________________
२४१
श.२: उ.१: सू.६२
दिन में आसन
तपस्या के दिन पारणा के दिन
उकडू
१५
उकडू उकडू उकडू
م
م
उकडू
م
مه
भगवई | कालमान । तपस्या
प्रथम मास चतुर्थ-चतुर्थ भक्त द्वितीय मास | षष्ठ-षष्ठ भक्त तृतीय मास | अष्टम-अष्टम भक्त चतुर्थ मास दशम-दशम भक्त पंचम मास | द्वादश-द्वादश भक्त षष्ठ मास |चतुर्दश-चतुर्दश भक्त सप्तम मास | षोडश-षोडश भक्त अष्टम मास | अष्टादश-अष्टादश भक्त नवम मास बीसवां-बीसवां भक्त दशम मास बावीसवां-बावीसवां भक्त ग्यारहवां मास | चौबीसवां-चौबीसवां भक्त बारहवां मास | छबीसवां-छबीसवां भक्त तेरहवां मास अठाईसवां-अठाईसवां भक्त चौदहवां मास | तीसवां-तीसवां भक्त । पन्द्रहवां मास | बत्तीसवां-बत्तीसवां भक्त सोलहवां मास | चौतीसवां-चौतीसवां भक्त
उकडू उकडू
उकडू
आतापना
रात्रि आसन सूर्याभिमुख होकर वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर | वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर । | वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर | वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर | वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर | वीरासन निर्वस्त्र अवस्था सूर्याभिमुख होकर | वीरासन निर्वस्त्र अवस्था
उकडू
उकडू
سه سه سه سه سه له له
उकडू
उकडू उकडू उकडू उकडू
له له
उकडू
له اشه
२. बिना विराम
अनिक्षिप्त का अर्थ 'बिना विराम' है।
३. चतुर्थ
इसका अर्थ है उपवास । एक दिन में भोजन के दो भक्त (या वेला) माने जाते हैं। प्राचीन परम्परा के अनुसार उपवास करने वाला एक बार भोजन कर आहार का प्रत्याख्यान कर देता है। उपवास के दिन दो भक्त अनाहार रहते हैं। पारणा के दिन भोजन के समय उपवास पूरा किया जाता है। चौथे भक्त की सीमा तक आहार का त्याग होता है, इसलिए इसका पारिभाषिक नाम चतुर्थ है।' आगम-साहित्य में उपवास के लिए प्रायः 'चतुर्थ' का ही प्रयोग मिलता है। सम्बोधप्रकरण में इसके अनेक पर्यायवाची नाम मिलते हैं।' ४. स्थान कायोत्सर्ग-मुद्रा और उकडू आसन
स्थान का अर्थ है कायोत्सर्ग। वृत्तिकार ने स्थान का अर्थ आसन किया है। उत्कुटुक या उकडू आसन का अर्थ है-दोनों पैरों को भूमि पर टिकाकर दोनों पुतों को भूमि से न छुहाते हुए भूमि पर बैठना।
इसकी दूसरी परिभाषा है-एड़ी और पुतों को ऊंचा रखकर
बैठना।
घेरण्डसंहिता में उत्कटासन का विवरण इस प्रकार है-चरणों के अंगूठों को भूमि में टेककर, दोनों एड़ियों को निरालम्ब कर, ऊपर को उठा दें। गुदा को एड़ियों पर रखें-इसे उत्कटासन कहते हैं।' ५. आतापन-भूमि में आतापना लेता है
आतापना तैजस शक्ति या कुण्डलिनी के विकास की एक प्रकृष्ट साधना है।' इसका प्रयोग जैन मुनि तथा अन्य तपस्वी भी करते थे।' इस तप के लिए एक ऊंचा स्थान चुना जाता है, जहां से सूर्य का आतप लिया जा सके। यह स्थान पर्वत का शिखर या कोई भी ऊंचा टीला हो सकता है। आतापना सूर्य के सम्मुख खड़े होकर, दोनों भुजाओं को ऊंचा कर ली जाती थी। यह कायोत्सर्ग की खड़ी मुद्रा और उकडू आदि आसनों में ली जाती थी। बृहत्कल्प भाष्य में आतापना के तीन प्रकार निर्दिष्ट है-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य। ____उत्कृष्ट लेटकर ली जाने वाली।
मध्यम–बैठकर ली जाने वाली।
जघन्य-खड़े-खड़े ली जाने वाली। उत्कृष्ट आतापना के तीन प्रकार हैं
१.भ.व.२१६२-चतुर्थं भक्तं यावद्भक्तं त्यज्यते तत्र तच्चतुर्थम्, इयं चोपवासस्य
सज्ञा, एवं षष्ठादिकमुपवासद्वयादेरिति । २. संबोधप्रकरण,गा.६६
मुखो समणो धम्मो, निप्पावो उत्तमो अणाहारो।
चउप्पाओ भत्तहो, उववासो तस्स एगहा ॥ ३. भ.वृ.२१६२ स्थानम्-आसनमुत्कुटुकम् आधारे पुतालगनरूपं यस्यासी
स्थानोत्कुटुकः।
४.घेरण्डसंहिता.२१२३
अङ्गुष्ठाभ्यामवष्टभ्य धरां गुल्फे च खे गती।
तत्रोपरि गुदं न्यस्य विज्ञेयमुत्कटासनम् ॥ ५. ठाणं,३३३८६। ६. भ.३।३३।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org