. जम्हा आणमइ वा, पाणमइ वा, उस्ससइ वा, नीससइ वा तम्हा पाणे त्ति वत्तव्बं सिया।' २. जम्हा भूते भवति भविस्सति य तम्हा भूए त्ति वत्तव्वं सिया।'' ३. जम्हा जीवे जीवति, जीवत्तं आउयं च कम्मं उवजीवति तम्हा जीवे त्ति वत्तव्यं सिया।' ४. जम्हा सत्ते सुभासुभेहिं कम्मेहिं तम्हा सत्ते त्ति वत्तव्वं सिया। ५. जम्हा तित्तकडुकसायंबिलमहुरे रसे जाणइ तम्हा विष्णु त्ति वत्तवं सिया।" ६. जम्हा वेदेति य सुह-दुक्खं तम्हा वेदे त्ति वत्तव्वं सिया। से तेण?णं पाणे ति बत्तव्यं सिया जाव वेदे त्ति वत्तव्वं सिया।" ७. जे लोकइ से लोए।
इन निरुक्तों को भी नियुक्ति कहा जा सकता है। हरिभद्रसूरि ने नियुक्ति का अर्थ निक्षेपनियुक्ति आदि किया है। यहां यह अर्थ घटित हो सकता है। नियुक्ति अनुगम के तीन प्रकार हैं
१. निक्षेप नियुक्ति अनुगम २. उपोद्घात नियुक्ति अनुगम ३. सूत्रस्पर्शी नियुक्ति अनुगम प्रस्तुत आगम में निक्षेप-नियुक्ति का स्थान-स्थान पर प्रयोग मिलता है१. दव्यओ लोए सअंते
खेत्तओ लोए सअंते कालओ लोए अणंते
भावओ लोए अणते। २. दव्वओ जीवे सअंते
खेत्तओ जीवे सअंते कालओ जीवे अणंते
भावओ जीवे अणंते। इस प्रकार २|१२५-१२६,५।२०५८1१८४-१६१ १११३५, १०८; १४।८१ १६/११; २५/२५, २८-ये स्थल द्रष्टव्य
चूर्णि अभी मुद्रित नहीं है। वह हस्तलिखित मिलती है। उसकी पत्र संख्या १० है। उसका ग्रंथमान ३५६० श्लोक परिमाण है। उसके प्रारंभ में मंगलाचरण नहीं है और अन्त में प्रशस्ति नहीं है। रचनाकार और रचनाकाल का कोई उल्लेख नहीं है। चूर्णि की भाषा प्राकृत प्रधान है। इसे प्राकृत प्रधान चूर्णियां—नंदीचूर्णि, अनुयोगद्वारचूर्णि, दशवैकालिकचूर्णि, आचारांगचूर्णि, सूत्रकृतांगचूर्णि, और जीतकल्प चूर्णि की कोटि में रखा जाता है। विद्वानों के अनुसार भगवतीचूर्णि के रचनाकार जिनदास महत्तर हैं।
१-.क.पा.प्रथम अधिकार,पृ.६३,६४ । २. नंदी.सू.६१-६१ ३.८.२।१५। ६.५/२५५
१०. नंदी,हा.वृ.पृ.७६ निर्युक्तानां युक्तिर्नियुक्तियुक्तिरिति वाच्ये युक्तशब्दलोपात्
नियुक्तिरिति, एताश्च निक्षेपनियुक्त्याद्याः । ११. अणु.सू.७११। १२.२.४५,४६।
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