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________________ श.१: उ.१०. सू.४४४,४४५ १६२ भगवई किरिया खनु एगे जाति, एवं पा इरियावहिया-संपराइया-पदं ऐर्यापथिकी-साम्परायिकी-पदम् ऐर्यापथिकी-साम्परायिकी-पद ४४४. अण्णउत्थियाणं भंते ! एवमाइक्खंति, अन्ययूथिकाः भदन्त ! एवमाख्यान्ति, एवं ४४४. 'भन्ते ! अन्ययूथिक ऐसा आख्यान, भाषण, एवं भासंति, एवं पण्णवेति, एवं परवेति भाषन्ते, एवं प्रज्ञापयन्ति, एवं प्ररूपयन्ति प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं-एक जीव एक -एवं खलु एगे जीवे एगेणं समेणं दो -एवं खलु एकः जीवः एकस्मिन् समये द्वे समय में दो क्रियाएं करता है, जैसे-ऐपिथिकी किरियाओ पकरेति, तंजहा-इरियावहियं क्रिये प्रकरोति, तद् यथा-ऐर्यापथिकी च और साम्परायिकी। च, संपराइयं च। साम्परायिकी च। जं समयं इरियावहियं पकरेइ, तं समयं यस्मिन् समये ऐपिथिकी प्रकरोति, तस्मिन् । जिस समय ऐर्यापथिकी करता है, उसी समय संपराइयं पकरेइ । समये साम्परायिकी प्रकरोति। साम्परायिकी करता है। जं समयं संपराइयं पकरेइ, तं समयं इरिया- यस्मिन् समये साम्परायिकी प्रकरोति, तस्मिन् । जिस समय साम्परायिकी करता है, उसी समय वहियं पकरेइ। समये ऐयापथिकी प्रकरोति। ऐपिथिकी करता है। इरियावहियाए पकरणयाए संपराइयं पक- ऐपिथिक्याः प्रकरणेन साम्परायिकी प्रक- ऐपिथिकी करने से साम्परायिकी करता है। रोति। संपराइयाए पकरणयाए इरियावहियं पक- । साम्परायिक्याः प्रकरणेन ऐपिथिकी प्रक- साम्परायिकी करने से ऐपिथिकी करता है। रोति। एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरि- एवं खलु एकः जीवः एकस्मिन् समये द्वे क्रिये इस प्रकार एक जीव एक समय में दो क्रियाएं याओ पकरेति, तं जहा-इरियावहियंच, प्रकरोति, तद् यथा-ऐर्यापथिकी च, साम्प- करता है, जैसे-ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी। संपराइयं च ॥ रायिकी च। रेइ। ४४५. से कहमेयं भंते ! एवं ? तत् कथमेतत् भदन्त ! एवम् ? ४४५. भन्ते ! यह इस प्रकार कैसे होता है ? गोयमा ! जणं ते अण्णउत्थिया एव- गौतम ! यत् ते अन्ययूथिकाः एवमाख्यान्ति, गौतम ! वे अन्ययूथिक जो इस प्रकार आख्यान, माइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं भाषन्ते, एवं प्रज्ञापयन्ति, एवं प्ररूप- भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं-एक एवं परुति-एवं खलु एगे जीवे एगेणं यन्ति एवं खलु एकः जीवः एकस्मिन् समये जीव एक समय में दो क्रियाएं करता है यावत् समएणं दो किरियाओ पकरेति जाव द्वे क्रिये प्रकरोति यावद् ऐपिथिकी च, ऐपिथिकी और साम्परायिकी। इरियावहियं च, संपराइयं च। साम्परायिकी च।। जे ते एवमाहंसु । मिच्छा ते एवमाहंसु। ये एते एवमाहुः । मिथ्या ते एवमाहुः । अहं जो ऐसा कहते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। गौतम ! अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि, एवं पुनः गौतम ! एवमाख्यामि, एवं भाषे, एवं मैं इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और भासेमि, एवं पण्णवेमि, एवं परूवेमि- प्रज्ञापयामि, एवं प्ररूपयामि--एवं खलु एकः प्ररूपण करता हूं--एक जीव एक समय में एक एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एवं जीवः एकस्मिन् समये एकां क्रियां प्रकरोति, क्रिया करता है, जैसे-ऐर्यापथिकी अथवा किरियं पकरेइ, तं जहा-इरियावहियं वा, तद् यथा-ऐर्यापथिकी वा, साम्परायिकी साम्परायिकी। संपराइयं वा। जं समयं इरियावहियं पकरेइ, नो तं समयं यस्मिन् समये ऐपिथिकी प्रकरोति, नो जिस समय ऐपिथिकी करता है, उस समय साम्पसंपराइयं पकरेइ । तस्मिन् समये साम्परायिकी प्रकरोति। रायिकी नहीं करता। जं समयं संपराइयं पकरेइ, नो तं समयं यस्मिन् समये साम्परायिकी प्रकरोति, नो। जिस समय साम्परायिकी करता है, उस समय इरियावहियं पकरे।। तस्मिन् समये ऐपिथिकी प्रकरोति। ऐपिथिकी नहीं करता। इरियावहियाए पकरणयाए णो संपराइयं ऐर्यापथिक्याः प्रकरणेन नो साम्परायिकी प्रक- ऐपिथिकी करने से साम्परायिकी नहीं करता। पकरेइ। रोति। संपराइयाए पकरणयाए नो इरियावहियं साम्परायिक्याः प्रकरणेन नो ऐपिथिकी प्रक- साम्परायिकी करने से ऐर्यापथिकी नहीं करता। पकरेइ। रोति। एवं खल एगे जीवे एगेणं समएणं एगं एवं खलु एकः जीवः एकस्मिन् समये एकां इस प्रकार एक जीव एक समय में एक क्रिया किरियं पकरेइ, तं जहा–इरियावहियं वा, क्रियां प्रकरोति, तद् यथा-ऐयोपथिकी वा, करता है, जैसे-ऐर्यापथिकी अथवा साम्परासंपराइयं वा॥ साम्परायिकी वा। यिकी। वा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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