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मूल
परसमयवत्तव्यया-पदं
४४२. अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेति, एवं परूवेंति
एवं खलु चलमाणे अचलिए । उदीरिजमाणे अणुदीरिए । वेदिज्रमाणे अवेदिए । पहिजमाणे अपहीणे । छिज्जमाणे अच्छिण्णे । भिमाणे अभिण्णे । दज्झमाणे अदडूढे । मिजमाणे अमए । निज्जरिजमाणे अणिजिण्णे |
दो परमाणुपोग्गला एगयओ न साहण्णंति, कम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ न साहण्णंति ?
दो परमाणुपोग्गलाणं नत्थि सिणेहकाए, तम्हा दो परमाणुपोग्ला एगयओ न साहण्णंति ।
तिणि परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति,
कम्हा तिणि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति ?
तिहं परमाणुपोग्गलाणं अत्थि सिणेहकाए, तम्हा तिण्णि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति ।
भिमाणा दुहा वि, तिहा वि कांति ।
पंच परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, एओ साहणित्ता दुक्खत्ताए कति । दुक्खे वि य णं से सासए सया समितं उवचिज्जइ य, अवचिज्जइ य ।
दसमो उद्देसो : दसवां उद्देशक
संस्कृत छाया
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परसमयवक्तव्यता-पदम्
अन्ययूथिकाः भदन्त ! एवमाख्यान्ति, एवं भाषन्ते, एवं प्रज्ञापयन्ति, एवं प्ररूपयन्ति
एवं खलु चलद् अचलितम्, उदीर्यमाणम् अनुदीरीतम्, बेद्यमानम् अवेदितम्, प्रहीयमाणम् अप्रहीणम्, छिद्यमानम् अछिन्नम्, भिद्यमानम् अभिन्नम्, दह्यमानम् अदग्धम्, म्रियमाणम् अमृतम्, निर्जीर्यमाणम् अनिजीर्णम् ।
द्वौ परमाणुपुद्गलौ एकतः न संहन्येते, कस्माद् द्वौ परमाणुपुद्गली एकत: न संहन्येते ?
द्वयोः परमाणुपुद्गलयोः नास्ति स्नेहकायः, तस्माद् द्वौ परमाणुपुद्गली एकतः न संहन्येते ।
त्रयः परमाणुपुद्गलाः एकतः संहन्यन्ते,
कस्मात् त्रयः परमाणुपुद्गलाः एकतः संहन्यन्ते ?
त्रयाणां परमाणुपुद्गलानाम् अस्ति स्नेहकायः, तस्मात् त्रयः परमाणुपुद्गलाः एकतः संहन्यन्ते ।
दुहा कजमाणा एगयओ दिवडूढे परमाणुपोग्गले भवइ - एगयओ वि दिवड्ढे परमाणुपोग्गले भवइ । तिहा कज्रमाणा तिष्णि परमाणुपोग्गला त्रिधा क्रियमाणाः त्रयः परमाणुपुद्गलाः भवंति । एवं चत्तारि । भवन्ति । एवं चत्वारः ।
ते भिद्यमानाः द्विधा अपि, त्रिधा अपि क्रियन्ते ।
द्विधा क्रियमाणाः एकतः द्व्यर्ध: परमाणुपुद्गलः भवति — एकतः अपि द्व्यर्ध: परमाणुपुद्गलः भवति ।
पञ्च परमाणुपुद्गलाः एकतः संहन्यन्ते, एकतः संहत्य दुःखतया क्रियन्ते । दुःखमपि च तत् शाश्वतं सदा समितम् उपचीयते च, अपचीयते च ।
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हिन्दी अनुवाद
परसमयवक्तव्यता- पद
४४२. ' भन्ते ! अन्ययूथिक ऐसा आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं
चलमान अचलित, उदीर्यमाण अनुदीरित, वेद्यमान अवेदित, प्रहीयमाण अप्रहीण, छिद्यमान अछित्र, भिद्यमान अभिन्न दह्यमान अदग्ध, म्रियमाण अमृत, निर्जीर्यमाण अनिर्जीर्ण है।
दो परमाणुपुद्गलों की एक संहति नहीं होती, दो परमाणुपुद्गलों की एक संहति किस कारण से नहीं होती ?
दो परमाणुपुद्गलों में स्नेहकाय नहीं होता, इसलिए दो परमाणुपुद्गलों की एक संहति नहीं होती ।
तीन परमाणुपुद्गलों की एक संहति होती है,
तीन परमाणुपुद्गलों की एक संहति किस कारण से होती है ?
तीन परमाणुपुद्गलों में स्नेहकाय होता है; इसलिए तीन परमाणुपुद्गलों की एक संहति होती है।
वे टूटने पर दो या तीन भागों में विभक्त होते
दो भागों में विभक्त होने पर एक ओर डेढ़ परमाणुपुद्गल होता है, दूसरी ओर भी डेढ़ परमाणुपुद्गल होता है ।
तीन भागों में विभक्त होने पर वे तीन परमाणुपुद्गल हो जाते हैं। चार परमाणुपुद्गल भी इसी प्रकार वक्तव्य हैं।
पांच परमाणुपुद्गलों की एक संहति होती है— एकरूप में संहत होकर दुःख रूप में परिणत होते हैं। वह दुःख भी शाश्वत है और सदा संगठित रूप में उपचित तथा अपचित होता है।
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