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________________ श.२: उ.२. सू.७४ २५४ भगवई करने के लिए केवली समुद्घात होता है। जब आयुष्य केवल प्रथम चार समयों में आत्म-प्रदेश क्रमशः फैलते हैं, वैसे ही अन्त के अन्तर्मुहूर्त शेष रहता है, तभी समुद्घात होता है। समुद्घात में आठ चार समयों में क्रमशः सिकुड़ते हैं। पांचवे समय में फिर मन्थनाकार, समय लगते हैं। पहले समय में आस-प्रदेश शरीर के बाहर निकल छठे समय में कपाटाकार, सातवें समय में दण्डाकार और आठवें कर दण्डाकार फैल जाते हैं। वह दण्ड ऊंचाई-निचाई में लोक-प्रमाण समय में पहले की भांति शरीरस्थ हो जाते हैं। होता है। पर उसकी मोटाई शरीर के बराबर ही होती है। दूसरे इन आठ समयों में पहले और आठवें समय में औदारिक समय में उक्त दण्ड पूर्व-पश्चिम या उत्तर-दक्षिण में फैलकर कपाटाकार योग, दूसरे, छठे और सातवें समय में औदारिकमिश्र योग तथा तीसरे, (किंवाड़ के आकार का) बन जाता है। तीसरे समय में कपाटाकार चौथे और पांचवे समय में कार्मण योग होता है।' समुद्घात-विषयक आत्म-प्रदेश पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण में फैलकर मन्थनाकार । विशेष अवबोध के लिए पण्णवणा का छत्तीसवां पद (समुद्घात-पद) (मन्थनी के आकार के) बन जाते हैं। चौथे समय में खाली भागों द्रष्टव्य है। में फैलकर आत्म-प्रदेश समूचे लोक में व्याप्त हो जाते हैं। जिस प्रकार १. पण्ण.३६/८२-८५;प्रज्ञा.वृ.प.६०२-तस्य केवलिनः सर्व-बहुप्रदेशं वेदनीय मुपलक्षणमेतद् नामगोत्रे च तथा सर्वश्तोकप्रदेशमायुःकर्म तदा स......ततश्च तैर्वन्धनैः स्थितिभिश्च विषमं सत् वेदनीयादिकं समुद्घातविधिना सममायुषा सह करोति, स एवं खलु केवली बन्धनैः, स्थितिभिश्च विषमस्य सतो वेदनीयादिकस्य कर्मणः 'समीकरणयाए'. समवहन्ति-समुद्घाताय प्रयतते, एवं खलु समुद्घातं गच्छति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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