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________________ श. १: उ.६ः सू.४२०, ४२१ इह-पर- भवियाउय-पदं इह-पर-भविकाः-पदम् ४२०. अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति - एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई पकरेति, तं जहा इहभवियाउयं च, परभवियाउयं च । अन्ययूथिकाः भदन्त ! एवमाख्यान्ति, एवं भाषन्ते, एवं प्रज्ञापयन्ति, एवं प्ररूपयन्तिएवं खलु एकः जीवः एकस्मिन् समये द्वे आयुषी प्रकरोति, तद् यथा — इहभविकायुः च, परभविकायुः च । जं समयं इहभवियाउयं पकरेति, तं समयं यस्मिन् समये इहभविकायुः प्रकरोति, तस्मिन् परभवियाउयं पकरेति । समये परभविकायुः प्रकरोति । जं समयं परभवियाउयं पकरेति, तं समयं यस्मिन् समये परभविकायुः प्रकरोति, तस्मिन् इहभवियाउयं पकरेति । समये इहभविकायुः प्रकरोति । १७८ इहभवियाउयस्स पकरणयाए परभवियाउयं इहभविकायुषः प्रकरणेन परभविकायुः प्रकपकरेति । रोति । परभवियाउयस्स पकरणयाए इहभवियाज्यं परभविकायुषः प्रकरणेन इहभविकायुः प्रकपकरेति । रोति । एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई पकरेति, तं जहा — इहभवियाउयं च, परभवियाउयं च ॥ ४२१. से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! जण्णं ते अण्णउत्थिया एवमाइक्खंति जाव एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई पकरेति, तं जहाइहभवियाज्यं च, परभवियाउयं च । जेते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु । अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि, एवं भासेमि, एवं पण्णवेमि, एवं परूवेमि — एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं आउयं पकरेति, तं जहा — इह भवियाज्यं वा, परभवियाउयं वा । एवं खलु एकः जीवः एकस्मिन् समये द्वे आयुषी प्रकरोति, तद् यथा — इहभविकायुः च परभविकाः च । तत् कथमेतत् भदन्त ! एवम् ? गौतम ! यत् ते अन्ययूथिकाः एवमाख्यान्ति यावद् एवं खलु एकः जीवः एकस्मिन् समये आयुषी प्रकरोति, तद्यथा — इहभविकायुः च, परभविकायुः च । ये एते एवमाहुः मिथ्या ते एवमाहुः । अहं पुनः गौतम ! एवमाख्यामि, एवं भाषे, एवं प्रज्ञापयामि, एवं प्ररूपयामि –एवं खलु एकः जीवः एकस्मिन् समये एकम् आयुः प्रकरोति, तद्यथा — इहभविकायुः वा, परभविकायुः वा । जं समयं इहभवियाउयं पकरेति णो तं यस्मिन् समये इहभविकायुः प्रकरोति, नो समयं परभवियाज्यं पकरेति । तस्मिन् समये परभविकायुः प्रकरोति । Jain Education International जं समयं परभवियाउयं पकरेति णो तं यस्मिन् समये परभविकायुः प्रकरोति, नो समयं इहभवियाउयं पकरेति । तस्मिन् समये इहभविकायुः प्रकरोति । इहभवियाउयस्स पकरणताए णो पर- इहभविकायुषः प्रकरणेन नो परभविकायुः भवियाउयं पकरेति । प्रकरोति । परभवियाउयस्स पकरणताए णो इह- परभविकायुषः प्रकरणेन नो इहभविकायुः भवियायं करेति । प्रकरोति । एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं आउयं पकरेति, तं जहा —— इहभवियाउयं वा, परभवियाउयं वा ॥ एवं खलु एकः जीवः एकस्मिन् समये एकम् आयुः प्रकरोति, तद् यथा - इहभविकायुः वा, परभविकायुः वा । For Private & Personal Use Only भगवई इह-पर-भविक - आयु-पद ४२०. ' भन्ते ! अन्ययूथिक ऐसा आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं—एक जीव एक समय में दो आयुष्य का बन्धन करता है, जैसे-इस भव के आयुष्य का और परभव के आयुष्य का । जिस समय वह इस भव के आयुष्य का बन्धन करता है, उसी समय परभव के आयुष्य का बन्धन करता है। जिस समय परभव के आयुष्य का बन्धन करता है, उसी समय इस भव के आयुष्य का बन्धन करता है। इस भव के आयुष्य का बन्धन करने से परभव के आयुष्य का बन्धन करता है । परभव के आयुष्य का बन्धन करने से इस भव के आयुष्य का बन्धन करता है। इस प्रकार एक जीव एक समय में दो आयुष्य का बन्धन करता है--- इस भव के आयुष्य का और परभव के आयुष्य का । ४२१. भन्ते ! वह यह इस प्रकार कैसे होता है ? गौतम ! वे अन्ययूथिक जो ऐसा आख्यान करते हैं यावत् एक जीव एक समय में दो आयुष्य का बन्धन करता है, जैसे—इस भव के आयुष्य का, परभव के आयुष्य का। ऐसा जिन्होंने कहा है, उन्होंने मिथ्या कहा है। गौतम ! मैं इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता हूँ — एक जीव एक समय में एक ही आयु का बन्धन करता है, जैसे—इस भव के आयुष्य का अथवा परभव के आयुष्य का। जिस समय वह इस भव के आयुष्य का बन्धन करता है, उसी समय परभव के आयुष्य का बन्धन नहीं करता । जिस समय परभव के आयुष्य का बन्धन करता है, उसी समय इस भव के आयुष्य का बन्धन नहीं करता । इस भव के आयुष्य का बन्धन करने से परभव के आयुष्य का बन्धन नहीं करता । परभव के आयुष्य का बन्धन करने से इस भव के आयुष्य का बन्धन नहीं करता। इस प्रकार एक जीव एक समय में एक ही आयुष्य का बन्धन करता है, जैसे—इस भव के आयुष्य का अथवा परभव के आयुष्य का। www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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