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समापणभूमीए आयाणकड़ए सूरामिण द्वितीय मानक
श.२ः उ.१ः सू.६२ २४०
भगवई दोचं मासं छठंछठेणं अणिक्खित्तेणं द्वितीयं मासं षष्ठषष्ठेन अनिक्षिप्तेन तपःकर्मणा दूसरे मास में बिना विराम षष्ठ-षष्ठभक्त (दो-दो तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे दिवा स्थानोत्कुटुकः सूर्याभिमुखः आतापन- दिन का उपवास) तपःकर्म करता है। दिन में आयावणभूमीए आयावेमाणे, रत्तिं वीरा- भूम्याम् आतापयन् रात्री वीरासनेन अप्रावृतेन स्थानकायोत्सर्ग-मुद्रा और उकडू आसन में बैठ सणेणं अवाउडेण य। च ।
सूर्य के सामने मुंह कर आतापनभूमि में आतापना लेता है और रात्रि में वीरासन में बैठता है, निर्वस्त्र
रहता है। एवं तच्च मास अट्ठमअट्टमेणं। चउत्थ मास एवं ततीयं मासम अष्टमाष्टमेन। चतुर्थ मासं इसी प्रकार तीसरे मास में अष्टम-अष्टमभक्त दसमंदसमेणं। पंचमं मासं बारसमंबारस-
बारस-
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दशमदशमेन । पञ्चमं मासं द्वादशद्वादशेन। (तीन-तीन दिन का उपवास), चौथे मास में दशममेणं। छटुं मासं चउद्दसमंचउद्दसमेणं। षष्ठं मासं चतुर्दशचतुर्दशेन। सप्तमं मासं दशमभक्त (चार-चार दिन का उपवास), पांचवें सत्तमं मासं सोलसमंसोलसमेणं । अट्ठमं षोडशषोडशेन । अष्टमं मासम् अष्टादशा- मास में द्वादश-द्वादशभक्त (पांच-पांच दिन का मासं अट्ठारसमंअट्ठारसमेणं। नवमं मासं
ष्टादशेन । नवमं मासं विंशविंशेन । दशमं मासं उपवास) छठे मास में चतुर्दश-चतुर्दशभक्त वीसइमंवीसइमेणं । दसमं मासं बावीसइमं
द्वाविंशद्वाविंशेन। एकादशं मासं चतुर्विंश- (छह-छह दिन का उपवास), सातवें मास में बावीसइमेणं । एक्कारसमं मासं चउवीसइमं
चतुर्विंशेन । द्वादशं मासं षड्विंशषड्विंशेन। षोडश-षोडशभक्त (सात-सात दिन का उपवास), चउवीसइमेणं। बारसमं मासं छब्बीसइमं
त्रयोदशं मासम् अष्टाविंशाष्टाविंशेन | चतुर्दशं आठवें मास में अष्टदश-अष्टदशभक्त (आठ-आठ छब्बीसइमेणं । तेरसमं मासं अट्ठावीसइमं
मासं त्रिंशत्रिंशेन। पञ्चदशं मासं दिन का उपवास), नवें मास में बीसवां-बीसवांअट्ठावीसइमेणं। चउद्दसमं मासं तिसइमं
द्वात्रिंशद्वात्रिंशेन। षोडशं मासं चतुस्त्रिंश- भक्त (नव-नव दिन का उपवास), दसवें मास में तिसइमेणं। पण्णरसमं मासं बत्तीसइम
चतुस्त्रिंशेन अनिक्षिप्तेन तपःकर्मणा दिवा । बाईसवां-बाईसवांभक्त (दश-दश दिन का बत्तीसइमेणं। सोलसं मासं चोत्तीसइमं
स्थानोत्कुटुकः सूर्याभिमुखः आतापनभूम्याम् उपवास), ग्यारहवें मास में चौबीसवां-चौबीसवां चोत्तीसइमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं
आतापयन् रात्रौ वीरासनेन अप्रावृतेन च । भक्त (ग्यारह-ग्यारह दिन का उपवास), बारहवें दिया गणुकुकुडुए सूराभिमुहे आयावण
मास में छबीसवां-छबीसवांभक्त (बारह-बारह दिन भूमीए आयावेमाणे, रति वीरासणेणं
का उपवास), तेरहवें मास में अठाईसवांअवाउडेण य॥
अठाईसवांभक्त (तेरह-तेरह दिन का उपवास), चौदहवें मास में तीसवां-तीसवांभक्त (चौदह-चौदह दिन का उपवास), पन्द्रहवें मास में बत्तीसवां-बत्तीसवांभक्त (पन्द्रह-पन्द्रह दिन का उपवास)
और सोलहवें मास में बिना विराम चौतीसवांचौतीसवांभक्त (सोलह-सोलह दिन का उपवास) तपःकर्म करता है। दिन में स्थान- कायोत्सर्ग-मुद्रा और उकडू आसन में बैठ सूर्य के सामने मुंहकर आतापनभूमि में आतापना लेता है और रात्रि में वीरासन में बैठता है. निर्वस्त्र रहता है।
भाष्य
१. गुणरत्न संवत्सर तपःकर्म
इस तपस्या में सोलह मास का समय लगता है। इसमें तपस्या । का कालमान १३ महीनें और १७ दिनों का होता है। आहार का
कालमान ७३ दिन का होता है। देखें तालिका
१. भ.वृ.२।६१-गुणानां निर्जराविशेषाणां रचनं-करणं संवत्सरेण
सत्रिभागवर्षेण यस्मिंस्तपसि तद् गुणरचनसंवत्सरं, गुणा एव वा रत्नानि यत्र स तथा गुणरलः संवत्सरो यत्र तद्गुणरत्नसंवत्सरं तपः, इह च त्रयोदश मासाः सप्तदशदिनाधिकास्तपःकालः, त्रिसप्ततिश्च दिनानि पारणककाल इति, एवं चायम्
पण्णरसवीसचउव्वीस चेव चउवीस पण्णवीसा य । चउवीस एक्कवीसा चउवीसा सत्तवीसा य ॥
तीसा तेत्तीसावि य चउव्वीस छवीस अट्ठवीसा य | तीसा बत्तीसावि य सोलसमासेसु तवदिवसा ॥ पण्णरसदसट्टछप्पंचचउरपंचसु य तिण्णि तिण्णित्ति ।
पंचसु दो दो य तहा सोलसमासेसु पारणगा ।। इह च यत्र मासेऽष्टमादितपसो यावन्ति दिनानि न पूर्यन्ते तावन्त्यग्रेतनमासादाकृष्य पूरणीयानि, अधिकानि चाग्रेतनमासे क्षेप्तव्यानि ।
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