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श. २: उ.१: सू.६२
वाली।
१. उत्कृष्ट उत्कृष्ट – ओंधे मुंह लेटकर ली जाने वाली ।
२. उत्कृष्ट मध्यम – बाई या दाई करवट में लेटकर ली जाने
३. उत्कृष्ट जघन्य — सीधा लेटकर ली जाने वाली । मध्यम आतापना के भी तीन प्रकार हैं-
४. मध्यम उत्कृष्ट ५. मध्यम मध्यम
६. मध्यम जघन्य — उकडू आसन में ली जाने वाली । जघन्य आतापना के भी तीन प्रकार हैं
७. जघन्य उत्कृष्ट — हस्तिशुण्डिका में ली जाने वाली । ८. जघन्य मध्यम — एकपादिका में ली जाने वाली । ६. जघन्य जघन्य - समपादिका में ली जाने वाली ।
आतापना से प्राणिक ऊर्जा का संचय होता है। यह सूर्य के तेजस् अर्थात् सौर ऊर्जा (solar energy ) से प्राप्त होती है। सूर्य रश्मि - चिकित्सा पद्धति में सूर्य किरणों का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। मुनि और तपस्वी इनका प्रयोग प्राण ऊर्जा के संवर्धन और चित्त की निर्मलता के लिए करते थे ।
पर्यकासन में ली जाने वाली । ' अर्धपर्यंकासन में ली जाने वाली।
पर्यकासन — बाएं पैर को दाएं ऊरु और जंघा की संधि पर तथा दाएं पैर को बाएं ऊरु और जंघा की संधि पर रखना । पर्यंकासन और पद्मासन को एक माना जाता है। घेरण्डसंहिता अनुसार बद्धपद्मासन ही पद्मासन है। आप्टे के अनुसार पर्यकासन और वीरासन एक हैं । '
अर्धपर्यंकासन — बाएं या दाएं किसी एक पैर को में रखना।
मुद्रा
हस्तिशुण्डिकासन —— हस्तिशुण्डिकासन की दो मुद्राएं प्राप्त होती
हैं-
१. पुतों के सहारे बैठ कर क्रमश: एक-एक पैर को ऊपर उठाकर अधर में रखना
१. मध्यम के वैकल्पिक प्रकार इस प्रकार हैं
२. सीधे खड़े रहकर शिर को घुटनों की ओर नीचे लाना तथा दोनों हाथ जोड़कर हाथी की सूण्ड की भांति दोनों पैरों के बीच से ले जाना ।
मध्यम उत्कृष्ट - गोदोहिकासन में ली जाने वाली । मध्यम मध्यम-उकडू- आसन में ली जाने वाली | मध्यम जघन्य पर्यंकासन में ली जाने वाली।
४. घेरण्डसंहिता, २८
पद्मासन
२. बृ.क.भा.गा. ५६४५-५६४६ ।
३. स्था.वृ. प. २८७ पर्यंका - जिनप्रतिमानामिव या पद्मासनमिति रूढा तथा अर्धपर्यंका उरावेकपादनिवेशनलक्षणा ।
७. मनोनुशासनम्,पृ.४६ ।
की
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वामोरुपरि दक्षिणं हि चरणं संस्थाप्य वामं तथा, दक्षोरुपरि पश्चिमेन विधिना कृत्वा कराभ्यां दृढम् । अंगुठे ह्रदये निधाय चिबुकं नासाग्रमालोकयेत्, एतद्व्याधिविनाशकारणपरं पद्मासनं प्रोच्यते ।।
५. आप्टे पर्यंकासन — देखें, इसी सूत्र में वीरासन का भाष्य, भाष्यांक ६ । ६. (क) बृ.क.भा.गा. ५६४८ वृत्ति – पुताभ्यामुपविष्टस्यैकपादोत्पाटनरूपा ।
(ख) देखें, उत्तर. ३० । २७ का टिप्पण ।
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भगवई
एकपादिक सीधे खड़े होकर गर्दन, पृष्ठवंश और पैर तक का सारा शरीर सीधा और समरेखा में रखकर एक पैर को उठाकर सीधा फैलाना । "
समपादिका—सीधे खड़े रहकर गर्दन, पृष्ठवंश और पैर तक का सारा शरीर सीधा और समरेखा में रखकर दोनों पैरों को सटाकर रखना।
६. वीरासन
प्रथम परिभाषा - कुर्सी पर बैठकर उसे निकाल देने पर जो मुद्रा बनती है उसे वीरासन कहते हैं । '
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दूसरी परिभाषा - बद्धपद्मासन की तरह दोनों पैरों को रखकर, हाथों को पद्मासन की तरह रखना।
तीसरी परिभाषा - दाएं पैर के घुटने को उठाकर पैर भूमि पर रखा जाता है। बाएं पैर की अगुलियों को भूमि पर टिकाकर, एड़ी ऊंची कर, उस पर गुदा रखकर बैठा जाता है। घुटना आड़ा रखा जाता है। मुट्ठी बांधकर हाथ घुटनों पर सीधे रखे जाते हैं । सीना उठाकर सामने देखा जाता है।
घेरण्डसंहिता में भी प्रायः यही मुद्रा मिलती है। " आप्टे ने वीरासन के विषय में वशिष्ठ का मत उद्धृत किया है।'
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फल — उकडू आसन का प्रभाव वीर्य-ग्रन्थियों पर पड़ता है और यह ब्रह्मचर्य की साधना में बहुत फलदायी है। वीरासन से धैर्य, सन्तुलन और कष्ट - सहिष्णुता का विकास होता है ।
वीरासन की विधि - दायें पैर को घुटने से मोड़कर एडी मलद्वार पर नीचे आ जाए इस प्रकार रखें। बांये पैर को घुटने से मोड़कर एडी दायें पैर के पंजे के पास रहे इस प्रकार रखें। रेचक करते-करते बांये हाथ को बांई साथल पर उस प्रकार रखो जिससे कोहनी का भाग थोड़ा ही दूर रहे। फिर दायें हाथ के पंजे से बांये हाथ के पहुंचे को पकड़े।
वीरासन का प्रभाव - वीरासन का यह दूसरा प्रकार है। इस आसन में बैठकर नादानुसन्धान किया जाता है।
इस आसन के अभ्यास से शौर्य प्रकट होता है। जठराग्नि प्रदीप्त होती है। स्फूर्ति और उत्साह पैदा होता है ।
८. (क) वृ.क.भा.गा. ५६४८वृत्ति - उत्थितस्यैकपादेनावस्थानम् । (ख) मनोनुशासनम्,पृ.४३ ।
६. (क) वृ.क.भा.गा. ५६४८ वृत्ति - समतलाभ्यां पादाभ्यां स्थित्वा यदूर्ध्वस्थितैराताप्यते ।
(ख) मनोनुशासनम्, पृ. ४३
१०. भ. वृ. २ / ६२ सिंहासनोपविष्टस्य — भून्यस्तपादस्यापनीतसिंहासनस्येव यदवस्थानं तद्वीरासनम् ।
११. मनोनुशासनम्,पृ. ५२ ।
१२. आसन अने मुद्रा, प्रथम खण्ड, पृ. २६७ । १३. घेरण्डसंहिता, २।१५
एकपादमथैकस्मिन् विन्यसेदुरुसंस्थितम् । इतरस्मिस्तथा पश्चाद् वीरासनमिति स्मृतम् ॥ पर्यंकासन
एकं पादमथैकस्मिन् विन्यस्योरौ तु संस्थितं । इतरस्मिंस्तथैवोरुं वीरासनमुदाहृतम् ||
१४. आप्टे
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