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________________ सत्तमो उद्देसो : सातवां उद्देशक ल हिन्दी अनुवाद संस्कृत छाया स्थान-पदं ठाण-पदं स्थान-पद ११६. कति णं भंते ! देवा पण्णता? गोयमा ! चउबिहा देवा पण्णत्ता, तं जहा -भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया।॥ कति भदन्त ! देवाः प्रज्ञप्ताः? गौतम! चतुर्विधाः देवाः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा- भवनपति-वानमन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिकाः। ११६. भन्ते ! देव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! देव चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसेभवनपति, वानमन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक । ११७. कहि णं भंते ! भवणवासीणं देवाणं ठाणा पण्णता? गोयमा ! इमीसे स्यणप्पभाए पुढवीए जहा ठाणपदे देवाणं वत्तव्वया सा भाणियव्वा । उववाएणं लोयस्स असंखेजइभागे एवं सव्वं भाणियव्वं जाव सिद्धगंडिया समत्ता। कप्पाण पइटाणं, बाहल्लुचत्तमेव संठाणं । कुत्र भदन्त ! भवनवासिनां देवानां स्थानानि ११७. भन्ते ! भवनवासी देवों के स्थान कहां प्रज्ञप्त प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्याः यथा गौतम ! इस रलप्रभा पृथ्वी में प्रज्ञप्त हैं। स्थान-पद स्थानपदे देवानां वक्तव्यता सा भणितव्या। (पण्णवणा,२।३०-६३) में जो देवों की वक्तउपपातेन लोकस्य असंख्येयतमभागे एवं सर्वं व्यता है, वह कथनीय है। उनका उपपात लोक भणितव्यं यावत् सिद्धकण्डिका समाप्ता । के असंख्यातवें भाग में होता है। इस प्रकार यह कल्पानां प्रतिष्ठानं बाहल्योच्चत्वमेव संस्थानम्। समूचा प्रकरण यावत् सिद्धकण्डिका की समाप्ति (पण्णवणा,२।३०-६७) तक वक्तव्य है। जीवाभिगमे यः वैमानिकोद्देशः स भणितव्यः । सौधर्म आदि कल्प-विमानों के प्रतिष्ठान (आधार), सर्वः। बाहल्य (मोटाई), ऊँचाई और संस्थान (आकृति) के लिए जीवाभिगम का जो वैमानिक उद्देश (३। १०५७-११३८) है, वह समग्र यहां वक्तव्य है। वेमाणिउद्देसो सो जीवाभिगमे जो भाणियब्बो सबो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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