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________________ भगवई ८४. कायभवत्थे णं भंते ! कायभवत्ये त्ति aa hai हो ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चउवीसं संवच्छराई ॥ ८५. मणुस्स-पंचेंदियतिरिक्खजोणियबीए णं भंते! जोणिन्भू केवतियं कालं संचिट्ठ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता ॥ २६१ श. २: उ.५: सू. ८४-८६ कायभवस्थः भदन्त ! कायभवस्थः इति ८४. 'भन्ते ! कायभवस्थ (माता के उदर में रहे कालतः कियचिरं भवति ? हुए अपने गर्भ-शरीर में उत्पन्न होने वाला जीव ) कायभवस्थ के रूप में काल की दृष्टि से कितने समय तक रहता है ? १. सूत्र ८४ सूत्र ८३ में मानुषी के गर्भ की उत्कृष्ट स्थिति १२ वर्ष की बतलाई गई है और काय भवस्थ की २४ वर्ष की। कोई प्राणी पहले गर्भ में १२ वर्ष तक रहता है और वहां से मरकर फिर उसी गर्भ-शरीर में उत्पन्न हो जाता है और उत्पन्न होकर फिर १२ वर्ष तक गर्भ में रहता है। इस प्रकार काय भवस्थ की उत्कृष्ट गर्भ स्थिति २४ वर्ष ८६. एगजीवे णं भंते ! एगभवग्गहणेणं केवइयाणं पुत्तत्ताए हव्वामागच्छइ ? गोयमा ! जहण्णेणं इक्कस्स वा दोन्ह वा तिह वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तस्स जीवा णं पुत्तत्ताए हव्वमागच्छंति ॥ गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेण चतुर्विंशतिः संवत्सरान् । भाष्य Jain Education International की हो जाती है। एक ही गर्भकाय में उसके दो भव या जन्म हो जाते हैं,' इसलिए उसका नाम काय भवस्य किया गया है । १२ वर्ष की स्थिति को 'भवस्थिति' और २४ वर्ष की स्थिति को 'कायस्थिति' कहा जाता है। मनुष्य-पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकबीजं भदन्त ! ८५. 'भन्ते ! मनुष्य और पञ्चेन्द्रिय-तिर्यंच का योनिभूतं कियत् कालं संतिष्ठते ? योनि - बीज (वीर्य) कितने काल तक योनिभूत गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेण द्वा- (उत्पादक शक्तिवाला) रहता है ? दश मुहूर्तान् । गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कर्षतः बारह मुहूर्त । भाष्य १. सूत्र ८५ बीज और वीर्य पर्यायवाची शब्द हैं। प्रवचनसारोद्वार में बीज शुक्र और शोणित दोनों के लिए प्रयुक्त है। ' योनिभूत का अर्थ है—उत्पादक शक्ति से सम्पन्न | गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कर्षतः चौबीस वर्ष । १. भ. वृ. २ । ८४ काये— जनन्युदरमध्यव्यवस्थितनिजदेह एव यो भवो जन्म स कायभवस्तत्र तिष्ठति यः स कायभवस्थः, स च कायभवस्थ इति एतेन पर्यायेणेत्यर्थः, 'चउव्वीसं संवच्छराई ति स्त्रीकार्य द्वादश वर्षाणि स्थित्वा पुनर्मृत्वा तस्मिन्नेवात्मशरीरे उत्पद्यते द्वादशवर्षस्थितिकतया, इत्येवं चतुविंशतिवर्षाणि भवन्ति । केचिदाहुः - द्वादश वर्षाणि स्थित्वा पुनस्तत्रैवान्यबीजेन तच्छरीरे उत्पद्यते, द्वादशवर्षस्थितिरिति । एकजीवः भदन्त ! एकभवग्रहणेन कियतां ८६. 'भन्ते ! एक जीव एक भव में कितने जीवों का पुत्र हो सकता है ? पुत्रत्वाय 'हव्वं' आगच्छति ? गौतम ! जघन्येन एकस्य वा द्वयोः वा त्रयाणां वा, उत्कर्षेण शतपृथक्त्वस्य जीवाः पुत्रत्वाय 'हव्वं' आगच्छन्ति । गौतम ! जघन्यतः एक, दो या तीन और उत्कर्षतः नौ सौ तक जीवों का पुत्र हो सकता है। २. प्र. सारो.वृ. प. ४०१, द्वार २४१, गा. १३६० । russ मणुस्सी किट्ठा हो वरिसवारसगं । गमस्स य कायठिई नराण चउवीस वरिसाई | ३. वही, वृ. प. ४०२, द्वार २४७,गा. १३६७ बीयं सुकं तह सोणियं च ठाणं तु जणणिगब्धंनि । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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