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मूल
परिचारणा-वेद-पदं
७६. अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खति भासंति पण्णवंति परूवेंति
१. एवं खलु नियंठे कालगए समाणे देव भूणं अप्पाणेणं से णं तत्थ नो अण्णे देवे, नो अण्णेसिं देवाणं देवीओ अभिजुंजिय- अभिजुंजिय परियारेइ, नो अप्पणिचियाओ देवीओ अभिजुंजिय- अभिजुंजिय परियारेइ, अप्पणामेव अप्पाणं विउब्वियविउव्जिय परियारेइ । २. एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं दो वेदे वेदेइ, तं जहा — इत्थिवेदं च, पुरिसवेदं च ।
। इत्थिवेयरस वेयणाए पुरिसवेयं वेएइ, पुरिसवेयस्स वेयणाए इत्थवेयं वेएइ ।
एवं खलु एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं दो वेदे वेदेइ, तं जहा — इत्थिवेदं च पुरिसवेदं च ॥
पंचमो उद्देसो : पांचवां उद्देशक
संस्कृत छाया
च ।
जं समयं इत्थवेयं वेएइ तं समयं पुरिसवेयं यस्मिन् समये स्त्रीवेदं वेदयति, तस्मिन् समये बेइ । पुरुषवेदं वेदयति ।
जं समयं पुरिसवेयं वेएइ तं समयं इत्थिवेयं यस्मिन् समये पुरुषवेदं वेदयति, तस्मिन् समये
वे
परिचारणा-वेद-पदम्
अन्ययूथिकाः भदन्त ! एवमाख्यान्ति भाषन्ते ७६. 'भन्ते ! अन्ययूथिक ऐसा आख्यान, भाषण, प्रज्ञापयन्ति प्ररूपयन्तिप्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं
१. एवं खलु निर्ग्रन्थः कालगतः सन् देवभूतेन आत्मना स तत्र नो अन्यान् देवान्, नो अन्येषां देवानां देवी: अभियुज्य अभियुज्य परिचारयति, नो आत्मीयाः देवीः अभियुज्य-अभियुज्य परिचारयति, आत्मनैव आत्मानं विकृत्य- विकृत्य परिचारयति ।
२. एकोऽपि च जीवः एकेन समयेन द्वौ वेदी वेदयति, तद् यथा—स्त्रीवेदं च पुरुषवेदं
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स्त्रीवेदं वेदयति ।
स्त्रीवेदस्य वेदनया पुरुषवेदं वेदयति, पुरुषवेदस्य वेदनया स्त्रीवेदं वेदयति ।
एवं खलु एकोऽपि च जीवः एकेन समयेन द्वौ वेदौ वेदयति, तद् यथा—स्त्रीवेदं च, पुरुषवेदं च ।
१. सूत्र ७६
प्रस्तुत सूत्र में अन्यतीर्थिकों के दो मत निरूपित हैं। पहला मत देवों के मैथुन सेवन से संबधित है और दूसरा लिंग -वेदन से संबधित है। इनके विषय में भगवान् महावीर का अभिमत अगले सूत्रों में निदर्शित है।
शब्द-विमर्श
भाष्य
आश्लेष कर-कर---वृत्तिकार ने 'अभियुज्य' शब्द के दो अर्थ किए हैं-वश में कर अथवा आश्लेष कर ।'
१. भ.वृ.२१७८— 'अभियुज्य' वशीकृत्य आश्लिष्य वा ।
२. स्था.वृ. प. १०० परिचारणा देवमैथुनसेवेति । .... परिचारयति — परिभुङ्क्ते -
हिन्दी अनुवाद
परिचारणा-वेद- पद
१. मृत्यु को प्राप्त हुआ निर्ग्रन्थ अपनी देवरूप आत्मा के द्वारा वहां पर अन्य देवों और अन्य देवों की देवियों का आश्लेष कर-कर परिचारणा नहीं करता, वह अपनी देवियों का आश्लेष कर-कर परिचारणा नहीं करता, किन्तु वह अपने ही बनाए हुए विभिन्न रूपों से परिचारणा करता है ।
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२. एक जीव एक समय में दो वेदों का वेदन करता है, जैसे—स्त्रीवेद का और पुरुषवेद का ।
जिस समय वह स्त्रीवेद का वेदन करता है, उसी समय पुरुषवेद का वेदन करता है ।
जिस समय वह पुरुषवेद का वेदन करता है, उसी समय स्त्रीवेद का वेदन करता है।
वह स्त्री वेद के वेदन से पुरुषवेद का वेदन करता है और पुरुषवेद के वेदन से स्त्रीवेद का वेदन करता है।
इस प्रकार एक जीव भी एक समय में दो वेदों का वेदन करता है, जैसे— स्त्रीवेद का और पुरुषवेदका ।
परिचारणा करता है - इसका अर्थ है - परिभोग करना । स्थानांग वृत्ति में इसका अर्थ 'देव-मैथुन-सेवा' भी किया है।' द्रष्टव्य, ठाणं ३१६ का टिप्पण और ५।५४ का टिप्पण । विउब्बिय - इसका अर्थ है रूप का निर्माण कर ।
वेद - यह एक पारिभाषिक शब्द है। इसका अर्थ है - 'मैथुन की संवेदना उत्पन्न करने वाला मोहकर्म का परमाणु-स्कन्ध' । इसका दूसरा अर्थ है 'मैथुन की संवेदना'। इसका तीसरा अर्थ है 'मैथुन-क्रिया में उत्पन्न होने वाले लिंग' । ३
वेदबाधोपशमनायेति ।
३. प्रज्ञा. वृ. प. ४६८, ४६६ - विद्यते ' इति वेदः स्त्रिया वेदः स्त्रीवेदः, स्त्रियाः
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