________________
मूल
समयखेत्त-पदं
१२२. किमिदं भंते ! समयखेत्ते त्ति पवुच्चति ? गोयमा ! अड्ढाइजा दीवा, दो य समुद्दा, एस णं एवइए समयखेत्तेति पवुच्चति ॥
१२३. तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे दीवे सव्यदीव-समुद्दाणं सव्वब्धंतरे । एवं जीवाभिगमवत्तब्बया नेयव्वा जाव अभिंतरपुक्खरद्धं जोइसविहूणं ॥
Jain Education International
नवमो उद्देसो : नवां उद्देशक
संस्कृत छ
समयक्षेत्र -पदम्
किमिदं भदन्त ! समयक्षेत्रमिति प्रोच्यते ? गौतम ! अर्धतृतीया द्वीपाः द्वौ च समुद्री, एतद् एतावत् समयक्षेत्रमिति प्रोच्यते ।
तत्रायं जम्बूद्वीपः द्वीपः सर्वद्वीप- समुद्राणां सर्वाभ्यन्तरः । एवं जीवाभिगमवक्तव्यता नेतव्यायावद् आभ्यन्तर-पुष्करार्द्धं ज्योतिष्कविहीनम् ।
For Private & Personal Use Only
हिन्दी अनुवाद
समयक्षेत्र - पद
१२२. भन्ते ! समयक्षेत्र किसे कहा जाता है ? गौतम ! अढ़ाई द्वीप और दो समुद्र - यह इतना क्षेत्र समय-क्षेत्र कहलाता है ।
१२३. इनमें जम्बूद्वीप नामक द्वीप सब द्वीपों और समुद्रों के मध्य में है। इस प्रकार आभ्यन्तर पुष्करार्ध तक जीवाजीवाभिगम की वक्तव्यता ज्ञातव्य है । उसमें से केवल ज्योतिष्क देवों की वक्तव्यता छोड़ देनी है।
www.jainelibrary.org