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चउत्थो उद्देसो : चौथा उद्देशक
मूल
संस्कृत छाया इन्द्रिय-पदम्
हिन्दी अनुवाद इन्द्रिय-पद
इंदिय-पदं
७७. कइ णं मंते ! इंदिया पण्णता ? कति भदन्त ! इन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि ? गोयमा ! पंच इंदिया पण्णत्ता, तं जहा- गौतम ! पंच इन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि, तद् यथा १. सोइंदिए २. चक्खिंदिए ३. पाणिदिए -श्रोत्रेन्द्रियं, चक्षुरिन्द्रियं, घ्राणेन्द्रियं, रसे- ४. रसिदिए ५. फासिदिए । पढमिल्लो न्द्रियं, स्पर्शेन्द्रियम् । प्रथमः इन्द्रिय-उद्देशकः इंदियउद्देसओ नेयन्वो जा
नेतव्यः यावत्
७७. भन्ते ! इन्द्रियां कितनी प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! इन्द्रियां पांच प्रज्ञप्त हैं, जैसे-श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय। प्रथम इन्द्रिय-उद्देशक (पण्णवणा के इन्द्रिय-पद (१५) का प्रथम उद्देशक) ज्ञातव्य है, यावत्
७८. अलोगे णं भंते ! किणा फुडे ? कतिहिं अलोकः भदन्त ! केन स्पृष्टः कतिभिः वा ७८. भन्ते ! अलोक किससे स्पृष्ट है ? अथवा कितने वा काएहिं फुडे ? कायैः स्पृष्टः ?
कायों से स्पृष्ट हैं ? गोयमा ! नो धम्मत्थिकारणं फुडे जाव नो ___ गौतम ! नो धर्मास्तिकायेन स्पृष्टः यावन् नो गौतम ! वह न धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट है यावत् न आगासत्यिकाएणं फडे, आगासत्थिकायस्स आकाशास्तिकायेन स्पृष्टः, आकाशास्ति- आकाशास्तिकाय से स्पृष्ट है। वह आकाशास्तिदेसेणं फुडे आगासत्यिकायस्स पदेसेहिं कायस्य देशेन स्पृष्टः आकाशास्तिकायस्य काय के देश से स्पृष्ट है। वह आकाशास्तिकाय फुडे, नो पुढविकाइएणं फुडे जाव नो अद्धा- प्रदेशैः स्पृष्टः, नो पृथिवीकायेन स्पृष्टः यावन् के प्रदेशों से स्पृष्ट है। वह न पृथ्वीकाय से स्पृष्ट समएणं फुडे, एगे अजीवदव्वदेसे अगुरु- नो अद्धासमयेन स्पृष्टः, एकः अजीवद्रव्यदेशः है यावत् न अद्धा समय से स्पृष्ट है। वह एक, लहुए अणंतेहिं अगुरुलहुयगुणेहिं संजुत्ते अगुरुलघुकः अनन्तैः अगुरुलघुकगुणैः अजीव द्रव्य का देश, अगुरुलघु, अनन्त अगुरुसव्वागासे अणंतमागूणे ॥ संयुक्तः सर्वाकाशः अनन्तभागोनः । लघु गुणों से संयुक्त है और अनन्तवें भाग से न्यून
परिपूर्ण आकाश है।
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