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________________ मूल समुग्धाय-पदं ७४. कइ णं भंते! समुग्धाया पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्त समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - १. वेदणासमुग्धाए २. कसायसमुग्धाए ३. मारणंतियसमुग्धाए ४. वेउव्वियसमुग्धाए ५. तेजससमुग्धाए ६. आहारगसमुग्धाए ७. केवलियसमुग्धाए । छाउमत्थियसमुग्धायवज्जं समुग्धायपदं नेयब्वं । बीओ उद्देसो : दूसरा उद्देशक संस्कृत छाया समुद्घात-पदम् कति भदन्त ! समुद्घाताः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! सप्त समुद्घाताः प्रज्ञप्ताः, तद् यथावेदनासमुद्घातः, कषायसमुद्घातः, मारणान्तिकसमुद्घातः, वैक्रियसमुद्घातः, तैजससमुद्घातः, आहारकसमुद्घातः, कैवलिकसमुद्घातः । छाद्मस्थिकसमुद्घातवर्ज्यं समुद्धातपदं नेतव्यम् । १. सूत्र ७४ जीव विशेष परिस्थिति में अपने प्रदेशों का शरीर से बाहर प्रक्षेपण करता है, उस क्रिया का नाम समुद्घात है। १. भ. ६ । १२२ । भाष्य वेदना समुद्घात — जीव जब वेदना के अनुभव में परिणत होकर उस (वेदना के अनुभव ) के साथ एकीभाव स्थापित कर लेता है, उस समय वह भविष्य में अनुभव-योग्य वेदनीय कर्म-प्रदेशों की उदीरणा कर उन्हें उदय में ले आता है । उदित पुद्गलों का अनुभव कर उनका निर्जरण कर देता है । वेदना समुद्घात में परिणत जीव वेदनीय कर्म पुद्गलों का परिशाटन अथवा निर्जरण करता है। कषाय समुद्घात—जीव क्रोध, मान, माया और लोभ में परिणत होकर शरीर से बाहर आत्म-प्रदेशों को फैलाता है, शरीर के पोले भाग को भरता है, फिर उनका शरीर से बाहर प्रक्षेपण करता है । इस क्रिया में वह कषाय के पुद्गलों का परिशाटन अथवा निर्जरण करता है। Jain Education International मारणान्तिक समुयात—जीव का आयुष्य अन्तर्मुहूर्त्त शेष रहता है, तब वह मारणान्तिक समुद्घात करता है। सब जीव मारणान्तिक समुद्घात के द्वारा नहीं मरते। जिनका अन्तिम समय अत्यन्त कष्टमय होता है, वे ही जीव मारणान्तिक समुद्घात करते हैं। यह समुद्घात मरण के अन्त में होता है, इसलिए इसका नाम मारणान्तिक है। इस समुद्घात का प्रयोग करने वाला अपने आत्म-प्रदेशों को चौड़ाई में शरीर - प्रमाण तथा लम्बाई में जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग-प्रमाण, उत्कर्षतः असंख्य-योजन - प्रमाण क्षेत्र तक एक ही दिशा में अगले जन्म में उत्पन्न होने के स्थान तक फैला देता है। हिन्दी अनुवाद समुद्घात पद ७४. 'भन्ते ! समुद्घात कितने प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! समुद्घात सात प्रज्ञप्त हैं, जैसे—वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणान्तिक समुद्घात, वैक्रिय समुद्घात, तैजस समुद्घात, आहारक समुद्घात और केवली समुद्घात । छाद्मस्थिक समुद्घात को छोड़कर पण्णवणा का समुद्घात - पद (३६) ज्ञातव्य है । मारणान्तिक समुद्घात कोई जीव एक बार करता है। वह अपने उत्पत्ति-स्थान में जाकर वहीं उत्पन्न हो जाता है। कोई जीव उसका प्रयोग दो बार करता है। वह मारणान्तिक समुद्घात के द्वारा अपने अग्रिम जन्म के उत्पत्ति-स्थान तक पहुंचकर लौट आता है। पूर्व स्थिति में आकर फिर मारणान्तिक समुद्घात का प्रयोग कर मरता मारणान्तिक समुद्घात करने वाला आयुष्य कर्म के पुद्गलों का परिशाटन अथवा निर्जरण करता है। वैक्रिय समुद्घात —— इस समुद्घात का प्रयोग विक्रिया - विविध प्रकार के रूपों का निर्माण करने के लिए किया जाता है। वैक्रिय समुद्घात का प्रयोग करने वाला वैक्रिय शरीर नाम कर्म के पुद्गलों का परिशाटन अथवा निर्जरण करता है। भट्ट अकलंक ने विक्रिया के दो प्रकारों का निर्देश किया है— एकत्व-विक्रिया और पृथक्त्वविक्रिया । For Private & Personal Use Only एकत्व - विक्रिया- अपने शरीर का सिंह आदि के रूप में परिवर्तन करना । उदाहरण के रूप में स्थूलभद्र को प्रस्तुत किया जा सकता है। स्थूलभद्र की बहनें अपने मुनि- भाई का दर्शन करना चाहती थी। उन्होंने श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी से पूछा—- हमारे भाई कहा हैं ? भद्रबाहु ने कहां - - गुफा में ध्यान कर रहा है। वे गुफा की ओर गई, स्थूलभद्र ने अपनी बहनों के आने की बात जान ली, सिंह का रूप बनाकर बैठ गए। बहनों ने गुफा में सिंह को देखा और वे मुड़कर वापस भद्रबाहु के पास आ गई। भद्रबाहु के संकेता www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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