________________
भगवई
२७७
श.२: उ.५: सू.११०
अणाउजिया ? पलिउजिया णं भंते ! ते व्याकरणानि व्याकर्तुम् ? उताहो अना- को ये इस प्रकार के उत्तर देने में विशिष्ट थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाई वर्जिकाः ? परिवर्जिकाः भदन्त ! ते स्थविराः दायित्वपूर्ण हैं ? अथवा विशिष्ट दायित्वपूर्ण नहीं एयारूवाई वागरणाई वागरेत्तए ? उदाहु भगवन्तः तेषां श्रमणोपासकानाम् इमानि हैं ?--आर्यो ! पूर्वकृत तप से देव देवलोक में अपलिउजिया ?-पुब्बतवेणं अजो ! देवा एतद्रूपाणि व्याकरणानि व्याकर्तुम् ? उताहो उपपन्न होते हैं। आर्यो ! पूर्वकृत संयम, कर्म की देवलोएसु उववजंति । पुवसंजमेणं, अपरिवर्जिकाः?—पूर्वतपसा आर्याः ! देवाः सत्ता और आसक्ति के कारण देव देवलोक में कम्मियाए, संगियाए अज्जो ! देवा देव- देवलोकेषु उपपद्यन्ते । पूर्वसंयमेन, कर्मि- उपपन्न होते हैं, यह अर्थ सत्य है, अहंमानिता के लोएसु उववजंति । सचे णं एस मढे, नो तया, संगितया आर्याः ! देवाः देवलोकेषु कारण ऐसा नहीं कहा जा रहा है।' चेव णं आयभाववत्तब्बयाए ।
उपपद्यन्ते। सत्योऽयमर्थः, नो चैव आत्म
भाववक्तव्यतया । पभू णं गोयमा ! ते थेरा भगवंतो तेसिं प्रभवः गौतम ! ते स्थविराः भगवन्तः तेषां गौतम ! वे भगवान स्थविर उन श्रमणोपासकों समणोवासयाणं इमाइं एयारवाई वागरणाई श्रमणोपासकानाम् इमानि एतद्रूपाणि व्या- को ये इस प्रकार के उत्तर देने में समर्थ हैं, असमर्थ वागरेत्तए, नो चेव णं अप्पभू । समिया करणानि व्याकर्तु, नो चैव अप्रभवः। नहीं हैं। गौतम ! वे भगवान् स्थविर उन श्रमणोणं गोयमा ! ते थेरा भगवंतो तेसिं सम्यञ्चः गौतम ! ते स्थविराः भगवन्तः तेषां पासकों को ये इस प्रकार के उत्तर देने में योग्य समणोवासयाणं इमाई एयारवाई वागरणाइं। श्रमणोपासकानाम् इमानि एतद्पाणि व्या- हैं, अयोग्य नहीं हैं। गौतम ! वे भगवान् स्थविर वागरेत्तए, नो चेव णं असमिया। करणानि व्याकर्तुम्, नो चैव असम्यञ्चः। उन श्रमणोपासकों को ये इस प्रकार के उत्तर देने आउजिया णं गोयमा ! ते थेरा भगवंतो आवर्जिकाः गौतम ! ते स्थविराः भगवन्तः में दायित्वपूर्ण हैं, दायित्वहीन नहीं हैं। गौतम ! तेसिं समणोवासयाणं इमाई एयारवाई तेषां श्रमणोपासकानाम् इमानि एतद्रूपाणि वे भगवान् स्थविर उन श्रमणोपासकों को ये इस वागरणाइं वागरेत्तए, नो चेव णं व्याकरणानि व्याकर्तुम्, नो चैव अना- प्रकार के उत्तर देने में विशिष्ट दायित्वपूर्ण हैं, अणाउजिया। पलिउजिया णं गोयमा ! ते वर्जिकाः। परिवर्जिकाः गौतम ! ते स्थविराः विशिष्ट दायित्वहीन नहीं हैं आर्यो ! पूर्वकृत थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाई भगवन्तः तेषां श्रमणोपासकानाम् इमानि तप से देव देवलोक में उपपन्न होते हैं। आर्यो ! एयारवाई वागरणाइं वागरेत्तए, नो चेव णं एतद्रूपाणि व्याकरणानि व्याकर्तुम्, नो चैव पूर्वकृत संयम, कर्म की सत्ता और आसक्ति के अपलिउजिया–पुवतवेणं अज्जो ! देवा अपरिवर्जिकाः-पूर्वतपसा आर्याः ! देवाः कारण देव देवलोक में उपपन्न होते हैं यह अर्थ देवलोएसु उववजंति। पुबसंजमेणं, देवलोकेषु उपपद्यन्ते । पूर्वसंयमेन, सत्य है, अहंमानिता के कारण ऐसा नहीं कहा कम्मियाए, संगियाए अजो ! देवा देव- कर्मितया, संगितया आर्याः ! देवाः देवलोकेषु जा रहा है । लोएस उववनंति । सचे णं एस मटे, नो । उपपद्यन्ते । सत्योऽयमर्थः नो चैव आत्मचेव णं आयभाववत्तव्बयाए ।
भाववक्तव्यतया । अहं पिणं गोयमा ! एवमाइक्खामि, अहमपि गौतम ! एवमाख्यामि, भाषे, प्रज्ञाप- गौतम ! मैं भी इसी प्रकार आख्यान करता हूँ, भासामि, पण्णवेमि, परवेमि-पुचतवेणं यामि, प्ररूपयामि-पूर्वतपसा देवाः देवलो- भाषण करता हूँ, प्रज्ञापन करता हूँ, प्ररूपणा देवा देवलोएसु उववजंति। पुब्बसंजमेणं केषु उपपद्यन्ते । पूर्वसंयमेन देवाः देवलोकेषु करता हूँ-पूर्वकृत तप से देव देवलोक में उपपन्न देवा देवलोएसु उववनंति । कम्मियाए देवा उपपद्यन्ते। कर्मितया देवाः देवलोकेषु उप- होते हैं। पूर्वकृत संयम से देव देवलोक में उपपन्न देवलोएसु उववजंति। संगियाए देवा । पद्यन्ते। संगितया देवाः देवलोकेषु उप- होते हैं। कर्म की सत्ता से देव देवलोक में उपपन्न देवलोएसु उववजंति। पद्यन्ते।
होते हैं। आसक्ति के कारण देव देवलोक में
उपपन्न होते हैं। पुवतवेणं, पुचसंजमेणं, कम्मियाए, संगि- पूर्वतपसा, पूर्वसंयमेन, कर्मितया, संगितया- आर्यो ! पूर्वकृत तप, पूर्वकृत संयम, कर्म की याए अजो ! देवा देवलोएसु उववजंति। आर्याः ! देवाः देवलोकेषु उपपद्यन्ते। सत्ता और आसक्ति के कारण देव देवलोक में सचे णं एस मढे, नो चेव णं आयभाव- सत्योऽयमर्थः, नो चैव आमभावक्तव्यता । उपपन्न होते हैं। यह अर्थ सत्य है, अहंमानिता वत्तव्बयाए॥
के कारण ऐसा नहीं कहा जा रहा है।
भाष्य
१. योग्य
वृत्तिकार ने समिया के तीन अर्थ किए हैं—विपर्यासरहित, सम्यक् प्रवृत्त, अभ्यासवान् ।' १. आप्टे-सम्यक् -Fit.
व्याकर्तुं वर्तन्ते अविपर्यासास्त इत्यर्थः समञ्चन्तीति वा सम्यञ्चः समिता वा--- २. भ.व.२।११०-'समिया णं'ति सम्यगिति प्रशंसार्थो निपातस्तेन सम्यक् ते सम्यक्प्रवृत्तयः श्रमिता वा-अभ्यासवन्तः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org