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भगवई
श.२ः आमुख
१६८ बदला और वे महावीर के शिष्य बन गए।'
भगवान महावीर के समय भगवान पार्श्व की परम्परा भी विद्यमान थी। इस विषय में पापित्यीय स्थविर और तुंगिया नगरी के श्रावकों के बीच का संवाद उल्लेखनीय है। श्रावकों ने प्रश्न पूछे और स्थविरों ने उनका समाधान दिया। उसकी चर्चा अनेक नगरों में फैल गई। गौतम स्वामी ने राजगृह में उस चर्चा को सुना और भगवान से पूछा-पापित्यीय स्थविरों ने जो उत्तर दिए, क्या वे सही हैं ? क्या वे स्थविर उत्तर देने में समर्थ हैं ? स्थविरों द्वारा दिए गए उत्तरों का भगवान ने समर्थन किया। सत्य की संवादिता का यह एक महत्त्वपूर्ण आलेख है।
प्रस्तुत शतक में दार्शनिक, आचारशास्त्रीय, लोकविद्या, ऐतिहासिक आदि अनेक विषय उल्लिखित हैं। इनके गम्भीर अध्ययन से विद्या की अनेक महनीय शाखाओं का उद्घाटन हो सकता है।
१. सूत्र २०-७३। २. सूत्र ६२-१११।
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