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भगवई
श.२: उ.१: सू.१०-१२ १०. से भंते ! किं पुढे उद्दाति ? अपुढे स भदन्त ! किं स्पृष्टः अवद्राति ? अस्पृष्टः १०. 'भन्ते ! क्या वायुकायिक जीव स्पृष्ट होकर उद्दाति? अवद्राति ?
मरता है ? अथवा अस्पृष्ट रहकर मरता है ? गोयमा ! पुढे उद्दाति, नो अपुढे उद्दाति ॥ गौतम ! स्पृष्टः अवद्राति, नो अस्पृष्टः अव- गौतम ! वह स्पृष्ट होकर मरता है, अस्पृष्ट रहकर
नहीं मरता।
द्राति।
भाष्य १. सूत्र १०
आयुष्य दो प्रकार का होता है--सोपक्रम आयु और निरुपक्रम है।' निरुपक्रम आयु वाले वायुकायिक जीव शस्त्र से अस्पृष्ट होकर आयु । 'तत्त्वार्थराजवार्तिक में सोपक्रम और निरुपक्रम के स्थान पर मरते हैं। किन्तु सोपक्रम आयु वाले जीव शस्त्र से स्पृष्ट होकर मरते अपवर्त्य और अनपवर्त्य का निर्देश मिलता है। अपवर्त्य का अर्थ हैं। है-हास।
वृत्ति में स्वकाय-शस्त्र और परकाय-शस्त्र दोनों का उल्लेख वृत्तिकार के अनुसार यह सूत्र सोपक्रम आयु की अपेक्षा से किया गया है।'
११. से भंते ! किं ससरीरी निक्खमइ ? स भदन्त ! किं सशरीरी निष्कामति ? ११. 'भन्ते ! क्या वायुकायिक जीव सशरीर असरीरी निक्खमइ? अशरीरी निष्कामति ?
निष्कमण करता है ? अथवा अशरीर निष्क्रमण गोयमा ! सिय ससरीरी निक्खमइ, सिय गौतम ! स्यात् सशरीरी निष्कामति, स्याद् करता है? असरीरी निक्खमइ ॥ अशरीरी निष्कामति।
गौतम ! वह स्यात् सशरीर निष्क्रमण करता है, स्यात् अशरीर निष्क्रमण करता है।
१२. से केणद्वेणं भंते ! एवं बुचइ–सिय तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते स्यात् १२. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा
ससरीरी निक्खमइ, सिय असरीरी सशरीरी निष्कामति, स्याद् अशरीरी है-वायुकायिक जीव स्यात् सशरीर निष्क्रमण निक्खमइ? निष्कामति ?
करता है, स्यात् अशरीर निष्क्रमण करता है ? गोयमा ! वाउयायस्स णं चत्तारि सरीरया गौतम ! वायुकायस्य चत्वारि शरीराणि । गौतम ! वायुकायिक जीव के चार शरीर प्रज्ञप्त पण्णता, तं जहा–ओरालिए, वेउबिए, प्रज्ञप्तानि, तद् यथा—औदारिक, वैक्रिय, हैं, जैसे-औदारिक, वैक्रिय, तैजस और तेयए, कम्मए। ओरालिय-वेउब्बियाई तैजसं, कर्मकम् । औदारिक-वैक्रिये विप्रहाय कार्मण। वह औदारिक और वैक्रिय शरीर को विप्पजहाय तेयय-कम्मएहिं निक्खमइ । से तैजस-कर्मकाभ्यां निष्कामति । तत् तेनार्थेन छोड़कर तैजस और कार्मण शरीर के साथ तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुचइ–सिय गौतम ! एवमुच्यते-स्यात् सशरीरी निष्का- निष्क्रमण करता है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह ससरीरी निक्खमइ, सिय असरीरी निक्ख- मति, स्याद अशरीरी निष्कामति। कहा जा रहा है—वह स्यात् सशरीर निष्क्रमण मई॥
करता है, स्यात् अशरीर निष्क्रमण करता है।
भाष्य
१. सूत्र ११,१२
प्रस्तुत आलापक में शरीर-युक्त और शरीर-मुक्त अवस्थाओं की चर्चा है। संसारी दशा में जीव शरीरमुक्त कभी नहीं होता। औदारिक और वैक्रिय ये दोनों जीवन-पर्यन्त विद्यमान रहने वाले शरीर हैं। मृत्यु के क्षण में ये छूट जाते हैं। जीव नये जन्म-स्थान के लिए
प्रस्थान करता है, उस समय अन्तराल-गति में दो शरीर जीव के साथ रहते हैं--तैजस और कार्मण। औदारिक और वैक्रिय शरीर की अपेक्षा से वायुकाय का अशरीर निष्क्रमण होता है। तैजस और कार्मण शरीर की अपेक्षा से उसका सशरीर निष्क्रमण होता है।
१. (क) भ. २०१८६
(ख) पण्ण.६/११४-११७। २. त.रा.वा.२१५३–बाह्यप्रत्ययवशादायुषो हासोऽपवर्तः। बाह्यस्योपघात-
निमित्तस्य विषशस्त्रादेः सति सविधाने हासोऽपवर्त इत्युच्यते। अपवर्त्य
मायुर्वेषां त इमे अपवायुषः नापवायुषोऽनपवायुषः । ३. भ.वृ.२।१०-सोपक्रमापेक्षमिदम्। ४. वही, २११०-स्पृष्टः स्वकायशस्त्रेण परकायशस्त्रेण वा ।
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