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________________ श. २: उ. ८ः सू. ११८-१२१ १. सूत्र ११८ शब्द-विमर्श उत्पातपर्वत—तिर्यग् लोक में जाने के लिए जिस पर्वत से उड़ान भरी जाती है उसे उत्पात - पर्वत कहा जाता है।' इसकी तुलना वर्तमान की हवाई पट्टी से की जा सकती है। ये संख्या में अनेक हैं। इन उत्पात-पर्वतों पर वैक्रिय शरीर का पुनर्निमाण कर देव ऊपर, नीचे या तिरछे लोक में जाने के लिए अपने विमानों के साथ उड़ानें भरते हैं। ११६. तस्स णं तिगिंठिकूडस्स उप्पायपव्वयस्स उप्पिं बहुसम - रमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते वण्णओ ॥ १२०. तस्स णं बहुसमरमणिजस्स भूमिभा - गस्स बहुमज्झदेस भागे, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए पण्णत्ते- अड्डाइजाइं जोयणसया उडूढं उच्चत्तेणं, पणुवीसं जोयणसयं विक्खंभेणं । पासायवण्णओ। उल्लोयभूमिवण्णओ । अट्ठजोयणाई मणिपेटिया । चमरस्स सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं ॥ १. प्रासादावतंसक १२१. तस्स णं तिगिंछिकूडस्स दाहिणे णं छक्कोडिस पणवत्रं च कोडीओ पणतीसं च कः । श्रेष्ठ प्रासाद, प्रासादो में शिखर तुल्य प्रासाद । तस्य तिगिच्छिकूटस्य उत्पातपर्वतस्य उपरि बहुसम - रमणीयः भूमिभागः प्रज्ञप्तः वर्ण १. बहुसम यहां 'बहु' शब्द 'अपूर्ण' के अर्थ में है।' इसलिए 'बहुसम' का अर्थ होगा- प्रायः सम । २८४ भाष्य Jain Education International (ख) स्था.वृ.प.४५७——उप्पायपव्वएत्ति—- उत्पतनं ऊद्धर्वगमनमुत्पातस्तेनोपलक्षितः पर्वत उत्पातपर्वतः । तस्य बहुसमरमणीयस्य भूमिभागस्य बहुमध्यदेशभागे, अत्र महान् एकः प्रासादावतंसकः प्रज्ञप्तः – अर्धतृतीयानि योजन - शतानि ऊर्ध्वं उच्चत्वेन, पञ्चविंशतिः योजनशतानि विष्कम्भेण । प्रासादवर्णकः। उल्लोचभूमिवर्णकः । अष्ट योजनानि मणिपीठिका । चमरस्य सिंहासनं सपरिवारं भणितव्यम् । १. (क) भ.वृ. २।११८ – तिर्यग्लोकगमनाय यत्रागत्योत्पतति स उत्पातपर्वत इति । विग्रहिक - विग्रह का अर्थ है आकृति । वरवज्रविग्रहिकवज्र जैसी शरीर रचना वाला।' भाष्य भाष्य २. ठाणं, १०/४७-६१ ३. भ. बृ. २।११८ - वरवज्रस्येव विग्रह — आकृतिर्यस्य स स्वार्थिके कप्रत्यये सति सह, लह-ये दोनों 'श्लक्ष्ण' शब्द के प्राकृत रूप हैं। 'श्लक्ष्ण' शब्द के अनेक अर्थ हैं। यहां 'सह' का अर्थ सूक्ष्म और 'लण्ड' का अर्थ चिकना घटित होता है। निरावरण प्रभा — निरावरण दीप्ति । तस्य तिगिच्छकूटस्य दक्षिणे षट्कोटिशतं पञ्चपञ्चाशच्च कोट्यः पञ्चत्रिंशच् च भगवई ११६. उस तिगिच्छिकूट उत्पात पर्वत के ऊपर बहुसम - रमणीय भूभाग प्रज्ञप्त है-भूभागवर्णन | २. उल्लोच भूमि चंदोवा के ऊपर की भूमि, छत । For Private & Personal Use Only १ १२०. उस बहुसमरमणीय भूभाग के प्रायः मध्यदेशभाग में एक महान् प्रासादावतंसक प्रज्ञप्त है— उसकी ऊंचाई दो सौ पचास योजन है और चौड़ाई एक सौ पच्चीस योजन है। प्रासाद का वर्णन | चंदोवा के उपर की भूमि का वर्णन । मणिपीठिका आठ योजन की है। चमर का सिंहासन उसके परिवार के सिंहासनों सहित वक्तव्य है। २ १२१. उस तिगिच्छिकूट उत्पातपर्वत के दक्षिण भाग में अरुणोदय समुद्र में छह अरब, पचपन करोड़, वरवज्रविग्रहिको मध्ये क्षाम इत्यर्थः । ४. (क) म.वृ. २1११८ श्लक्ष्णः --- शलक्ष्णपुद्गलनिर्वृत्तत्वात्, लम्हे-मसृणः । (ख) जीवा.वृ. प. १७८ सण्हा— श्लक्ष्णा श्लक्ष्णपुद्गलस्कन्धनिष्पन्ना श्लक्ष्ण-दलनिष्पन्नपटवत् लण्हा मसृणाघुण्टितपटवत् । ५. भ. वृ. २/११६ निक्कंडच्छाए' निरावरण दीप्तिः । ६. भिक्षुशब्दानुशासन, २ www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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