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________________ भगवई २८५ सयसहस्साई पण्णासं च सहस्साई अरु- शतसहस्राणि पञ्चाशच् च सहस्त्राणि अरुणोदए समुद्दे तिरियं वीइवइत्ता अहे स्य- णोदये समुद्रे तिर्यक् व्यतिव्रज्य अधः रल- णप्पभाए पुढवीए चत्तालीसं जोयण- प्रभायाः पृथिव्याः चत्वारिंशद् योजनशत- सहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं चमरस्स सहस्राणि अवगाह्य अत्र चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो चमरचंचा असुरकुमारराजस्य चमरचञ्चा नाम राजधानी नाम रायहाणी पण्णत्ता-एर्ग जोयणसय प्रज्ञप्ता-एकं योजनशतसहस्रम् आयाम- सहस्सं आयाम-विक्खंभेणं जंबूदीव- विष्कम्भेण जम्बूद्वीपप्रमाणा। प्पमाणा। ओवारियलेणं सोलसजोयणसहस्साई उपकारिकालयनं षोडशयोजनसहस्त्राणि आयाम-विक्खंभेणं, पण्णासं जोयणसह आयाम-विष्कम्भेण, पञ्चाशद् योजनसहस्साई पंच य सत्ताणउए जोयणसए किंचि स्राणि पञ्च च सप्तनवतिः योजनशतं किञ्चिद् विसेसूणे परिक्खेवेणं, सबप्पमाणं वेमा विशेषोनं परिक्षेपेण, सर्वप्रमाणं वैमानिकणियप्पमाणस्स अद्धं नेयव्वं ॥ प्रमाणस्य अर्धं नेतव्यम्। श.२ः उ.८. सू.१२१ पैंतीस लाख और पचास हजार योजन तिरछा चले जाने पर तथा नीचे की ओर रलप्रभा पृथ्वी का चालीस हजार योजन अवगाहन करने पर असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर की चमरचञ्चा नामक राजधानी प्रज्ञप्त है। उसकी लम्बाई-चौड़ाई एक लाख योजन है। वह जम्बूद्वीप-प्रमाण है। उसकी पीठिका लम्बाई-चौड़ाई में सोलह हजार योजन और परिधि में पचास हजार पांच सौ सितानवे योजन से कुछ कम है। उसका सर्व प्रमाण वैमानिक देवों की राजधानी के प्राकार आदि से आधा जानना चाहिए। 8800380 MONOURG800000000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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