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________________ श.२: उ.१०. सू.१३०-१३३ २६० भगवई काए त्ति वत्तव्वं सिया ? गोयमा ! णो इणढे समढे ॥ कायः इति वक्तव्यं स्यात् ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः। धर्मास्तिकाय कहा जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। १३१. एवं दोण्णि, तिण्णि, चत्तारि, पंच, छ, सत्त, अट्ठ, नव, दस, संखेजा, असं- खेजा। भंते ! धम्मत्थिकायपदेसा धम्मत्थिकाए ति वत्तव्वं सिया? गोयमा ! णो इणडे समढे ॥ एवं द्वौ, त्रयः, चत्वारः, पञ्च, षट्, सप्त, १३१. भन्ते ! क्या इसी प्रकार धर्मास्तिकाय के दो, अष्ट, नव, दश, संख्येयाः, असंख्येयाः। तीन, चार, पांच, छह, सात, आठ, नौ, दस, भदन्त ! धर्मास्तिकायप्रदेशाः धर्मास्तिकायः संख्येय और असंख्येय प्रदेशों को धर्मास्तिकाय इति वक्तव्यं स्यात् ? कहा जा सकता है ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः। गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। १३२. एगपदेसूणे वि य णं भंते ! धम्मत्थि- काए धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव् सिया ? गोयमा ! णो इणढे समढे ॥ एक प्रदेशोनोऽपि भदन्त ! धर्मास्तिकायः १३२. भन्ते ! क्या एक प्रदेश कम धर्मास्तिकाय धर्मास्तिकायः इति वक्तव्यं स्यात् ? को भी धर्मास्तिकाय कहा जा सकता है ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः। गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। १३३. से केणटेणं भंते ! एवं वुचइ–एगे तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-एकः १३३. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा धम्मत्थिकायपदेसे नो धम्मत्थिकाए त्ति धर्मास्तिकायप्रदेशः नो धर्मास्तिकायः इति है-धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को धर्मास्तिकाय वत्तव्वं सिया जाव एगपदेसणे वि य णं वक्तव्यं स्यात् यावद् एकप्रदेशोनोऽपि च नहीं कहा जा सकता यावत् एक प्रदेश कम धम्मत्थिकाए नो धम्मत्थिकाए ति वत्तव्वं धर्मास्तिकायः नो धर्मास्तिकायः इति वक्तव्यं धर्मास्तिकाय को भी धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सिया ? स्यात् ? सकता? से नणं गोयमा ! खंडे चक्के ? सगले चक्के? अथ नूनं गौतम ! खण्डं चक्रम् ? सकलं गौतम ! क्या चक्र का खण्ड चक्र कहलाता है ? चक्रम् ? अथवा अखण्ड चक्र चक्र कहलाता है ? भगवं ! नो खंडे चक्के, सगले चक्के । भगवन् ! नो खण्डं चक्रम्, सकलं चक्रम् । भगवन् ! चक्र का खण्ड चक्र नहीं कहलाता, अखण्ड चक्र चक्र कहलाता है। खंडे छत्ते ? सगले छत्ते। खण्डं छत्रम् ? सकलं छत्रम् ? क्या छत्र का खण्ड छत्र कहलाता है ? अथवा अखण्ड छत्र छत्र कहलाता है ? भगवं! नो खंडे छत्ते, सगले छत्ते। भगवन् ! नो खण्डं छत्रम्, सकलं छत्रम् । भगवन् ! छत्र का खण्ड छत्र नहीं कहलाता, अखण्ड छत्र छत्र कहलाता है। खंडे चम्मे ? सगले चम्मे ? खण्डं चर्म ? सकलं चर्म ? क्या चर्म का खण्ड चर्म कहलाता है ? अथवा अखण्ड चर्म चर्म कहलाता है ? भगवं ! नो खंडे चम्मे, सगले चम्मे। भगवन् ! नो खण्डं चर्म, सकलं चर्म । भगवन् ! चर्म का खण्ड चर्म नहीं कहलाता, अखण्ड चर्म चर्म कहलाता है। खंडे दंडे ? सगले दंडे ? खण्डः दण्डः ? सकलः दण्डः ? क्या दण्ड का खण्ड दण्ड कहलाता है ? अथवा अखण्ड दण्ड दण्ड कहलाता है ? भगवं ! नो खंडे दंडे, सगले दंडे । भगवन् ! नो खण्डः दण्डः, सकलः दण्डः । भगवन् ! दण्ड का खण्ड दण्ड नहीं कहलाता, अखण्ड दण्ड दण्ड कहलाता है। खंडे दूसे ? सगले दूसे ? खण्डं दूष्यम् ? सकलं दूष्यम् ? क्या वस्त्र का खण्ड वस्त्र कहलाता है ? अथवा अखण्ड वस्त्र वस्त्र कहलाता है ? भगवं ! नो खंडे दूसे, सगले दूसे ।। भगवन् नो खण्डं दूष्यम्, सकलं दूष्यम् । भगवन् ! वस्त्र का खण्ड वस्त्र नहीं कहलाता, अखण्ड वस्त्र वस्त्र कहलाता है। खंडे आयुहे ? सगले आयहे ? खण्डः आयुधः ? सकलः आयुधः ? क्या आयुध का खण्ड आयुध कहलाता है ? अथवा अखण्ड आयुध आयुध कहलाता है ? भगवं ! नो खंडे आयुहे, सगले आयुहे। भगवन् ! नो खण्ड: आयुधः, सकलः भगवन् ! आयुध का खण्ड आयुध नहीं कहलाता, आयुधः। अखण्ड आयुध आयुध कहलाता है। खंडे मोदए ? सगले मोदए ? खण्डः मोदकः ? सकलः मोदकः ? क्या मोदक का खण्ड मोदक कहलाता है ? अथवा अखण्ड मोदक मोदक कहलाता है ? www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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