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________________ दव्वे। गुणओ। भगवई २८६ श.२: उ.१०. सू.१२८-१३० अस्वी, जीवे, सासए, अवहिए, लोग- अरूपी, जीवः, शाश्वतः, अवस्थितः, अरूपी, जीव, शाश्वत, अवस्थित तथा लोक का लोकद्रव्यम् । एक अंशभूत द्रव्य है। से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा- सः समासतः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, तद् यथा- वह संक्षेप में पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे—द्रव्य दब्बओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, गुणतः। की अपेक्षा से, क्षेत्र की अपेक्षा से, काल की अपेक्षा से, भाव की अपेक्षा से और गुण की अपेक्षा से। दबओ णं जीवत्थिकाए अणंताई द्रव्यतः जीवास्तिकायः अनन्तानि द्रव्याणि ।। द्रव्य की अपेक्षा से जीवास्तिकाय अनन्त जीवजीवदवाई। द्रव्य है। खेत्तओ लोगप्पमाणमेत्ते। क्षेत्रतः लोकप्रमाणमात्रः। क्षेत्र की अपेक्षा से लोकप्रमाणमात्र है। कालओ न कयाइ न आसि, न कयाइ कालतः न कदाचिन् नासीत्, न कदाचिन् काल की अपेक्षा से कभी नहीं था—ऐसा नहीं नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ-भविंसु य, नास्ति, न कदाचिन् न भविष्यिति-अभवच् है, कभी नहीं है—ऐसा नहीं है, कभी नहीं होगा भवति य, भविस्सइ य–धुवे, णियए, च, भवति च, भविष्यति च-ध्रुवः, नियतः, -ऐसा नहीं है-वह अतीत में था, वर्तमान में सासए, अक्खए, अवए, अवट्टिए, शाश्वतः, अक्षयः, अव्ययः, अवस्थितः, है और भविष्य में रहेगा—अतः वह ध्रुव, नियत, णिचे। नित्यः। शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य भावओ अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे। भावतः अवर्णः, अगन्धः, अरसः, अस्पर्शः। भाव की अपेक्षा से अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श है। गुण की अपेक्षा से उपयोग गुणवाला है। गुणओ उवओगगुणे॥ गुणतः उपयोगगुणः। १२६. पोग्गलत्थिकाए णं भंते ! कतिवण्णे? कतिगंधे ? कतिरसे? कतिफासे ? पुद्गलास्तिकायः भदन्त ! कतिवर्णः ? कति- १२६. भन्ते ! पुद्गलास्तिकाय में कितने वर्ण हैं ? गन्धः ? कतिरसः ? कतिस्पर्शः ? कितने गन्ध हैं ? कितने रस हैं ? कितने स्पर्श गुणओ। गोयमा ! पंचवण्णे, पंचरसे, दुगंधे, गौतम ! पञ्चवर्णः, पञ्चरसः, द्विगन्धः, अष्ट- गौतम ! उसमें पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और अट्ठफासे; स्पर्शः आठ स्पर्श हैं; रूवी, अजीवे, सासए, अवदिए, लोग- रूपी, अजीवः, शाश्वतः, अवस्थितः, लोक- वह रूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित तथा लोक दब्बे। द्रव्यम्। का एक अंशभूत द्रव्य है। से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा- सः समासतः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, तद् यथा- वह संक्षेप में पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे—द्रव्य दब्बओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, गुणतः। की अपेक्षा से, क्षेत्र की अपेक्षा से, काल की अपेक्षा से, भाव की अपेक्षा से और गुण की अपेक्षा से। दब्बओ णं पोग्गलत्यिकाए अणंताई द्रव्यतः पुद्गलास्तिकायः अनन्तानि द्रव्या- द्रव्य की अपेक्षा से पुद्गलास्तिकाय अनन्त द्रव्य दवाई। णि। खेत्तओ लोयप्पमाणमेत्ते। क्षेत्र की अपेक्षा से लोकप्रमाणमात्र है। कालओ न कयाइ न आसि, न कयाइ क्षेत्रतः लोकप्रमाणमात्रः। काल की अपेक्षा से कभी नहीं था-ऐसा नहीं नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ-भविंसु य, कालतः न कदाचिन् नासीत्, न कदाचित् है, कभी नहीं है—ऐसा नहीं है, कभी नहीं भवति य, भविस्सइ -घुवे, णियए, नास्ति, न कदाचिन् न भविष्यति-अभवच् होगा—ऐसा नहीं है—वह अतीत में था, वर्तमान सासए, अक्खए, अव्वए, अवदिए, च, भवति च, भविष्यति च–ध्रुवः, नियतः, में है और भविष्य में रहेगा—अतः वह ध्रुव, णिचे। शाश्वतः, अक्षयः, अव्ययः, अवस्थितः, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्यः। नित्य है। भावओ वण्णमंते, गंधमंते, रसमंते, भाव की अपेक्षा से वर्णवान्, गन्धवान्, रसवान् फासमंते। भावतः वर्णवान्, गन्धवान्, रसवान्, और स्पर्शवान् है। गुणओ गहणगुणे॥ स्पर्शवान्। गुण की अपेक्षा से ग्रहणगुण-समुदित होने की गुणतः ग्रहणगुणः। योग्यता वाला है। १३०. एगे भंते ! धम्मत्यिकायपदेसे घम्मत्थि- एकः भदन्त ! धर्मास्तिकायप्रदेशः धर्मास्ति- १३०. भन्ते ! क्या धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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