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भूमिका
देशी शब्द
गड्ढ
बोदि
खत्त
डोंगर
गडूड
संकुडित
टोल
प्रमाण
३।६५
३ । ११२
७ ।११७
७।११७
७।११७
७।११६
७ ।११६
१०. अध्ययन ११. उद्देशक १२. समुद्देशक
रचनाकार, रचनाकाल
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का पांचवा अंग है। इसमें भगवान् महावीर की वाणी गणधर सुधर्मा के द्वारा संकलित है, इसलिए इसके रचनाकार गणधर सुधर्मा हैं। इसका प्रस्तुत संस्करण देवर्द्धिगणी की वाचना के समय का है। ई. पू. पांच सौ से ईस्वी सन् पांच सौ तक के सूत्र इसमें मिलते हैं। गौतम ने पूछा- भंते ! पूर्वगत श्रुत कब तक चलेगा ? भगवान् ने उत्तर दिया--गौतम ! मेरे निर्वाण के एक हजार वर्ष तक पूर्वगत श्रुत चलेगा'
"जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमीसे आसप्पिणीए देवाणुप्पियाणं केवतियं कालं पुव्वगए अणुसज्जिस्सति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ममं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अणुसज्जिस्सति । "
यह सूत्र संकलनाकालीन रचना है। देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण ने पार्श्वनाथ की परंपरा देवगुप्त से एक पूर्व अर्थ सहित और दूसरे पूर्व का केवल मूल पाठ पढा था। अंतिम पूर्वधारी सत्यमित्र माने जाते हैं। उनके स्वर्गवास के पश्चात् पूर्वश्रुत का सर्वथा विच्छेद हो गया । धर्मसागरगणि लिखित तपागच्छ पट्टावलि में इसका उल्लेख मिलता है - श्रीवीरात् वर्षसहस्त्रे १००० गते सत्यमित्रे पूर्वव्यवच्छेदः पूर्वविच्छेदः ।
भगवान् महावीर के प्रवचन में कहीं भी भविष्यवाणी नहीं है। यह सामयिक स्थिति का आकलन करने वाला सूत्र देवर्द्धिगणी की वाचना के समय जोड़ा गया प्रतीत होता है।
प्रमाण
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समर्पण -सूत्रों या निर्देश- सूत्रों के अध्ययन से भी यह तथ्य प्रमाणित होता है कि प्रस्तुत आगम में अनेक शताब्दियों की रचना का संकलन किया गया है। गणिपिटक की जानकारी के लिए नंदी सूत्र का निर्देश किया गया है। उसमें नियुक्ति का उल्लेख है।' यह उत्तरकालीन पाठरचना है। प्रस्तुत आगम में विभिन्न पाठों के रचनाकाल का निर्धारण करना बहुत आवश्यक कार्य है। इससे दार्शनिक विकास के कालक्रम को समझने में पर्याप्त सहायता मिल सकती है।
अनेक
संख्येय
संख्येय
संख्येय
आकार और वर्तमान आकार
प्रस्तुत आगम का ग्रन्थमान अनुष्टुप् श्लोक के अनुपात से १६ हजार श्लोक प्रमाण माना जाता है। हमने अंगसुताणि भाग दो में प्रकाशित प्रस्तुत आगम के संस्करण में अनेक स्थलों पर जाव शब्द की पूर्ति की है। उससे इसका ग्रन्थमान १६२८६ / २ श्लोक प्रमाण हो गया है। इसका सवा लाख प्रमाण वाला भी संस्करण मिलता है, जिसका उल्लेख पहले किया जा चुका है। समवायांग और नंदी में इसका प्राचीन रूप और आकार मिला है। वह इस प्रकार है—
सूत्रांग
१. वाचना
२. अनुयोगद्वार
३. वेढा छन्द
४. श्लोक
६. श्रुतस्कन्ध
एक
सौ से अधिक
दस हजार
दस हजार
१. २०।७० ।
२. आत्मप्रबोध, ३३।१।
३. पट्टावली समुच्चय, भा. १, पृ. ५१ ।
४. २५/६६,६७ कतिविहे णं भंते ! गणिपिडए पण्णत्ते ?
देशी शब्द
मग्गओ
छाणे
चिक्खल
मत्या
नत्थ
छण
गोयमा ! दुवालसंगे गणिपिडए पण्णत्ते, तं जहा आयारो जाव दिट्ठिवाओ।
ये किं नं आगाशे ? गाणं निशाणं आयार-गोयर- विणय
भगवई
प्रमाण
७।१५२
८।२५
सूत्रांग ५. निर्युक्तियां
६. संग्रहणियां
७. प्रतिपत्तियां
८. अंग
१३. व्याकरण
१४. पद
१५. पद
८। ३५७
६ । ४६
६।१४१
६।१८६
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५. नंदी, सू. ८५ के अनुसार।
६. सम. प. स. ६३ के अनुसार है।
प्रमाण
संख्येय
संख्येय
संख्येय
पांचवां
वेणइय-सिक्खा-भासा-अभासा-चरण-करण-जाया- माया-वित्तिओ आघविज्जति,
एवं अंगपरूवणा भाणियव्वा जहा नंदीए जाव ।
सुत्तत्थो खलु पढमो, बीओ निज्जुत्तिमीसओ भणिओ । तइओ य निरवसेसो, एस विही होइ अणुओगे |
छत्तीस हजार
दो लाख अट्ठासी हजार
चौरासी हजार
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