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श.२: उ.५: सू.६६,६७
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भगवई
रन्ति ।
भाष्य १. शृङ्गाटकों ..... मार्गों
'शृंगाटक' इत्यादि पदों के लिए द्रष्टव्य है-भ.२।३० का भाष्य। ६७. तए णं ते समणोवासया इमीसे कहाए ततः ते श्रमणोपासकाः अनया कथया ६७. वे श्रमणोपासक इस कथा को सुनकर हृष्ट-तुष्ट लट्ठा समाणा हट्ठतुटूठचित्तमाणंदिया लब्धार्थाः सन्तः हृष्टतुष्टचित्ताः आनन्दिताः चित्तवाले, आनन्दित, नन्दित, प्रीतिपूर्ण मन वाले, गंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिस- नन्दिताः प्रीतिमनसः परमसौमनस्थिताः हर्ष- परम सौमनस्य-युक्त और हर्ष से विकस्वर वसविसप्पमाणहियया अण्णमण्णं सदाति, वशविसर्पहृदयाः अन्योन्यं शब्दयन्ति, शब्द- हृदयवाले हो गए। वे परस्पर एक दूसरे को सद्दावेत्ता एवं वयासी एवं खलु देवा- यित्वा एवमवादिषुः-एवं खलु देवानुप्रियाः! सम्बोधित कर इस प्रकार बोले–देवानुप्रियो ! गुप्पिया ! पासावचिजा थेरा भगवंतो पार्धापत्यीयाः स्थविरा भगवन्तः जाति- ___पार्धापत्यीय स्थविर भगवान् जो जातिसम्पन्न हैं जातिसंपन्ना जाव अहापडिरूवं ओग्गहं सम्पन्नाः यावद् यथाप्रतिरूपं अवग्रहम् अव- यावत् प्रवास-योग्य स्थान की अनुमति लेकर संयम
ओगिण्हित्ता णं संजमेणं तवसा अप्पाणं गृह्य संयमेन तपसा आत्मानं भावयन्तः विह- और तप से अपने आप को भावित करते हुए भावमाणा विहरंति। तं महाफलं खलु देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं तत् महाफलं खलु देवानुप्रियाः ! तथारूपाणां देवानुप्रियो ! तथारूप स्थविर भगवान् के थेराणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवण- स्थविराणां भगवतां नामगोत्रस्यापि श्रवण- नाम-गोत्र का श्रवण भी महान फलदायक है, फिर याए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण- स्य, किमंग पुनः अभिगमन-वन्दन- अभिगमन, वन्दन, नमस्कार, प्रतिपृच्छा और नमंसण-पडिपुच्छण-पञ्जुवासणयाए ? एग- नमस्यन-प्रतिप्रच्छन-पर्युपासनयाः ? एक- पर्युपसना का कहना ही क्या ? एक भी आर्य स्स वि आरियस्स घम्मियस्स सुवयणस्स स्यापि आर्यस्य धार्मिकस्य सुवचनस्य श्रवण- धार्मिक सुवचन का श्रवण महान् फलदायक है सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स स्य, किमंग पुनः विपुलस्य अर्थस्य ग्रहणस्य? फिर विपुल अर्थ-ग्रहण का कहना ही क्या ? गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! तद् गच्छामः देवानुप्रियाः ! स्थविरान् भगवतः इसलिए देवानुप्रियो ! हम चलें, स्थविर भगवान् थेरे भगवंते वंदामो नमसामो सकारेमो वन्दामहे नमस्यामः सत्कारयामः सम्मानयामः को वन्दन-नमस्कार करें, सत्कार-सम्मान करें। वे सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं कल्याणं मंगलं दैवतं चैत्यं पर्युपास्महे । एतत् । कल्याणकारी हैं, मंगल, देव और प्रशस्त चित्तवाले पजुवासामो। एवं णे पेचभवे इहभवे य नः प्रेत्यभवे इहभवे च हिताय सुखाय क्षमाय हैं, उनकी पर्युपासना करें । यह हमारे परभव हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए निःश्रेयसे आनुगामिकत्वाय भविष्यति इति और इहभव के लिए हित, सुख, क्षम, निःश्रेयस् आणुगामियत्ताए भविस्सति इति कटु कृत्वा अन्योन्यस्य अन्तिके एतदर्थं प्रति- और आनुगामिकता के लिए होगा। ऐसा अण्णमण्णस्स अंतिए एयमढें पडिसुणेति, शृण्वन्ति, प्रतिश्रुत्य यत्रैव स्वकानि-स्वकानि सोचकर वे परस्पर, इस विषय की प्रतिज्ञा करते पडिसुणेत्ता जेणेव सयाई-सयाई गिहाई गृहाणि तत्रैव उपागच्छन्ति, उपागम्य स्नाताः हैं, प्रतिज्ञा कर जहां अपने-अपने घर हैं, वहां तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पहाया कृतबलिकर्माणः कृतकौतुक-मंगल-प्राय- आते हैं, वहां आकर उन्होंने स्नान किया, कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पाय- चित्ताः शुद्धप्रवेश्यानि मंगलानि वस्त्राणि बलिकर्म' किया, कौतुक' (तिलक आदि), छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर प्रवरं परिहिताः अल्पमहाभिरणालंकृत- मंगल (दधि, अक्षत आदि) और प्रायश्चित्त परिहिया अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरा शरीराः स्वकेभ्यः-स्वकेभ्यः गृहेभ्यः प्रति- किया, शुद्ध प्रवेश्य' (सभा में प्रवेशोचित) सएहि-सएहिं गिहेहितो पडिनिक्खमंति, निष्कामन्ति, प्रतिनिष्क्रम्य एकतः मिलन्ति, मांगलिक वस्त्रों को विधिवत् पहना। अल्पभार पडिनिक्खमित्ता एगयओ मेलायंति, मेला- मिलित्वा पादविहारचारेण तुङ्गिकायाः नगर्याः और बहुमूल्य वाले आभरणों से शरीर को अलंकृत यित्ता पायविहारचारेणं तुंगियाए नयरीए मध्यमध्येन निर्गच्छन्ति, निर्गम्य यत्रैव किया। (इस प्रकार सञ्जित होकर वे) अपने-अपने मझमझेणं निग्गछंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पुष्पवतिकः चैत्यः तत्रैव उपागच्छन्ति, उपा- घरों से निकलकर एक साथ मिलते हैं। एक साथ पुष्फवतिए चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवा- गम्य स्थविरान् भगवतः पंचविधेन अभि- मिलकर पैदल चलते हुए तुंगिका नगरी के गच्छित्ता थेरे भगवंते पंचविहेणं अभिगमेणं ___ गमेन अभिगच्छन्ति, (तद् यथा-१. सचि- बीचोबीच निर्गमन करते हैं, निर्गमन कर जहां अभिगच्छंति, (तं जहा-१. सचित्ताणं त्तानां द्रव्याणां व्युत्सर्जनतया २. अचित्तानां पुष्पवतिक चैत्य है, वहां आते हैं, वहां आकर दव्वाणं विओसरणयाए २. अचित्ताणं द्रव्याणां च व्युत्सर्जनतया ३. एकशाटिकेन । पांच प्रकार के अभिगमों से स्थविर भगवान् के दव्वाणं अविओसरणयाए ३. एगसाडिएणं उत्तरासंगकरणेन ४. चक्षुःस्पर्श अंजलि- पास जाते हैं। (जैसे- १.सचित्त द्रव्यों को उत्तरासंगकरणेणं ४. चक्खुप्फासे अंजलि- प्रग्रहेण ५. मनसः एकत्वीकरणेन) यत्रैव छोड़ना २. अचित्त द्रव्यों को छोड़ना, ३. एक प्पग्गहेणं ५. मणसो एगत्तीकरणेणं) जेणेव स्थविराः भगधन्तः तत्रैव उपागच्छन्ति, उपा- शाटकवाला उत्तरासंग करना ४. दृष्टिपात होते
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