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________________ श.२: उ.१: सू.६६ २४६ भगवई भाष्य १. मध्यरात्रि में 'प्रस्तुत वाक्य में दो पद हैं—'पूर्वरात्र' और 'अपरात्र', का अर्थ होता है धर्मचिन्ता। धर्मध्यान का अनुस्मरण करना-इसके पूर्वरात्र-रात्रि का पूर्व भाग-यह वृत्तिकार का अभिमत है। रात्रि आधार पर धर्मजागरिका का अर्थ होता है धर्मध्यान का अभ्यास । के पश्चिम भाग के अर्थ में 'अपररात्र' शब्द का प्रयोग मिलता है। नींद से जागना-इसके आधार पर धर्मजागरिका का अर्थ होता है संस्कृत शब्दकोश में भी 'अपररात्र' शब्द इस अर्थ में उपलब्ध -नींद को त्याग कर धर्म के विषय में अनुचिन्तन करना । है। 'अपरात्र' शब्द विरात्र के अर्थ में मिलता है।' शब्दकोश के ३. सुहस्ती आधार पर पूर्वरात्र का कालमान सूर्यास्त से मध्यरात्रि तक तथा तीर्थंकर का एक विशेषण 'पुरुषवरगन्धहस्ती' मिलता है।' अपररात्र का कालमान रात्रि का अंतिम प्रहर है।' वृत्तिकार ने इसका मुख्य अर्थ 'शुभार्थी' किया है। किन्तु 'सुहस्ती' वृत्तिकार ने अवरत्त को अपररात्र का ही प्राकृत रूप माना अधिक प्रासंगिक लगता है। है। उनके अनुसार रेफ का लोप होने पर अवरत्त पद की सिद्धि हो ४. उषाकाल में पौ फटने पर जाती है। _इस वाक्य में रात्रि के उषाकाल की सूचना दी गई है। अनुजयाचार्य के अनुसार पुब्बरतावरत-इन दोनों पदों से योगद्वारचूर्णि में इस समय को अरुणोदय से लेकर सूर्योदय के पहले 'मध्यरात्रि' का अर्थ फलित होता है। 'पूर्वरात्रि का अंतिम भाग' ___ तक का बतलाया गया है। और 'पश्चिमरात्रि का पूर्वभाग'-यह अर्धरात्रि का समय है। ५. प्रफुल्लित उत्पल और अर्धविकसित कमल वाले पुवरत्तावरत्त वाक्य के द्वारा इसी समय का संकेत दिया गया है।' इस वाक्य में आए हुए'कमल' शब्द का अर्थ वृत्ति में 'हरिण' अनुयोगद्वारचूर्णि से चिन्तन का समय रात्रि का दूसरा प्रहर किया गया है और कोमल का अर्थ 'अकठोर'। यहां कमल का फलित होता है। इससे मध्यरात्रि के अर्थ की पुष्टि होती है। दिगम्बर हरिण अर्थ स्वाभाविक नहीं है। इसका सहज अर्थ 'जलज' ही होना परम्परा के अनुसार 'सूर्यास्त से दो घड़ी पश्चात् से लेकर अर्धरात्रि चाहिए। कमल सूर्यविकासी होता है; इसलिए वह प्रसंगानुसारी भी के दो घड़ी पूर्व तक' पूर्वरात्रिक स्वाध्याय का समय है। 'अर्धरात्रि है। अनुयोगद्वारचूर्णि में उत्पल और कमल दोनों एक साथ उल्लिखित के दो घड़ी पश्चात् से सूर्योदय के दो घड़ी पूर्व तक' वैरात्रिक हैं और 'कोमल' शब्द अपूर्ण के अर्थ में व्याख्यात है।" सूत्रकार स्वाध्याय का समय है। इन दोनों के बीच 'अर्धरात्रि के दो घड़ी ने भी कोमल का प्रयोग उन्मीलित के विशेषण के रूप में किया है। पूर्व से अर्धरात्रि के दो घड़ी पश्चात् तक' चार घड़ी का समय निद्रा 'कोमल उन्मीलित' अर्थात् अर्धविकसित । का है। इस समय का उपयोग धर्मजागरिका के लिए भी किया जाता ६. पीत आभावाले था।" 