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भगवई
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श.२: उ.५: सू.६४
है। अतः श्रावक आगलों को ऊंचा कर अपने घर के मुख्य द्वार के रोगों पर चन्द्रमा का असर होता है। पूर्णिमा तथा अमावस्या के को तथा कोठे आदि के किंबाड़ को सदा खुला रखते हैं।' दिन चन्द्रमा का सर्वाधिक प्रबल प्रभाव होता है।"
अन्तःपुर और दूसरों के.....प्रवेश करने वाले वृत्तिकार ने इसके भगवती तथा जीवाजीवाभिगमे में बताया है कि लवण समुद्र तीन अर्थ किए हैं-श्रावक अपनी धार्मिकता के कारण इतना चतुर्दशी, अष्टमी, पूर्णिमा या अमावस्या और पूर्णिमा को विश्वसनीय हो जाता है कि उसका अन्तःपुर और परघर में प्रवेश अतिरेक-अतिरेक बढ़ता है और घटता है । अभिमत है, बिना रोकटोक हो सकता है। इसका दूसरा अर्थ है कि
लगता है, इसीलिए भगवती में जैन श्रावकों के लिए चतुर्दशी, उनके अन्तःपुर और घर में शिष्ट जन का प्रवेश सम्मत है। इसके
अष्टमी, पूर्णिमा या अमावस्या को केवल धर्म की आराधना करने का द्वारा उनकी ईर्ष्या-मुक्त प्रवृत्ति की सूचना दी गई है। तीसरा अर्थ है
विधान किया गया है। इन दिनों में उपवास को निर्जल करना कि उन्होंने अन्तःपुर और परघर में जैसे-तैसे प्रवेश करना वर्जित
चाहिए। शरीर में जल-तत्त्वों की अधिक वृद्धि न हो, इसीलिए निर्जल किया है। इनमें पहला अर्थ अधिक प्रासांगिक है।
उपवास का विधान किया गया है। उत्तरकाल में पर्व-तिथियों में चतुर्दशी, अष्टमी.....अनुपालन करनेवाले श्रमणोपासकों के । हरियाली का वर्जन करने की परम्परा प्रचलित हुई। लिए अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा को प्रतिपूर्ण
पर्व-तिथियों में जो उपवास किया जाता है वह पौषधोपवास पौषधोपवास करने का उल्लेख महत्वपूर्ण है। प्रतिपूर्ण पौषधोपवास
कहलाता है। पर्व-तिथियों में एक दिन-रात आहार, शरीर-सत्कार करने वाले चतुर्विध आहार का प्रत्याख्यान करते हैं, उपवास में जल
आदि का त्याग कर ब्रह्मचर्य-पूर्वक जो धर्माराधना की जाती है, उसे भी नहीं लेते। पूरे दिन और रात धर्म की आराधना में लीन रहते
'प्रतिपूर्ण पौषध' कहा जाता है।
विशेष जानकारी के लिए उत्तरायणाणि, ५।२३ का टिप्पण ज्योतिष-शास्त्र, शरीर-शास्त्र और विज्ञान के सन्दर्भ में यदि हम द्रष्टव्य है। इनका समाधान खोजें, तो सही समाधान मिल सकता है।
औषध-वह दवा जिसमें एक ही द्रव्य हो। शरीर-शास्त्र के अनुसार हमारे शरीर में बहत्तर प्रतिशत पानी है। पानी का संबन्ध चन्द्रमा से है।
भैषज्य-वह दवा जिसमें अनेक द्रव्यों का मिश्रण हो। ज्योतिष-शास्त्र में मन का कारक चन्द्रमा है। चन्द्रमा के आधार
शील-शील शब्द शील-समाधौ धातु से निष्पन्न हुआ है। पर ही ज्योतिषी जातक के मन की स्थिति का विश्लेषण करते हैं।
