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श.२: उ.५: सू.११३,११४
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भगवई
एस णं गोयमा ! महातवोवतीरप्पभवे एतद् गौतम ! महातपोपतीरप्रभवं प्रस्रवणम् ।। निःस्रवण होता है। गौतम ! यह महातपोपतीरपासवणे। एस णं गोयमा ! महा- एष गौतम ! महातपोपतीरप्रभवस्य प्रस्रवणस्य प्रभव नामक निर्झर है। गौतम ! यह महातवोवतीरप्पभवस्स पासवणस्स अट्टे अर्थः प्रज्ञप्तः।
तपोपतीरप्रभव निर्झर का अर्थ प्रज्ञप्त है। पण्णत्ते॥
भाष्य
सूत्र ११३
प्रस्तुत सूत्र में "जीवा य पोग्गला य उदगत्ताए वकमंति" यह तापमान ३०० अंश सेण्टीग्रेट से भी ज्यादा होता है। इतने ताप पाठ है। यदि पुद्गल का पानी के रूपमें परिणमन नहीं होता तो। पर अब तक ज्ञात जीव रह ही नहीं सकता। प्रोटीन और डी.एन.ए. पाठ केवल 'जीवा' ही होता। इससे यह सिद्ध होता है कि जल टूट जाएगें। एन्जाइम पिघल जाएंगे। कोई भी जिन्दा चीज क्षण सचित्त और अचित्त दोनों प्रकार का होता है ।
भर में मर जाएगी। हम अब तक स्वीकार करते आए हैं कि शुक्र उष्णयोनिक जीव गरम वातावरण में ही पनपते हैं। अब उन्हें ग्रह पर इतना ही तापमान होने के कारण वहां जीवन नहीं हो वैज्ञानिक मान्यता भी मिल रही है। लुईस टामस ने लिखा है--
सकता। इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि ४-५ अरब वर्ष _ "एक जीवाणु प्रजाति है जिसे १६८२ तक प्रथिवी के धरातल
पूर्व इस ग्रह के आरम्भिक समय में जीवन नहीं रहा होगा। बी.जे.ए. पर देखा ही नहीं गया। इन जीवों को स्वप्न में भी कभी नहीं देखा
बैरोज तथा जे.डब्ल्यू. डेमिंग ने हाल में इन गहरे समुद्रों का नालियों गया। ये प्रकृति के जिन नियमों को हम जानते हैं, उनके जीते
से आए जीवाणुओं की जीवन्त बस्तियों की खोज की है। यही नहीं जागते उल्लंघन हैं। चीजें जो एक प्रकार से सीधे नरक से आई
जब इन जीवाणुओं को पानी से ऊपर लाया गया, उन्हें टाइटेनियम हो या हम जो नरक के बारे में सोचते हैं। पृथ्वी के अन्दर गर्भ
सुइयों में रखा गया तथा २५० अंश सेण्टीग्रेट तक गरम ताप वाले क्षेत्र में जो रहने लायक न हो। इस प्रकार के क्षेत्रों में हाल में
कक्षों में मुहरबन्द किया गया तो ये जीवित ही नहीं रहे बल्कि बड़े अनुसंधानी पनडुब्धियों की वैज्ञानिक निगाह पड़ी है। यह पनडुब्बियां
उत्साह से पुनरुत्पादन किया। इनकी संख्या बढ़ती गयी उन्हें केवल समुद्र के तल में २५००० मीटर या इससे ज्यादा तक जा सकती
उबलते पानी में ही डालकर मारा जा सकता है। फिर भी यह है। ये तल के गट्टों में किनारे तक पहुंच सकती हैं। जहां खुली
साधारण जीवाणु जैसे लगते हैं। इलैक्ट्रोनिक माईक्रोस्कोप के नीचे नालियां पृथिवी की पपड़ी में चिमनियों से अधिक गर्म समुद्री जल
इनकी संरचना वैसी ही है--कोशिका-दीवारें, राइबोसोम तथा बाकी छोड़ती हैं। इन्हें समुद्री वैज्ञानिक "ब्लेक स्मोकर्स" कहते हैं। यह । सब कुछ, जैसा कि अब कहा जा रहा है। यदि ये मूल रूप से केवल गरम पानी या भाप नहीं या दबाव के नीचे भी भाप नहीं, पुरातत्व काल के जीवाणु हैं हमारे सब के पुरखे, तो फिर उन्होंने जैसी कि प्रयोगशाला के (आटो-लेब) में होती है, जिस पर हम या उनकी पीढ़ियों ने ठंडा होकर जीना कैसे सीखा? मैं इससे ज्यादा दशकों से सारे जीवाणु नष्ट करने के लिए निर्भर करते आए हैं। आश्चर्यजनक चाल की कल्पना ही नहीं कर सकता।"
यह बहुत अधिक गरम पानी अत्यधिक दबाव में होता है जिसका ११४. सेवं भंते ! सेवं मंते ! त्ति भगवं गोयमे तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति भगवान् ११४. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ॥ गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नम- है-इस प्रकार कहते हुए भगवान् गौतम श्रमण स्यति।
भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करते हैं।
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