'पूर्वरात्र अपरात्र'—इस वाक्य की दो अर्थ-परम्पराएं प्राप्त पाण्डुर शब्द के अनेक अर्थ हैं। सफेद-सा, सफेद-पीला । अनुयोगद्वारचूर्णि में इसका अर्थ 'प्रभाखचित जैसा' किया गया है।" १. रात्रि का प्रथम भाग और पश्चिम भाग। ७. पांच महाव्रतों की आरोपणा करूं २. मध्यरात्रि। इस वाक्य में विहरितए तक के पाठ से अनशन की विधि फलित होती है। उसके चार अंग हैं२. धर्मजागरिका १. महाव्रत की आरोपणा—आरोपणा का अर्थ है प्रायजागरिका का अर्थ है-चिन्तन, अनुस्मरण और नींद से श्चित्त महाव्रतों का पुनरुच्चारण और उनमें जाने-अनजाने हई भलों जागना। धर्म का चिन्तन करना-इसके आधार पर धर्मजागरिका का प्रायश्चित्त । १. आप्रे.-विरार--The end of night (बहुरात्र, अपरात्र) ५. अणगारधर्मामृत,६।१-१३। २. वही,--पूर्वरात्र-The first part of the night from dark to ६. आवस्सयं,६।११। midnight. ७. भ.व.२।६६–'सुहत्थि'त्ति शुभार्थी भव्यान् प्रति सुहस्ती वा पुरुषअपररात्र-The last watch of night (पाणिनी अष्टाध्यायी ५।४।८७) वरगन्धहस्ती। ३. भ.जो. ११३८३३का नीचे का वार्तिक—पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि-इहां . वही,२।६६ प्रादुः-प्राकाश्ये ततः प्रकाशप्रभातायां रजन्यां। इण पाठ ऊपर टीकाकार नो विवेचन मननीय है--रात्रि नो पूर्वभाग ते पूर्वरात्र ६. अनु.चू.पृ.११—पादुरिति प्रकासीकृतं, केन ? प्रभया, किं प्रकासितं ? रयकहियै। वलि अपररात्र ते अपकृष्ट रात्रि, रात्रि नु पश्चिम भाग । पूर्वरात्रि अनै णीए सेसं, किमुक्तं भवति? अरुणोदयादारभ्य यावन्नोदयति आदित्य इत्यर्थः पश्चिम रात्रि ए बिहुं लक्षण जो काल रूप समय तेहनै कहियै पुब्ब- तंसि पभाते, पभातोवलक्खणं च इमं। रत्तावरत्तकालसमय । एतलै मध्यरात्रि नै विषे- पूर्व रात्रि नुं छेहलु भाग अनैं १०. भ.वृ.२।६६-फुल्लं विकसितं तच्च तदुत्पलं च फुल्लोत्पलं तच्च कमलपश्चिम रात्रि नुं पहिलं भाग ए बिहु भाग रात्रि ना ते वेला अर्द्धरात्रि हुई, ते श्च हरिणविशेषः फुल्लोत्पलकमलौ तयोः कोमलम् अकठोरमुन्मीलितंअर्धरात्रि नै विषे। दलानां नयनयोश्चोन्मीलनं यस्मिंस्तत्तथा तस्मिन् । अथवा पूर्वरात्रि अपररात्रि काल समय इहां रेफरा लोप थकी पुव्व- ११. अनु.चू.पृ.११-फुल्ला उप्पला कमला य कोमला उम्मिल्लिया-अद्धविरत्तावरत्तकालसमयंसि इम पाठ हुई। कसिता य सोभना। ४. अनु.चू.पृ.११ –कल्लमिति श्वः प्रगे वा तच्च कल्यमतिक्रान्तमनागतं वा, १२. वही,पृ.११-प्रभाखचितेव्व उदिते सूरे भवति । एतच कल्यग्रहणं पण्णवर्ग पडुच्च जओ पण्णवगो बितिय जामे पण्णवेति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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