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________________ श. १: उ.६ः सू.४२३-४३३ अजो ! से जहेयं अम्हे बदामो ॥ ४३१. तए णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे येरे भगवंते वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी— इच्छामि णं भंते ! तुब्भं अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं उवसंपजित्ता णं विहरित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं ॥ ४३२. तए णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे थेरे भगवंते बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिकमणं धम्मं उवसंपजित्ता णं विहरति ॥ ४३३. तए णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउण, पाउणित्ता जस्सट्ठाए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणयं अदंतवणयं अच्छत्तयं अणोवाहणयं भूमिसेज्जा फलसेज्जा कट्ठसेजा सलोओ बंभचेरवासो परघरप्पवेसो लद्धावलद्धी उच्चावया गामकंटगा बावीसं परिसहोवसग्गा अहियासिज्जंति, तमट्ठ आराहेइ, आराहेत्ता चरमेहिं उस्सास- नीसासेहिं सिद्धे बुद्धे मुके परिनिबुडे सब्चदुक्खप्पहीणे ॥ सो चेव पज्जवट्ठियनयस्स जीवस्स एस गुणो ॥ १८२ वयं वदामः । ततः सः कालासवैश्यपुत्र अनगारः स्थविरान् भगवतो वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत् इच्छामि भदन्त ! युष्माकम् अन्तिके चतुर्यामाद् धर्मात् पञ्चमहाव्रतिकं सप्रतिक्रमणं धर्मम् उपसंपद्य विहर्तुम् । यथासुखं देवानुप्रिय ! मा प्रतिबन्धम् । Jain Education International ततः स कालासवैश्यपुत्रः अनगारः स्थविरान् भगवतः वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा चतुर्यामाद् धर्मात् पञ्चमहाव्रतिकं सप्रतिक्रमणं धर्मम् उपसंपद्य विहरति । गुण पवित्र, नयस्स दव्वट्ठियस्स सामाइयं । ततः स कालासवैश्यपुत्रः अनगारः बहूनि वर्षाणि श्रामण्यपर्यायं प्राप्नोति प्राप्य यस्यार्थाय क्रियते ननभावः मुण्डभावः अस्त्रानकम् 'अदंतवणयं ' अच्छत्रकम् अनुपानत्कं भूमिशय्या फलशय्या काष्ठशय्या केशलोचः ब्रह्मचर्यवासः परघरप्रवेशः लब्धापलब्धी उच्चाबचाः ग्रामकण्टकाः द्वाविंशतिः परिषहोपसर्गाः अध्यास्यते, तमर्थम् आराधयति, आराध्य चरमेषु उच्छ्वास- निःश्वासेषुः सिद्धः 'बुद्धे' मुक्तः परिनिर्वृत्तः सर्वदुःखप्रहीणः । १. सूत्र ४२३- ४३३ प्रस्तुत प्रकरण में छह पद विशेष विमर्श-योग्य हैं - १. सामा यिक २. प्रत्याख्यान ३. संयम ४ संवर ५. विवेक ६. व्युत्सर्ग। प्रतीत होता है कि भगवान् पार्श्व की परम्परा में ये पद प्रचलित थे । पावपत्यीय कालास अनगार ने सोचा- स्थविर इन पदों का अर्थ नहीं जानते; इसलिए उसने आवेशपूर्ण भाषा में कह दिया— स्थविरो! आप इन पदों का अर्थ नहीं जानते । स्थविरों ने सहज शांत भाव से कहा- हम इनका अर्थ जानते हैं। तब अनगार कालास ने जिज्ञासा के स्वर में उनका अर्थ पूछा और स्थविरों ने उनका उत्तर दिया । १. वि.भा.गा. २६४३ भाष्य भगवई करो, आर्य ! रुचि करो । ४३१. अब वह वैश्यपुत्र कालास अनगार भगवान् स्थविरों को वन्दन - नमस्कार करता है, वन्दननमस्कार कर उसने इस प्रकार कहा—भन्ते ! मैं आपके पास चतुर्याम धर्म से (मुक्त होकर) सप्रतिक्रमण पञ्चमहाव्रतात्मक धर्म को स्वीकार कर विहार करना चाहता हूं। देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो । प्रतिबंध मत करो । For Private & Personal Use Only ४३२. वैश्यपुत्र कालास अनगार भगवान् स्थविरों को वन्दन - नमस्कार करता है, वन्दन - नमस्कार कर चतुर्याम धर्म से (मुक्त होकर) सप्रतिक्रमण पञ्चमहाव्रतात्मक धर्म को स्वीकार कर विहार करता है । ४३३. वह वैश्यपुत्र कालास अनगार बहुत वर्षों तक श्रामण्यपर्याय का पालन करता है, पालन कर जिस प्रयोजन से नग्नभाव, मुण्डभाव, स्नान न करना, दतीन न करना, छत्र धारण न करना, पादुका न पहनना, भूमि- शय्या, फलक-शय्या, काष्ठ- शय्या, केश-लोच, ब्रह्मचर्यवास, भिक्षा के लिए गृहस्थों के घर प्रवेश करना, लाभ-अलाभ, उच्चावच, ग्राम- कण्टक, बाईस परीषहों और उपसर्गों को सहन किया जाता है, उस प्रयोजन की आराधना करता है, उसकी आराधना कर चरम उच्छ्वास- निःश्वास में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत्त और सब दुःखों को क्षीण करने वाला हो जाता है। इन सभी पदों का एक ही उत्तर है--आमा सामायिक है और आत्मा ही सामायिक का अर्थ है—यह उत्तर निश्चय नय का उत्तर है। भगवान् महावीर ने द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक अथवा निश्चय और व्यवहार — इन दो नयों से सत्य की प्रज्ञप्ति की थी । द्रव्यार्थिक अथवा निश्चय नय अभेद-प्रधान होता है। पर्यायार्थिक अथवा व्यवहार नय भेद-प्रधान होता है । द्रव्यार्थिक नय की दृष्टि से सामायिक आत्मा है और पर्यायार्थिक नय की दृष्टि से सामायिक आला का गुण है ।' जिनभद्र क्षमाश्रमण का यह अभिमत है। www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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