इसका अर्थ है 'समाधान' । आगम के व्याख्या-साहित्य में इसके अनेक
अर्थ किए गए हैं। श्रावक के बारह व्रतों में पांच अणुव्रत हैं, शेष "चन्द्रमा हमारी पृथ्वी का निकटवर्ती ग्रह है। पृथ्वी पर स्थित
सात शीलव्रत कहलाते हैं। पानी पर उसका सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। चन्द्र-दिवस के अनुसार
यहां 'गुण' शब्द का प्रयोग प्रथक् किया गया है, इसलिए समुद्र में ज्वार-भाटे का समय बदलता रहाता है।
'शील' शब्द के द्वारा चार शिक्षाव्रत ग्रहणीय हैं। "शुक्ल पक्ष की पञ्चमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की पञ्चमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी और
शील-चार शिक्षाव्रत। अमावस्या के दिन चन्द्रमा पृथ्वी और शरीर के ठीक सामने आता
व्रत-पांच अणुव्रत। है। उस समय समुद्र और हमारे शरीर का पानी उछाल मारता है। गुण-तीन गुणव्रत । इन पर्व-तिथियों में इधर शरीर का पानी उछाल मारता है, उधर हरी वृत्तिकार ने शीलव्रत का अर्थ अणुव्रत किया है।" वनस्पति जिसमें नब्बे प्रतिशत पानी होता है, का सेवन करने से
विरमण यथोचित राग आदि की निवृत्ति, इन्द्रिय-विषयों का शरीर में जल-तत्त्वों की वृद्धि हो जाती है और अग्नि-तत्त्व मन्द पड़ने
यथाशक्य परित्याग। से शरीर में वायु-रोग बढ़ता है। वायु जब मस्तिष्क में पहुंचता है। तो उसके कारण मनुष्यों में उन्माद उत्पन्न होता है।
प्रत्याख्यान नमस्कार-सहिता, पौरुषी आदि का संकल्प। "शिकागो के एक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया है कि मस्तिष्क
पौषप–पर्व-दिन में विशेष अनुष्ठान या आराधना करना ।
१. सूत्र.चू.पृ.३६८,३६६; द्रष्टव्य, सूय.२।२१७२ का टिप्पण। २. भ.व.२।६४-'चियत्तो'त्ति लोकानां प्रीतिकर एवान्तःपुरे वा गृहे वा प्रवेशो
येषां ते तथा, अतिधार्मिकतया सर्वत्रानाशङ्कनीयास्त इत्यर्थः । अन्येत्वाहुः-- 'चियत्तो'त्ति नाप्रीतिकरोऽन्तःपुरगृहयोः प्रवेश:-शिष्टजनप्रवेशनं येषां ते तथा, अनीर्ष्यालुताप्रतिपादनपरं चेत्थं विशेषणमिति । अथवा 'चियत्तो'त्ति त्यक्तोन्तःपुरगृहयोः परकीययोर्यथाकथञ्चित्प्रवेशो यैस्ते तथा । ३. तन्दुरुस्ती आपके हाथ में (एक्युप्रेशर पद्धति),पृ.७४ से ७६ । ४. (क) भ.३।१५२-लवणसमुद्दे चाउसमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु अतिरेगे वहुइ वा?
हायइ वा ? (ख) जीवा.३।२६ एवं खलु गोयमा लवणसमुद्दे चाउद्दसट्टमुद्दिट्ट
पुण्णमासिणीसु अतिरेगं अतिरेगं वहति वा हायति वा। ५. द्रष्टव्य, अभिधान राजेन्द्र कोश, 'शील' शब्द । ६. चारित्रसार,१३।६-"गुणव्रतत्रयं शिक्षाव्रतचतुष्टयं शीलसप्तकमित्युच्यते।" ___ द्रष्टव्य, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, 'शील' शब्द । ७. भ.वृ.२।६४-शीलव्रतानि-अणुव्रतानि ।
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