SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवई भूमिका आर्जव व्युत्सर्ग मार्दव मार्दव शान्ति मुक्ति सूत्ररुचि सूत्ररुचि शुक्ल ध्यान के लाक्षण व्याख्याप्रज्ञप्ति क्षान्ति आर्जव मादेव स्थानांग अव्यव असम्मोह विवेक बुत्सर्ग औपपातिक विवेक व्युत्सर्ग अव्यय असम्मोह शुक्ल ध्यान के आलम्बन व्याख्याप्रज्ञप्ति अव्यय असम्मोह विवेक स्थानांग शान्ति मुक्ति औपपातिक आर्जव ध्यानशतक में स्थानांग और औपपातिक का क्रम मिलता है। अव्यथ, असम्मोह आदि शुक्ल ध्यान के लक्षण हो सकते हैं। ध्यानशतक में इसे विस्तार के साथ समझाया गया है। ' प्रतीत होता है कि स्मृतिदोष अथवा लिपिदोष के कारण यह विपर्यय हो गया। धर्म ध्यान के लक्षण व्याख्याप्रज्ञप्ति आज्ञारुचि निसर्गरुचि अवगाढरुचि स्थानांग आज्ञारुचि निसर्गरुचि अवगाढरुचि औपपातिक आज्ञारुचि निसर्गरुचि उपदेशरुचि धर्म ध्यान के आलम्बन व्याख्याप्रज्ञप्ति वाचना प्रतिप्रच्छना परिवर्तना धर्मकथा स्थानांग वाचना प्रतिप्रच्छना परिवर्तना अनुप्रेक्षा औपपातिक वाचना प्रच्छना परिवर्तना धर्मकथा धर्म ध्यान की अनुप्रेक्षा व्याख्याप्रज्ञप्ति एकत्वानुप्रेक्षा अनित्यानुप्रेक्षा अशरणानुप्रेक्षा संसारानुप्रेक्षा स्थानांग एकानुप्रेक्षा अनित्यानुप्रेक्षा अशरणानुप्रेक्षा संसारानुप्रेक्षा औपपातिक अनित्यानुप्रेक्षा अशरणानुप्रेक्षा एकत्वानुप्रेक्षा संसारानुप्रेक्षा शुक्ल ध्यान के प्रकार १.व्याख्याप्रज्ञप्ति पृथक्त्ववितर्कसविचारी एकत्ववितर्कअविचारी सूक्ष्मनियंअनिवृत्ति समुच्छिन्नक्रियंअप्रतिपाति २.स्थानांग पृथक्त्ववितर्कसविचारी एकत्ववितर्कअविचारी सूक्ष्मनियंअनिवृत्ति समुच्छित्रक्रियंअप्रतिपाति ३.औपपातिक पृथक्त्ववितर्कसविचारी एकत्ववितर्कअविचारी सूक्ष्मक्रियंअप्रतिपाति समुच्छित्रक्रियंअनिवृत्ति देशी शब्दों का प्रयोग सूत्ररुचि प्रस्तुत आगम में यत्र-तत्र देशी शब्दों का भी प्रयोग मिलता है १. भ.२५ । ६१० ठाणं,४ १७०ओ.सू.४३ । २. भ.२५।६११;ठाणं,४ ।७१;ओ.सू.४३ । ३. ध्यान-शतक,६६,६०। ४. वही,६१,६२ चालिज्जइ बीभेइ य धीरो न परीसहोवसग्गेहिं । सुहुमेसु न संमुज्झइ भावेसु न देवमायासु ॥ देहविवित्तं पेच्छइ अप्पाणं तह य सब्बसंजोगे। देहोवहिवोसगं निस्संगो सव्वहा कुणइ ।। ५. भ.२५ । ६०६,ठाणं,४ । ६६,ओ.सू.४३ । ६. भ.२५ । ६०७,ठाणं,४ । ६७;ओ.सू.४३ । ७. भ.२५ । ६०८ ठाणं,४।६८ओ.सू.४३ । ८. भ.२५ । ६०६ ठाणं,४ । ६६:ओ.सू.४३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy