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________________ दुःखा। भगवई १८६ श.१: उ.१०. सू.४४२,४४३ पबिं भासा भासा। भासिज्जमाणी भासा पूर्वं भाषा भाषा। भाष्यमाणा भाषा बोलने से पहले भाषा भाषा होती है, बोलते समय अभासा। भासासमयवितिकंतं च णं अभाषा। भाषासमयव्यतिक्रान्ते च भाषिता, भाषा अभाषा होती है और बोलने का समय भासिया भासा। भाषा। व्यतिक्रान्त होने पर बोली गई भाषा भाषा है। जा सा पुदि भासा भासा। भासिजमाणी या असौ पूर्वं भाषा भाषा। भाष्यमाणा भाषा बोलने से पहले जो भाषा भाषा है, बोलते समय भासा अभासा। भासासमयवितिक्कतं च णं अभाषा। भाषासमयव्यतिक्रान्ते च भाषिता भाषा अभाषा है और बोलने का समय व्यतिक्रान्त भासिया भासा । सा किं भासओ भासा? भाषा। सा कि भाषमाणस्य भाषा? अभा- हो जाने पर बोली गई भाषा भाषा है। क्या वह अभासओ भासा ? षमाणस्य भाषा? जो बोल रहा है, उसके भाषा है ? जो नहीं बोल रहा है, उसके भाषा है ? अभासओ णं सा भासा। नो खलु सा अभाषमाणस्य सा भाषा। नो खलु सा भाष- वह जो नहीं बोल रहा है, उसके भाषा है। जो भासओ भासा। माणस्य भाषा। बोल रहा है, उसके भाषा नहीं है। पुदि किरिया दुक्खा। कन्जमाणी किरिया पूर्व क्रिया दुःखा। क्रियमाणा क्रिया अ- क्रिया करने से पहले क्रिया दुःखकर होती है, अद्रक्खा। किरियासमयवितिक्कतं च णं दुःखा। क्रियासमयव्यतिक्रान्ते च कृता क्रिया क्रियमाण क्रिया दुःखकर नहीं होती, क्रिया का कडा किरिया दुक्खा। समय व्यतिक्रान्त होने पर कृत क्रिया दुःखकर होती है। जा सा पुब्बिं किरिया दुक्खा। कजमाणी या असी पूर्वं क्रिया दुःखा। क्रियमाणा क्रिया जो यह क्रिया करने से पहले दुःखकर होती है, किरिया अदुक्खा। किरियासमयवितिकतं। अदुःखा। क्रियासमयव्यतिक्रान्ते च कृता । क्रियमाण क्रिया दुःखकर नहीं होती, क्रिया का च णं कडा किरिया दुक्खा। सा किं क्रिया दुःखा। सा किं करणतः दुःखा? अक- समय व्यतिक्रान्त होने पर कृत क्रिया दुःखकर करणओ दुक्खा ? अकरणओ दुक्खा? रणतः दुःखा? होती है। क्या वह करने से दुःखकर होती है ? न करने से दुःखकर होती है ? अकरणओ णं सा दुक्खा। नो खलु सा अकरणतः सा दुःखा । नो खलु सा करणतः न करने से वह दुःखकर होती है। करने से वह करणओ दुक्खा-सेवं वत्तव्वं सिया। दुःखा-अथैवं वक्तव्यं स्यात्। अकृत्यं दुःखकर नहीं होती-ऐसा कहा जा सकता है। अकिचं दुक्खं, अफुसं दुक्खं, अकजमाण- दुःखम्, अस्पृश्यं दुःखम्, अक्रियमाणं कृतं दुःख कृत्य नहीं हैं, दुःख स्पृश्य नहीं है, दुःख कडं दुक्खं, अकटु-अकटु पाण-भूय- दुःखम्, अकृत्वा-अकृत्वा प्राण-भूत-जीव- अक्रियमाण कृत है, प्राण, भूत, जीव और सत्व जीव-सत्ता वेदणं वेदेति इति वत्तव्यं सत्त्वाः वेदनां वेदयन्ति-इति वक्तव्यं बिना किए - बिना किए भी वेदना का अनुभव सिया॥ स्यात् । करते हैं ऐसा कहा जा सकता है। ससमयवत्तव्बया-पदं स्वसमयवक्तव्यता-पदम् स्वसमयवक्तव्यता-पद ४४३. से कहमेयं भंते ! एवं? तत् कथमेतत् भदन्त ! एवम् ? ४४३. भन्ते ! यह इस प्रकार कैसे होता है ? गोयमा ! जण्णं ते अण्णउत्थिया एव- गौतम ! यत् ते अन्ययूथिकाः एवमाख्यान्ति गौतम ! वे अन्ययूधिक जो ऐसा आख्यान करते माइक्खंति जाव वेदणं वेदेति इति वत्तव्यं यावद वेदनां वेदयन्ति-इति वक्तव्यं स्यात्।। हैं यावत् वेदना का अनुभव करते हैं----ऐसा कहा सिया। जा सकता है। जे ते एवमाहंस, मिच्छा ते एवमाहंसु । अहं ये एते एवमाहुः, मिथ्या ते एवमाहुः। अहं । जो ऐसा कहते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। गौतम ! पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि, एवं भासेमि, पुनः गौतम! एवमाख्यामि, एवं भाषे, एवं ____ मैं इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और एवं पण्णवेमि, एवं परूवेमि–एवं खलु प्रज्ञापयामि, एवं प्ररूपयामि एवं खलु प्ररूपण करता हूं-चलमान चलित, उदीर्यमाण चलमाणे चलिए। उदीरिजमाणे उदीरिए। चलच् चलितम् । उदीर्यमाणम् उदीरितम् ।। उदीरित, वेद्यमान वेदित, प्रहीयमाण प्रहीण, छिद्यवेदिजमाणे वेदिए। पहिज्जमाणे पहीणे। वेद्यमानं वेदितम्। प्रहीयमाणं प्रहीणम् । मान छिन्न, भिद्यमान भिन्न, दह्यमान दग्ध, म्रियमाण छिन्जमाणे छिण्णे। मिजमाणे भिण्णे। छिद्यमानं छिन्नम् । भिद्यमानं भिन्नम् । दह्यमानं मृत, निर्जीर्यमाण निर्जीण होता है। दज्झमाणे दड्ढे। मिजमाणे मए। निज दग्धम् । नियमाणं मृतम् । निर्जीयमाणं निर्जीरिजमाणे निजिण्णे। णम् । दो परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, द्वौ परमाणुपुद्गली एकतः संहन्येते, दो परमाणुपुद्गलों की एक संहति होती है, कम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ साह- कस्मात् द्वौ परमाणुपुद्गलौ एकतः संहन्येते? दो परमाणुपुद्गलों की एक संहति किस कारण पणंति ? से होती है ? दोहं परमाणुपोग्गलाणं अत्थि सिणेहकाए, द्वयोः परमाणुपुद्गलयोः अस्ति स्नेहकायः, दो परमाणुपुद्गलों में स्नेहकाय होता है; इसलिए तम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ साह- तस्मात् द्वौ परमाणुपुद्गली एकतः संहन्येते। उन दो परमाणुपुद्गलों की एक संहति होती है । पणति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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